कोरोना….पॉजिटिव से पाजिटिविटी की ओर
कोरोना…..पॉजिटिव से पाजिटिविटी की ओर
कोरोना निश्चित तौर पर मानवता के इतिहास की सबसे बड़ी आपदा है, परन्तु इसको कतिपय व्यक्तियों, समूहों आदि ने अवसर के रूप में लिया तथा इससे लाभान्वित भी हुए। कहने का तात्पर्य यह है कि हम भी इसे अवसर के रूप में ले सकते हैं, लेकिन कैसे ?
हम लगातार ये देख सुन रहे हैं कि कोरोना का भय कोरोना से ज्यादा खतरनाक है, फिर भी हम इसके भय से बाहर नही निकल पा रहे हैं। अगर हमारा पडोसी पॉजिटिव आ जाये तो हमको नेगेटिव होने में समय नहीं लगता तथा हम अपनी समस्त नेगेटिविटी का प्रसार जोर-शोर से करते हैं तथा भय से भय फिर उसका भय चारों ओर व्याप्त हो जाता है। आखिर ऐसा क्यों होता है ?
कोरोना ने मनुष्य के भीतर छिपे उसके वास्तविक स्वरुप को उजागर करने में अहम् भूमिका निभाई है। हमारे भीतर परत दर परत अनेकों भ्रम तथा भय जन्म जन्मान्तरों से दमित हैं कोरोना ने उनको परत दर परत उधेड़ दिया है। हमारा नग्न स्वरुप धीरे धीरे उभर कर सामने आ रहा है। आखिर हमें कोरोना से भय किस बात का है ? वो भय है मृत्यु का परन्तु फिर भी अभी हम इसे खुल कर स्वीकार नहीं कर रहे हैं। कभी हम अपने भय को बूढ़े माँ-बाप के कंधे पर रख देते हैं तो कभी छोटे बच्चे के कंधे पर तो कभी पति-पत्नी के कंधे पर परन्तु हम ये नहीं मान रहे हैं हमें भय सिर्फ अपना है न कि किसी और का। तो सर्वप्रथम तो हमें इस भय को स्वीकारना होगा तदुपरांत हम उसकी जड़ों तक जाने का प्रयास करेंगे। अब चलिए हमने मान लिया कि हमे मृत्यु से भय लग रहा है तो दूसरा प्रश्न है कि क्यों लग रहा है ? आखिर कोरोना ने ऐसा क्या कर दिया है जो पहले नहीं था ? हम ये क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि कोरोना आने से हमारी मौत निश्चित नहीं हुई है और न ही कोरोना के न आने से हमको अमरत्व मिल जाता। तो जो शास्वत है पहले भी होना था अब भी होना है उससे भय किस बात का। दूसरा तथ्य ये है कि जब हमारा शरीर अपनी चिकित्सा करने में काफी हद तक समर्थ है तो अनावश्यक रूप से दवाओं व मशीनरी की आवश्यकता क्या है ? क्या मशीन पे हमें प्रकृति से ज्यादा भरोसा है ?
कोरोना से उत्पन्न भय के कारण व प्रभाव की छानबीन करनी होगी और यही से हम ये समझने का प्रयास करेंगे की पॉजिटिव से पाजिटिविटी की तरफ कैसे बढे ? सर्वप्रथम तो हम ये समझ लें कि हमारा भय तो निर्मूल है। इस सम्बन्ध में सुकरात की एक कथा का उल्लेख समीचीन लगता है। जब सुकरात को विषपान कराये जाने की तैयारी थी तो उनके शिष्यों ने उनसे आग्रह किया कि वे जेल से भाग जाएं तब सुकरात ने मुस्कुराकर उत्तर दिया कि मैं भाग तो जाऊं परन्तु मुझे गारण्टी दो कि फिर मैं मरूंगा नहीं इस पर उनके शिष्यों ने कहा ये कैसे संभव है सुकरात फिर मुस्कुराये और बोले कि फिर भागने से क्या लाभ ? अपने जीवन को मृत्यु से भागने में बर्बाद क्यों करना ? आशय स्पष्ट है कि निराधार भय का क्या कारण है और जहाँ तक सुरक्षा या आत्मरक्षा की बात है तो हम वाहन चलाते समय भी दिन-प्रतिदिन के जीवन में भी सजगतापूर्वक करते ही रहते हैं अब भी करते रहें परन्तु इस सजगता को सुगमतापूर्वक चलने दें न कि विवशतापूर्वक या मूर्खतापूर्वक।
फिलहाल मौलिक बात ये है कि हमारा मृत्यु का भय हमारे भ्रम को उजागर करता है। हम अपना समस्त जीवन सिर्फ मृत्यु से बचने का प्रयास करते हैं और इतना खूबसूरत जीवन जीने से चूक जाते हैं। कोरोना हमारे इस संग्रहीत भ्रम और भय पर कुठाराघात कर रहा है और हमें निरंतर चेतावनी दे रहा है कि हम अपनी व्यवस्थाओं अपनी मान्यताओं अपनी धार्मिक,सामाजिक शिक्षाओं का पुनर्विलोकन करें, आखिर इतना मौलिक तथ्य इतना सब कुछ होने के बाद भी चूक कैसे सकता है ? कोरोना के भय ने ये साबित कर दिया है कि हम भीतर से कितने खोखले और सतही हैं। हमारी आस्था हमारा विश्वास एक झटके में बिखर गया। हमने क्या सीखा था जीवन भर और क्यों सीखा था जब आवश्यकता पड़ने पर उस शिक्षा का ये हश्र हो रहा है तो उसका मतलब क्या सिर्फ धनार्जन करना था ?
