चुनाव हारने के बाद अखिलेश को चाहिए जीत के मंत्र … भाजपा से सिर्फ 9% ही वोट कम मिले; 2012 की तुलना में बढ़ गई सपा की वोट शेयरिंग

वोट शेयरिंग के लिहाज से सबसे अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद सपा सरकार नहीं बना सकी। अपनी गलतियों से सबक लेते हुए सपा को 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी करनी है। बसपा के बिखरे वोट बैंक में सेंध भी लगानी है और छोटे दल के साथ गठबंधन को भी बनाए रखना है।

भाजपा की तरह बूथ लेवल पर मजबूती के लिए अब सपा मुखिया सीधे कार्यकर्ताओं से जुड़ने की तैयारी में हैं। इसके लिए एक मेल आईडी भी जारी किया गया है। ताकि कार्यकर्ता अपनी शिकायतें और सुझाव सीधे अपने नेता तक पहुंचा सकें। ये फंडा मायूस हुए कार्यकर्ताओं में नई जान फूंकने के लिए अपनाया गया है। क्योंकि कार्यकर्ताओं का कहना था कि चुनाव में उनके सुझाव नहीं माने गए। इसलिए कई सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा।

अखिलेश को सुनने के लिए लोग जनसभाओं में जुटते रहे।
अखिलेश को सुनने के लिए लोग जनसभाओं में जुटते रहे।

सपा से सिर्फ 9% अधिक वोट लेकर भाजपा सत्ता में आई

सपा हाईकमान की तरफ से कहा गया कि भाजपा आईटी सेल अभी भी भ्रामक जानकारियां फैला रहा है। अपील की जा रही है कि किसी से भी बेवजह न उलझें। कार्यकर्ता अपनी बात को yadavakhilesh@gmail.com के जरिए अखिलेश यादव तक पहुंचा सकते हैं।

सपा को वर्ष 2012 के चुनाव में 29.13% वोट मिले थे। 224 सीटें जीतकर सपा ने सरकार बनाई थी। इस बार सपा को उससे भी अधिक वोट यानी 32.10% मिले हैं। लेकिन वो सत्ता से दूर है। भाजपा सिर्फ 9% अधिक वोट लेकर 255 सीट लेकर आई है।

कोर कमेटी देख रही कि अच्छे प्रदर्शन के बावजूद हारे कैसे

एमवाई फैक्टर यानी मुस्लिम और यादव वोटर को जोड़े रखने में सपा कामयाब रही। साथ में, पिछड़ी और दलित वर्ग का कुछ वोट भी सपा को मिल गया। अब सपा के सामने अपने कोर वोट बैंक को सहेजने के साथ ही नए मतदाताओं को जोड़ने की चुनौती है। चूंकि इस बार बसपा के वोट बैंक के करीब 10% वोटर खिसक गए हैं। इन बिखरे हुए वोटर्स को सहेजने के लिए सपा के पास अच्छा मौका है।

सपा की कोर कमेटी ने हार के कारणों की समीक्षा शुरू कर दी है। इसके लिए सभी विधानसभा के प्रत्याशी वार और पार्टीवार परिणाम मंगवाया गया है।

40 से ज्यादा सीटों पर ऐन मौके तक बदले गए प्रत्याशी
सपा की हार की एक वजह ऐन मौके तक प्रत्याशियों को बदलना भी माना जा रहा है। करीब 40 से ज्यादा ऐसी सीटें थीं, जिन पर प्रत्याशी बदले गए। इससे कार्यकर्ता भी परेशान हुए। इससे सीख लेते हुए भविष्य के चुनाव में टिकट वितरण को लेकर कई सुधार करने होंगे। इसलिए कार्यकर्ताओं को खुला मंच दिया गया है।

बच्चों की आईडी फर्जी है

सोमवार को समाजवादी पार्टी ने कहा है कि ‘समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बच्चों के नाम से टि्वटर, फेसबुक एवं अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर चल रहे अकाउंट फर्जी हैं। इनका राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं उनके परिवार से कोई लेना देना नहीं है। गौरतलब है कि अर्जुन और अदिति के अकाउंट से लगातार अखिलेश यादव, डिंपल यादव और मुलायम सिंह यादव से जुड़ी जानकारियों को लेकर ट्वीट किया जाता रहा है।

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