पूछते वोट से क्या फायदा? तो लो सुन लो …. रैलियों में विक्ट्री साइन का एक और मतलब भी है…आइए कार्टूनिस्ट इस्माइल लहरी की नजर से देखते हैं चौथे चरण का चुनाव

रैलियों में ‘वी फॉर विक्ट्री’ में तो आपने भी अंगुलियां उठाई ही होंगी। तो बस चुनाव बाद अनोखी जीत के लिए तैयार रहिएगा। क्योंकि, 10 मार्च को चुनाव रिजल्ट के बाद पेट्रोल के दाम अपनी जीत के लिए नई छलांग लगाएगा। अभी तो नेता जी ने बड़ी मुश्किल से बाजार को भी समझाकर रखा है। क्योंकि कच्चे तेल के दाम 7 साल के हाईलेवल पर हैं।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 93 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गए हैं। अगर पहले की तरह बाजार भाव चलता रहता तो पेट्रोल के दाम 15 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ चुके होते। शुक्र है हमारे चुनाव का… वोट की ताकत का.. जिसने इसे फिलहाल तो रोके ही रखा है। अब तो चार राज्यों के चुनाव हो चुके हैं, सिर्फ यूपी वालों को पेट्रोल के दामों को लेकर सोचना-समझना है।

आइए कार्टून से पेट्रोल और चुनाव के इस गणित को समझते हैं…

1.पेट्रोल सस्ता नहीं कर सकते, लेकिन कंधे पर ले जा सकते हैं

पेट्रोल पंप पर चढ़ते मीटर के साथ लोगों की सांस ऊपर-नीचे होती है। गुस्सा तो सबको खूब आया। क्योंकि, इस महंगाई में सबसे ज्यादा परेशान इन पेट्रोल के दामों ने ही किया। जब भी लोगों ने सरकार की तरफ नजर उठाई, उन्हें आश्वासन भी नहीं मिला। अब चूंकि चुनाव सिर पर आ चुका है, इसलिए नेताजी मतदाताओं को कंधे पर बूथ तक ले जाने को तैयार हैं। बस मतदाता ही शर्त ऐसी रख रहे हैं कि नेताजी परेशान हैं। वो चाहते हैं कि चुनाव बाद भी नेताजी उन्हें कंधे पर ही उठाए।

2. पी.. फुलफार्म बोले तो पेट्रोल

ठीक चुनाव से पहले यूपी सरकार ने पेट्रोल-डीजल के भावों में रियायत दी। सिर्फ इसलिए कि मतदाता वोट डालते वक्त पेट्रोल के बढ़े दामों का दर्द भूल जाए। लेकिन ये तो पब्लिक है, सब जानती है। अब नेताजी के हर पैंतरे पर जनता भी पलटवार कर रही है।

3. नेताजी चाहें, जनता पेट्रोल के दाम भूले रहे

पब्लिक के हर सवाल पर नेताजी ने अंतर राष्ट्रीय बाजार की कीमतों से लेकर पिछली सरकारों का मिस मैनेजमेंट गिना दिया। लेकिन जनाब ये वही पब्लिक है, जो प्याज के दामों पर सरकारें गिरा दिया करती है। ये तो पेट्रोल का मामला है। 7 मार्च तक नेताजी का जवाब देने में पसीने छूट रहे हैं, ज्यादातर नेताजी झेप मिटाने के लिए कहते सुने जा रहे कि इस बार गर्मी जल्दी आ गई।

4. गुमराह करने के सिवा अब चारा भी क्या

चुनाव आते ही नेताजी के अजब-गजब बोल पब्लिक के सामने आते हैं। कभी-कभी लगता है कि नेताजी की जुबान नहीं फिसलती हैं, बल्कि जनता को गुमराह करने के लिए ये भी एक ट्रिक है। जो झांसे में आ गए वो ठीक.. जो नहीं आए उनके लिए तो नेताजी बाद में कह ही देते हैं कि ये तो हमने ऐसे ही कह दिया था। पब्लिक जितना कन्फ्यूजन में नेताजी की उतनी ही बल्ले-बल्ले।

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