कोरोना ने हमको ये अहसास भी करा दिया है कि हमारे और प्रकृति के मध्य दूरी कितनी बढ़ चुकी है। हम अपनी जड़ों से कितनी दूर जा चुके हैं और यदि खाद-पानी तनों और पत्तियों को मिले भी तो उससे क्या लाभ ? हम अपनी जड़ो को छोड़कर फूलों को सजाने में लगे हैं, फूलों का मुरझाना तो तय है। इसमें कोरोना का क्या दोष वो तो हमे सिर्फ संकेत दे रहा है कि फिर से प्रकृति की ओर लौटो नहीं तो विनाश सुनिश्चित है। इसका जिम्मेदार कौन है ये चिंतन का विषय है।
अब हम भय के प्रभाव भी देखते हैं। ये किसी से छिपा नहीं है भय के वशीभूत हम कितने लोभी,निकृष्ट हो गए हैं ये चारों ओर दिख रहा है। ” मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ” ऐसा कहा जाता है लेकिन इस पर भी पुनर्विचार की आवश्यकता है। हमरा भय न सिर्फ हमारे वरन अनेकों पर भारी पड़ रहा है। छुआ-छूत प्रथा फिर से प्रारम्भ हो गई है। हमारी मानवता की,विश्वबंधुत्व की,परोपकार की आदि बड़े-बड़े आदर्शों की बातें कुछ पल भी नहीं ठहर सकी, ये क्या हुआ ? बचपन की नैतिक शिक्षा की पुस्तकें, राम-लक्ष्मण की कहानियां पंचतंत्र के किस्से सब के सब पाठ्यपुस्तक से डिलीट हो गए….कौन से स्याही से लिखे गए थे सब के सब।
आखिर इन सबमे कोरोना का क्या दोष ? समझदार लोग कहा करते हैं कि अगर सम्बन्ध अच्छे रखने हो तो किसी को आजमाना मत पर कोरोना को ये क्या पता, उसने एक झटके में सबको आजमा लिया …….अब क्या होगा ? कोरोना ने सिर्फ हमारी खोखली व्यवस्थाओं और मान्यताओं पर चोट किया है कोई बुरा काम नहीं किया है। तथ्य भी उसके पक्ष में हैं कि इसकी मृत्यु दर अन्य बिमारियों की अपेक्षा काफी कम तथा रिकवरी काफी अच्छी है। हमरा सारा भय हमारी अपनी इच्छाओं, लालसाओं और अपनी दो कौड़ी की आस्थाओं के कारण है। कोरोना निर्दोष है उसने तो हमको एक अच्छे मार्गदर्शक की भांति चेताया है कि संभल जाओ अभी समय है।
एक बार फिर विचार करते हैं ये आपदा है या अवसर। मेरे विचार में ये अवसर है पुरानी पद्धतियों, मान्यताओं, विचारों, परिपाटियों को तोड़ने का अपने आप को प्रकृति के रूप में उस परमसत्ता से जोड़ने का उसको समझने का। कोरोना की इस चेतावनी में बहुतों ने अपने प्राण भी गवाएं हैं उनका बलिदान तभी सार्थक होगा जब हम इस कमजोरी को अपनी ताकत बना लें हम प्रतिज्ञा कर लें कि कोरोना कुछ भी कर ले हम किसी को भी इसके भय से नहीं जाने देंगे हम पॉजिटिव को पाजिटिविटी में बदल कर रहेंगे।
@मयंक मिश्र