तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो कौन किसके साथ खड़ा होगा? भारत का क्या होगा स्टैंड

रूस दुनिया के कई देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. यह सिर्फ तेल और गैस सेक्टर में अहमियत नहीं रखता है, बल्कि अन्य कमोडिटीज और मिनरल्स के मामले में भी बड़ा खिलाड़ी है.

रूस और यूक्रेन को बीच चल रहे युद्ध का आज पांचवा दिन है. यह जंग हर बीतते दिन के साथ खतरनाक होता जा रहा है. इस दौरान रूस लगातार हमलावर रहा है तो वहीं अब यूक्रेन ने भी हार न मानने की ठान ली है. इस जंग को घातक मानने का एक और कारण यह भी है कि पहली बार दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) के बाद कोई इतना बड़ा हमला हो रहा है.

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह युद्ध ऐसे ही कुछ दिनों तक जारी रहा तो जल्द ही यह तीसरे विश्व युद्ध का रूप ले लेगा, जिससे पूरी दुनिया पर संकट गहरा गया है. इन दो देशों के बीच चल रही जंग ने एक बार फिर दुनिया के सभी देशों को दो धड़ों में बांट दिया है. यूक्रेन पर हमला करने से खफा कई देश लगातार रूस पर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. लेकिन इन प्रतिबंधो का रूस और यूक्रेन के युद्ध पर कितना असर पड़ता ये देखना बांकी है. इसके अलावा युद्ध के बाद प्रतिबंध लगाने वाले देशों के साथ रूस किस तरह का संबंध रखना चाहेगा ये देखना भी दिलचस्प होगा.

बता दें कि रूस दुनिया के कई देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. यह सिर्फ तेल और गैस सेक्टर में अहमियत नहीं रखता है, बल्कि अन्य कमोडिटीज और मिनरल्स के मामले में भी बड़ा खिलाड़ी है. ऐसे में प्रतिबंध लगाए देशों में इन चीजों की सप्लाई घट जाएगी और दामों में इजाफा होने का अनुमान लगाया जा रहा है. एक तरफ कोरोना महामारी ने ज्यादातर देशों के अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ रखी है, ऐसे में यह युद्ध दुनियाभर में महंगाई को दशकों के उच्च स्तप पर पहुंचा सकती है.

कौन-कौन से देश है रूस और यूक्रेन के साथ

इस जंग ने 40 साल बाद एक बार फिर पूरी दुनिया को दो गुटों में बांट दिया है. रूस की बात करें तो उसके समर्थन में आया क्यूबा सबसे पहला देश है. क्यूबा मे जंग के दौरान सीमावर्ती क्षेत्रों में नाटो के विस्तार को लेकर अमेरिका की आलोचना की थी और कहा था कि दोनों देशों को वैश्विक शांति के लिए कूटनीतिक तरीके से इस मसले का हल निकालना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ चीन भी रूस का समर्थन कर रहा है. चीन ने पहले ही कहा था कि नाटो यूक्रेन में मनमानी कर रहा है.

इन देशों के अलावा कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे अर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और बेलारूस भी रूस का साथ दे सकते हैं. इन देशों का रूस के साथ होने का सबसे बड़ा कारण है कि इन छह देशों के सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन पर हस्ताक्षर किए हैं जिसका मतलब है कि अगर रूस पर किसी देश द्वारा हमला किया जाता है तो ये देश भी रूस की मदद में आगे आएंगे और रूस पर हुए हमले को खुद पर भी हमला मानेंगे.

ईरान भी करेगा रूस का समर्थन

मिडिल ईस्ट में ईरान रूस का साथ दे सकता है. दरअसल रूस लगातार इरान को अपने पाले में लाने की कोशिश में लगा हुआ है. दोनों देशों के रिश्ते में न्यूक्लियर डील असफल होने के बाद से दूरी बन गई थी. वहीं उत्तर कोरिया भी रूस का साथ दे सकता है. वहीं पाकिस्तान भी रूस का समर्थन कर सकता है क्यों पाकिस्तान के पीएम अभी भी रूस के दौरे पर है.

ये देश कर सकते हैं यूक्रेन का समर्थन 

फिलहाल बन रहे हालात को देखते हुए नाटो में शामिल यूरोपियन देश बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लग्जमबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, ब्रिटेन और अमेरिका पूरी तरह यूक्रेन का समर्थन करेंगे. जर्मनी और फ्रांस भी यूक्रेन का साथ दे सकते हैं क्योंकि उन्होंने हाल ही में मॉस्को का दौरा किया था औऱ विवाद को शांत करने की बात कही थी. इसके अलावा जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा भी यूक्रेन का समर्थन कर रहे हैं. साथ ही, उन्होंने रूस पर प्रतिबंध लगाने का एलान भी किया है.

क्या है भारत का रुख 

बता दें कि इस वार में तटस्थ की भूमिका में भारत अकेला देश है. दरअसल इस पूरे संकट पर भारत ने तटस्थ रुख अपना रखा है. इसका सबसे बड़ा कारण अमेरिका और रूस दोनों देशों से भारत के अच्छे रिश्ते हैं. भारत की जीडीपी का 40 फीसदी हिस्सा फॉरेन ट्रेड से आता है. भारत का अधिकतर कारोबार अमेरिका और उसके सहयोगी पश्चिमी देशों के अलावा मिडिल ईस्ट से होता है. भारत पश्चिमी देशों से एक साल में करीब 350-400 बिलियन डॉलर का कारोबार करता है. जबकि रूस और भारत के बीच भी 10 से 12 बिलियन डॉलर का कारोबार है.

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