मऊ मतलब मुख्तार अंसारी … बेटा प्रत्याशी लेकिन जेल से ही पूरा चुनाव लड़ रहा मुख्तार, एक नहीं…मऊ की 4 सीटों पर प्रभाव

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का आखिरी फेज पूर्वांचल में है। जब बात पूर्वांचल की होती है, तो आपने कई बाहुबलियों के नाम सुने होंगे, इन्हीं से एक नाम है मुख्तार अंसारी का। इनके लिए सत्ता का गठजोड़ जरूरी नहीं रहा, बल्कि मऊ में इनका नाम ही काफी है। पार्टी कोई हो, मुख्तार जेल में हो या बाहर रहकर चुनाव लड़ रहे हों, जीत पक्की मानी जाती है।

दरअसल, मऊ सदर सीट पर मुस्लिम वोटर की संख्या का ज्यादा होना ही इनकी जीत कारण है। इस बार मुख्तार नहीं, बल्कि उनके बेटे अब्बास अंसारी लड़ रहे हैं। वह मुख्तार के अंदाज में ही मंच, सत्ता और ब्यूरोक्रेसी के खिलाफ बोलते नजर आ रहे हैं। एक के बाद एक धमकी के कई मामले सामने आए हैं।

40 से अधिक मामलों में जेल में बंद मुख्तार अंसारी ने पिछले तीन विधानसभा चुनाव में सलाखों के पीछे से जीत हासिल की। कहा जाता है कि जेल की 20 फीट ऊंची दीवारों के अंदर से मऊ की हुकूमत मुख्तार के नाम पर है। प्रधान से लेकर सांसद तक के चुनाव में उनके एक इशारे पर लाखों लोग वोटिंग करते हैं। इसलिए अनगिनत समस्या होने के बाद भी लोगों का कहना है कि मऊ का मतलब है मुख्तार अंसारी।

दल बदल की राजनीति में कंधा मिलाना, मजबूरी या फिर समझौता
राजनीति, राज करने के लिए बनाई जाने वाली नई-नई नीतियां। तब कौन सगा हो जाएगा। इसके बारे में कहना मुश्किल है। दल-बदल की राजनीति में घोर विरोधी भी एक-दूसरे के साथ चलने को मजबूर हैं। एक-दूसरे का खुलेआम विरोध करने वाले कब एक साथ दिखाई दें, इस पर आश्चर्य नहीं किया जा सकता है। ये शब्द नहीं, मऊ की राजनीति की तस्वीर है। मऊ विधानसभा सीट पर सपा गठबंधन से मुख्तार अंसारी का पुत्र अब्बास अंसारी चुनाव लड़ रहा है, जिसके प्रचार में सपा के चेयरमैन अशरफ जमाल, मोहम्मद हंजला फरीद सहित दूसरे साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। हालांकि, अशरफ जमाल की मुख्तार अंसारी के विरोधियों में ग‌णना की जाती है। लेकिन, इस सपा गठबंधन की वजह से वे उनके पक्ष में प्रचार कर रहे हैं।

उधर, भाजपा के लोगों का कहना है कि मऊ में विकास की बात हो रही है। डॉन कहे जाने वाले मुख्तार अंसारी का मतलब मऊ है। ये पांच साल पहले की बात हो गई है। योगी सरकार में विकास और बुलडोजर एक साथ चल रहा है।

योगी सरकार से नाराजगी
मऊ में 1.90 लाख से अधिक बुनकर हैं। योगी सरकार ने बुनकरों को दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया है। जिससे लोगों में नाराजगी है। फिरोज अहमद कहते हैं कि सरकार जरूर बदलेगी। वहीं, ग्रामीण महिलाएं राशन, आवास, बिजली सहित दूसरे फायदे मिलने से खुश दिखाई दे रही हैं। कलावती ने बताया कि सरकार अच्छा काम कर रही है।

मऊ में 1.90 लाख से अधिक बुनकर हैं। योगी सरकार ने बुनकरों को दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया है। जिससे लोगों में नाराजगी है।
मऊ में 1.90 लाख से अधिक बुनकर हैं। योगी सरकार ने बुनकरों को दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया है। जिससे लोगों में नाराजगी है।

भाजपा के मऊ की हर सीट पर मशक्कत
2017 में भाजपा ने चार में से 3 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। मऊ सदर सीट पर बसपा से मुख्तार अंसारी ने चुनाव जीता था। ऐसे में 2017 के इतिहास को दोहराने के लिए भाजपा को हर सीट पर मशक्कत करनी पड़ रही है। 17 लाख वोटरों वाले मऊ में लगभग पांच लाख मुस्लिम हैं। इसके साथ ही 2.60 लाख यादव हैं।

