केजरीवाल के नेशनल मंसूबों पर PK की दो टूक ……

से कहा- BJP को चुनौती देने में ‘आप’ को लगेंगे 20 साल, देश जीतने के लिए 20 करोड़ से ज्यादा वोट जरूरी….

इसका अपना अर्थमैटिक है। प्रशांत कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में ‘आप’ को कुल 27 लाख वोट मिले थे, जबकि देश जीतने के लिए 20 करोड़ या इससे ज्यादा वोट चाहिए। ये हैसियत कुछ सालों में हासिल नहीं की जा सकती।

प्रशांत दैनिक भास्कर से बातचीत में तमाम मसलों और मुद्दों पर खूब बोले और खुल कर बोले। पहली किस्त बीते कल, यानी सोमवार को सामने आई थी। बातचीत थोड़ी लंबी हो चली थी, तो बाकी का हिस्सा इस आखिरी किस्त में ले आए हैं। पढ़ कर देखें, अच्छा लगेगा…

सवाल : केजरीवाल के नेतृत्व में ‘आप’ ने दिल्ली के बाद पंजाब में बड़ी जीत दर्ज की, तो क्या आने वाले सालों में ‘आप’ कांग्रेस को रिप्लेस कर सकती है और विपक्ष की भूमिका में आ सकती है?

जवाब: एक-दो राज्यों में चुनाव जीतकर थोड़ी बड़ी शक्ति के तौर पर उभरना एक बात है और लोकसभा चुनाव जीतना दूसरी बात है। थ्योरेटिकली तो कोई भी पार्टी नेशनल पार्टी बन सकती है, लेकिन यदि आप देश के लोकतांत्रिक इतिहास को देखेंगे तो पाएंगे कि देश के स्तर पर सिर्फ कांग्रेस और BJP ही ऐसी पार्टी हैं, जो पैन इंडिया पार्टी बन सकी हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि कोई दूसरा बन नहीं सकता, लेकिन बनने के लिए 15-20 साल लगातार प्रयास करना पड़ेगा। ओवरनाइट ये बदलाव संभव नहीं है।

2019 के आम चुनाव में आम आदमी पार्टी को देशभर में करीब 27 लाख वोट मिले थे और अगर किसी को लोकसभा चुनाव जीतना होता है तो उसके लिए 20 करोड़ से ज्यादा वोट चाहिए। सिर्फ कांग्रेस और BJP ही अभी तक ऐसा कर पाई हैं। उन्हें ऐसा करने में 50 साल लगे। BJP ने 1978 से काम शुरू किया था। सालों बाद उन्हें एक मिली-जुली सरकार बनाने का मौका मिला।

सवाल : आपका कहना है कि देश में मुद्दे तो होते ही हैं, लेकिन महंगाई, बेरोजगारी जैसे तमाम मुद्दों के बाद भी BJP 5 राज्यों में से 4 में जीती तो क्या ये माना जाए कि PM मोदी की पॉपुलैरिटी इतनी है कि उनके सामने महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे बेमानी हैं?

जवाब : महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे नहीं हैं, ये कहना गलत है। 38% वोट पाकर अगर किसी को ऐसा लगता है कि पूरा देश उसके साथ है तो यह सही नहीं है, क्योंकि देश के 100 में से 38 लोग ही आपके साथ हैं। 62 लोगों के लिए तो महंगाई, बेरोजगारी ही बड़ा मुद्दा है। बस बात ये है कि उनके वोट बंट रहे हैं।

 

सवाल : 5 राज्यों के नतीजों के बाद आपने कहा कि इन्हें 2024 से नहीं जोड़ना चाहिए। हम UP को ही ले लें, जहां लोकसभा की 80 सीटें हैं और वहां BJP ने फिर सरकार बनाई है, तो लोकसभा चुनाव में उसे फायदा मिलेगा न?

जवाब : फायदा मिल भी सकता है, लेकिन एक नजरिया ये भी हो सकता है कि लोकसभा चुनाव में उसे (BJP) 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी का सामना करना पड़े। राज्य से लेकर केंद्र तक में BJP की सरकार है। ऐसे में 2024 में विपक्ष के पास यह एक मौका भी तो होगा।

सवाल : तो यह माना जाए कि PM मोदी की पॉपुलैरिटी बरकरार है?

जवाब : बिल्कुल, PM मोदी की पॉपुलैरिटी बरकरार है, लेकिन आप पॉपुलर होने के बाद भी चुनाव हार सकते हैं, जैसा BJP के साथ बंगाल में हुआ। ऐसे ही UP में कहा जा रहा था कि अखिलेश की सभाओं में बहुत भीड़ आ रही है, लेकिन वे जीत नहीं पाए। 30% वोट मिलने के बाद भी वो हार गए।

सवाल : क्या हिंदू-मुस्लिम की राजनीति के आगे अब सारे मुद्दे फीके पड़ चुके हैं?

जवाब : बिल्कुल नहीं। पोलराइजेशन की एक सीमा होती है। एक सीमा के बाद आप कम्युनिटी को पोलराइज नहीं कर सकते। हमने पिछले 30 सालों में जितने भी चुनाव हुए हैं, उनका डेटा देखकर यह पता लगाया है कि कम्युनिटी वोट कैसे कर रही है। हमने पाया कि 50 से 55% के बाद कम्युनिटी पोलराइज नहीं होती। अगर ऐसा होता तो फिर BJP को 40% वोट ही क्यों आते।

सवाल : लेकिन हिंदुत्व एक बड़ा फैक्टर तो है ही?

जवाब : हां, बिल्कुल, हिंदुत्व एक बड़ा फैक्टर है। इसका चुनाव में असर होता है।

सवाल : आप जिन पार्टियों के साथ कैंपेनिंग करते हैं, उनसे बार्गेनिंग कैसे करते हैं?

जवाब : बार्गेनिंग जैसा कुछ नहीं है। कोई टेबल-कुर्सी पर बैठकर हिसाब-किताब नहीं होता। हां, कैंपेनिंग पर हर पार्टी को खर्च करना होता है, लेकिन मैं उसमें अलग से कोई फीस लेता हूं, ऐसा कुछ नहीं है। 10 साल ये काम किया। सीखने आए थे। सीख लिया और अब छोड़ भी दिया। कोई कुछ भी कहे, लेकिन मुझे अब आप पुराने रोल में नहीं देखेंगे, ये तय बात है।

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