बुद्धिमत्तापूर्ण शिक्षा के लिए चेतना की आवश्यकता न शरीर के लिए है, न मशीन के लिए

एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को एक चेतन जीव की भांति दर्शाने वाली विज्ञान की काल्पनिक कथाओं ने एआई से सम्बंधित लोकप्रिय भ्रांतियों को हवा दी है। उसने आने वाली एआई क्रांति को महत्वहीन बनाकर हानिकारक काम किया है। ऊटपटांग आख्यानों ने मशीनों की चेतना से जुड़ी सजीव अटकलों और बहस को जन्म दिया है। लोग प्रायः बुद्धिमत्ता और चैतन्यता के बीच में भ्रमित हो जाते हैं।

वहीं बुद्धिमत्ता कई रूपों में विद्यमान है और वह चेतन या अचेतन दोनों ही रूपों में हो सकती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और आर्टिफिशियल कॉन्शियसनेस (कृत्रिम चेतना) अत्यंत भिन्न हैं। एक बुद्धिमत्तापूर्ण प्रणाली अचेतन भी हो सकती है। वहीं चेतन प्रणाली भी बिना बुद्धि के हो सकती है। जब एक ट्रक चालक की नौकरी किसी बिना चालक वाले वाहन को मिल जाएगी, तब इस बात का कोई महत्व नहीं रहेगा कि उस वाहन में चेतना है या नहीं।

महत्व तो मात्र इस तथ्य का है कि मशीनें मनुष्यों की नौकरियां छीन सकती हैं, क्योंकि मशीनें उस काम को मनुष्यों से बेहतर और कम खर्च में ही पूर्ण कर सकती हैं। हम जानते हैं कि घोड़ों में चेतना होती है जबकि वाहनों में नहीं होती है किंतु इस अंतर ने वाहनों को उनसे अच्छा कार्य करने से नहीं रोका। बिना चालक की कार और ट्रक के आने से वर्तमान मोटरगाड़ियां और इनके उद्योग भी अप्रचलित हो जाएंगे।

इसी तरह कम्प्यूटर एक्स-रे का विश्लेषण कर सकते हैं। अन्य चिकित्सकीय निदान भी निपुणता से करने में सक्षम हैं। ऐसे में इसका स्वास्थ्य सेवा से कोई लेना-देना नहीं कि मशीनें सचेत हैं या नहीं। वे व्यक्ति जो किसी संवाद के समय भागीदार होते हैं, उन्हें व्याकरण में पुरुष कहा जाता है। उत्तम पुरुष वाले वाक्यों में व्यक्ति अपने बारे में कुछ चर्चा करता है और अहम् भाव को प्रकट करता है। इस ‘मैं’ को अनुभव करने की क्षमता को चेतना कहते हैं।

मध्यम पुरुष वाले वाक्य वे होते हैं जो किसी श्रोता या हमारी बात सुनने वाले को सम्बोधित करते हैं। वे पारस्परिक होते हैं और सामने उपस्थित व्यक्तिओं को सम्बोधित करते हैं। अन्य पुरुष वाले वाक्य वे होते हैं जो किसी ऐसे वस्तु या व्यक्ति की ओर संकेत करते हैं, जो दो लोगों की आपसी चर्चा का विषय है। ये ‘वह’ या ‘वे’ जैसे सर्वनामों का उपयोग करते हैं। जिसकी चर्चा हो रही है, वह विषय कोई व्यक्ति, अचेतन वस्तु या कोई निराकार विचार भी हो सकता है।

एक ऐसी सत्ता जिसमें मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष को जानने की क्षमता तो है, परंतु जिसे उत्तम पुरुष यानी स्वयं का बोध नहीं है, उसे फिलोसोफिकल ज़ोम्बी या पी-ज़ोम्बी कहा जाता है। एक व्यक्ति के रूप में हम जानते हैं कि हम पी-ज़ोम्बी नहीं हैं, लेकिन हमारे पास यह सुनिश्चित करने का कोई मार्ग नहीं है कि कोई अन्य व्यक्ति पी-ज़ोम्बी है या नहीं। मनुष्यों के पास किसी अन्य व्यक्ति के आंतरिक अस्तित्व में झांकने का कोई रास्ता नहीं है।

हम यह निश्चित रूप से तय नहीं कर सकते कि कोई अन्य व्यक्ति वास्तव में चेतन है या फिर केवल चेतन होने का दिखावा करने वाला रोबोट है। पी-ज़ोम्बीज और सामान्य मनुष्यों में फर्क कर पाना संभव नहीं है। यदि किसी पी-ज़ोम्बी पर प्रहार किया जाए तो उसे किसी भी प्रकार के दुःख का अनुभव नहीं होगा, किन्तु वह बाह्य रूप से ऐसा स्वांग करेगा जैसे कि उसको पीड़ा हुई है।

शुद्ध व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो किसी व्यक्ति या वस्तु की उत्तम पुरुष की दृष्टि से कार्य कर पाने की क्षमता या अक्षमता अन्य लोगों के लिए कोई महत्व नहीं रखती। मानव बुद्धि आंशिक रूप से सचेत और जड़ मानी जा सकती है। शरीर में सदैव चलने वाली बहुत-सी शारीरिक क्रियाओं का भान नहीं होता है, यद्यपि ये क्रियाएं अत्यधिक जटिल और बुद्धिमत्तापूर्ण हैं।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये प्रक्रियाएं स्वयं भी आत्म-जागरूक नहीं हैं। इसी तरह, हम अपने मस्तिष्क के भी बड़े हिस्से से अनजान हैं, जहां बुद्धिमत्ता से जुड़ी प्रक्रियाएं बिना आत्म-चेतना के हर समय चलती रहती हैं। हमारा शरीर भी मशीन-लर्निंग के ही समान अपने अनुभवों और उन पर आधारित आंकलनों से सीखता है।

एआई की अन्य पुरुष वाली क्षमताएं उसको जटिल एल्गोरिदम चलाने में समर्थ बनाती हैं। मध्यम पुरुष वाली क्षमताएं मनुष्यों के साथ व्यवहार करने की सामर्थ्य देती हैं। पर अपना कार्य करने के लिए उसे उत्तम पुरुष की आत्म-चेतना की जरूरत नहीं है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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