आइए जानते हैं बारी-बारी से हर सीट का हाल…

1. मऊ सदरः इस बार मुख्तार नहीं, उसका बेटा लड़ रहा
मऊ सदर विधानसभा में कमल खिलाने के लिए किसी नेता ने कमाल नहीं किया है। जेल में हो या फिर बाहर, 1996 से मऊ सदर सीट पर मुख्तार अंसारी का ही कब्जा रहा है। 4.77 लाख वोटरों वाली विधानसभा में 1.70 लाख मुस्लिम हैं, जो मुख्तार अंसारी की ताकत हैं। इसके साथ ही 45 हजार यादव, 91 हजार अनुसूचित जाति, 45 हजार राजभर 18 हजार क्षत्रिय और 6 हजार ब्राह्मण हैं। मुसलमानों की अधिक संख्या होने की वजह से 27 साल से मऊ सदर सीट मुख्तार के लिए किला बनी हुई है। 2022 के चुनाव में सपा गठबंधन सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की तरफ से अब्बास अंसारी, भाजपा से अशोक सिंह, बसपा से भीम राजभर और कांग्रेस से माधवेंद्र सिंह चुनावी मैदान में हैं।

2. घोसीः अनुसूचित जाति के वोटर बनाते हैं विधायक
घोसी में 4.36 लाख मतदाता हैं, जिसमें 1.35 लाख अनुसूचित जाति के और 75 हजार चौहान हैं। इसके साथ ही, 90 हजार वोटर मुस्लिम हैं। अनुसूचित जाति और चौहान के वोटरों से बिहार के राज्यपाल फागू चौहान 1985 से 2017 तक विधायक रहे हैं। 2019 के उप चुनाव में विजय राजभर को जीत मिली है। जो फागू चौहान के लड़के हैं। 2022 के चुनाव में बीजेपी ने विजय राजभर, सपा ने दारा सिंह चौहान, बसपा ने वसीम इकबाल और कांग्रेस ने प्रियंका यादव को प्रत्याशी बनाया है।

मुहम्मदाबाद गोहना विधानसभा सीट पर हर बार विधायक का चेहरा बदल जाता है। एक व्यक्ति और एक पार्टी दूसरी बार चुनाव नहीं जीतती है।
मुहम्मदाबाद गोहना विधानसभा सीट पर हर बार विधायक का चेहरा बदल जाता है। एक व्यक्ति और एक पार्टी दूसरी बार चुनाव नहीं जीतती है।

3. मुहम्मदाबाद गोहनाः हर बार बदल जाता है चेहरा
मुहम्मदाबाद गोहना विधानसभा सीट पर हर बार विधायक का चेहरा बदल जाता है। एक व्यक्ति और एक पार्टी दूसरी बार चुनाव नहीं जीतती है। 1980 से अब तक तीन बार भाजपा और तीन बार बसपा, दो बार सपा, एक बार कांग्रेस और एक बार भाकपा से प्रत्याशी जीत करके विधानसभा पहुंचा है। 3.78 लाख वोटरों वाले विधानसभा में 1.45 लाख अनुसूचित, 92 हजार मुस्लिम, 40 हजार राजभर, 60 हजार चौहान हैं। इसको देखते हुए बीजेपी ने पूनम सरोज, सपा ने राजेंद्र कुमार, बसपा ने धर्म सिंह गौतम और कांग्रेस ने बनवाली राम को टिकट दिया है।

4. मधुबनः 2017 में दारा सिंह चाहौन जीते और मंत्री बने थे
3.82 लाख वोटरों वाले मधुबन विधानसभा सीट में 70 हजार अनुसूचित जाति के हैं। इसके साथ ही 22 हजार मुस्लिम, 80 हजार यादव हैं। इस सीट पर 24 हजार चौहान और 16 हजार ब्राह्मण हैं। इसकी वजह से सभी पार्टियों ने मशक्कत करने के बाद उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। 2017 में यहां से दारा सिंह चौहान ने जीत हासिल की थी। 2022 में भाजपा ने बिहार के राज्यपाल फागू चौहान के लड़के रामविलास चौहान, सपा ने उमेश चंद् पांडेय, बसपा ने नीलम सिंह कुशवाहा और कांग्रेस ने अमरेश चंद्र पांडेय को प्रत्याशी बनाया है।

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