सबसे बड़े बैंकिंग घोटाले में 4 साल तक चुप्पी क्यों …. 4 साल पहले एबीजी से 13,975 करोड़ वसूल लेते तो 23 हजार करोड़ न गंवाते

देश के 28 बैंकों के साथ एबीजी शिपयार्ड कंपनी द्वारा 22,842 करोड़ रु. के सबसे बड़े बैंकिंग घोटाले में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। दरअसल, यह केस 2018 में डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल अहमदाबाद के सामने आया था। तब देना बैंक, ICICI बैंक और SBI की 3 अलग-अलग शिकायतों पर 3 अलग-अलग फैसले दिए गए थे। ट्रिब्यूनल ने बैंकों को एबीजी शिपयार्ड कंपनी से 13,975 करोड़ रु. वसूलने का आदेश दिया था।

फैसले में यह भी कहा था कि अगर रिकवरी न हो पाए तो कंपनी की चल-अचल संपत्ति बेचकर वसूली की जाए। मगर किसी न किसी कारण से बैंक ऐसा नहीं कर सके। नतीजतन, यह मामला बढ़ते-बढ़ते एसबीआई डीजीएम बालाजी सामंथा के पास पहुंचा। सामंथा ने 25 अगस्त 2020 को सीबीआई में इसकी लिखित शिकायत की।

कंपनी के पूर्व चेयरमैन व एमडी ऋिष अग्रवाल के लिए लुकआउट नोटिस जारी
मामले की जांच के बाद सीबीआई ने एबीजी शिपयार्ड और इससे जुड़े लोगों पर अपराध का मामला दर्ज किया। उधर, मंगलवार को सीबीआई ने कंपनी के पूर्व चेयरमैन व एमडी ऋिष अग्रवाल के लिए लुकआउट नोटिस जारी कर दिया है।

अंदेशा है कि अग्रवाल सिंगापुर भाग गया है। बता दें कि देना बैंक ने 8 अगस्त 2018 को ऋषि अग्रवाल, एबीजी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड व अन्य के खिलाफ शिकायत की थी। ट्रिब्यूनल ने 27 दिसंबर 2018 को ब्याज (सालाना 12.7% की दर से) सहित 35 हजार करोड़ रु. रिकवरी का आदेश दिया था। यह भी कहा था कि रिकवरी न हो सके तो बैंक कंपनी की चल-अचल संपत्ति बेचकर वसूली करे।

2017 में हुआ था केस दर्ज
इससे पहले 28 अक्टूबर 2017 को ICICI बैंक ने ऋषि अग्रवाल और एबीजी इंटरनेशनल प्रा. लिमिटेड के खिलाफ डीआरटी-अहमदाबाद में केस किया था। इस पर ट्रिब्यूनल ने 2 अक्टूबर 2018 को आदेश दिया कि दोनों जिम्मेदारों से क्रमश: 4503.94 करोड़ रु. और 174.7 करोड़ रु. दो महीने के अंदर वसूलने का आदेश दिया था। यह भी कहा था कि विफल रहने पर कंपनी की चल-अचल संपत्ति बेचकर वसूली की जाए।

इसके बाद 12 अप्रैल 2018 को SBI ने भी ट्रिब्यूनल में केस कराया था। इस पर आदेश दिया गया था कि ऋषि अग्रवाल से 2510 करोड़ रु. वसूले जाएं। मगर किन्हीं कारणों से दो साल तक वसूली नहीं हो पाई। साल 2020 में सीबीआई के समक्ष मामला पहुंचने पर अब खुलासा हुआ है कि देश की 28 बैंकों के साथ 22,842 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है।

सीबीआई ने इस मामले में एबीजी शिपयार्ड लि. इससे जुड़ी संबंधित कंपनियों के संचालक, तत्कालीन सीएमडी ऋषि कमलेश अग्रवाल, तत्कालीन एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर संथानम मुथास्वामी, डायरेक्टर अश्विनी कुमार, सुशील कुमार अग्रवाल और रवि विमल नेवेटिया और अन्य कंपनी एबीजी इंटरनेशनल प्रा.लि. से संबंध लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है।

2 साल में क्रेडिट लिमिट 15 गुना तक बढ़ा दी गई
14 फरवरी 2006 को एबीजी ने 100 करोड़ रु. का बैंक क्रेडिट लिया था। इसमें से 80 करोड़ रु. का लोन SBI से लिया। धीरे-धीरे यह क्रेडिट लिमिट 2008 तक बढ़कर 1558 करोड़ रु. तक पहुंच गई थी। इसी तरह कंपनी ने अलग-अलग 28 बैंकों से कर्ज लिया था।

मंदी का तर्क देकर कंपनी ने सीडीआर की मांग की थी
28 मार्च 2014 में कंपनी ने बैंक के साथ समझौता किया था। फिर मंदी के कारण शिपिंग इंडस्ट्री में भारी घाटा बताकर आर्थिक हालात कमजोर होने का हवाला दिया। दूसरा करार किया। फिर कॉरपोरेट डेट रिकंस्ट्रक्टिंग (सीडीआर) की मांग रखी, जिसे बैंक ने मान लिया।

बैंक ने कंपनी के कर्ज को एनपीए में डाल दिया था
31 मार्च 2016 को ऋषि अग्रवाल ने 2.66 लाख करोड़ रु. की चल-अचल संपत्ति बताकर 1935 करोड़ का लोन लिया था। बैंकों से लिए लोन को करार के अनुसार चुकाने के समझौते भी किए। लेकिन कंपनी द्वारा असमर्थता जताने पर कर्ज को एनपीए घोषित कर दिया गया।

कैग रिपोर्ट : एबीजी को 1400 रु./वर्ग मी. की जमीन 700 रु./वर्ग मी. में दी गई
{2007 में आई कैग रिपोर्ट में कहा गया था कि एबीजी को उसी साल अक्टूबर में 1.21 लाख वर्ग मी. जमीन 700 रु. में दी गई। जबकि कीमत 1400 रु. वर्ग मी. थी जिससे राज्य सरकार को 8.46 करोड़ का घाटा हुआ।

सरकार का तर्क: कैग रिपोर्ट में सरकार ने दावा किया था कि 2010 में गुजरात मेरीटाइम बोर्ड और एबीजी के बीच मेरीटाइम ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट को लेकर करार हुआ था। इसीलिए रियायती दर पर जमीन दी गई थी।

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