हर स्कूल और कॉलेज के स्टूडेंट्स को कोई छोटा बिजनेस करने का मौका मिलना चाहिए

आजकल तरह-तरह की एग्जीबिशन लगती हैं। किताबों की, कपड़ों की, हैंडीक्राफ्ट की। एक नया ट्रेंड है स्टार्टअप एग्जीबिशन। यानी कि वो कम्पनियां जो हाल में शुरू हुई हैं, उनकी प्रदर्शनी। आप उनके प्रोडक्ट्स देख सकते हैं, खरीद सकते हैं, उनके संस्थापकों से बातचीत कर सकते हैं। ऐसी एक एग्जीबिशन कुछ दिन पहले दिल्ली शहर में मैंने अटेंड की। हर तरह के बिजनेस देखने को मिले।

एक तो वो प्रोडक्ट्स जो आमतौर पर बाजार में मिलते हैं। मगर फिर भी इनका थोड़ा हटके लगा। जैसे कि एक स्टॉल पर साबुन बिक रहा था। कौन-सी बड़ी बात है? मगर स्टार्टअप का दावा था कि हमारे साबुन में केमिकल बिलकुल नहीं। और सिर्फ हमारा कहना न मानिए, हमने लैब से टेस्ट भी करवाया है। दूसरे स्टॉल पर प्रदर्शित थे ब्लुटूथ स्पीकर, वो भी सिर्फ 299 रुपए में।

इनके संस्थापक ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान जब बच्चे ऑनलाइन क्लास में शामिल होते थे तो मोबाइल में ठीक से आवाज नहीं आती थी। तो उन्हें आइडिया मिला एक किफायती और अट्रैक्टिव ब्लुटूथ स्पीकर बनाने का। कीमत कम रखनी थी, इसलिए थोक बाजार से उन्होंने पुर्जे खरीदे। पब्लिसिटी अपने परिचितजन और सोशल मीडिया द्वारा कराई गई। एक सवाल बार-बार आया- कि अगर प्रोडक्ट चला नहीं तो?

इसके उत्तर में कम्पनी बोली, हम आपको छह महीने की वारंटी देते हैं। जबकि मेड इन चाइना वाले स्पीकर को भगवान भरोसे लेना पड़ता है। फिर कुछ स्टॉल ऐसे थे, जहां एकदम अलग सोच से बनाए गए प्रोडक्ट बिक रहे थे। जैसे कि वाईफाई द्वारा लाइट को बुझाने-जलाने वाले साधन। रसोई में गैस का रिसाव होने पर अलार्म, जो आपकी जान बचा सकता है। और तो और, बैटरी से चलने वाले खिलौनों को सोलर पॉवर में कनवर्ट करने का किट।

आप सोच रहे होंगे ऐसे अद्भुत काम तो कोई आईआईटी-आईआईएम के ग्रेजुएट के होंगे, जिन्हें उच्च शिक्षा और पर्याप्त धन उपलब्ध है। सच तो यह है कि इस एग्जीबिशन में 156 स्टार्टअप्स ने हिस्सा लिया था, और हर स्टार्टअप के संस्थापक थे 16-17 साल के बच्चे। जी हां, ये पूरा कमाल था ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के छात्रों का। असल में दिल्ली सरकार ने एक प्रयोग किया कि यूं तो हम क्लास में प्रॉफिट-लॉस और बिजनेस की बातें सिखाते हैं।

क्यों ना बच्चों को एक छोटा बिजनेस चलाने का असली अनुभव दिया जाए। पांच-छह बच्चों का ग्रुप बना, हर बच्चे को दो हजार रुपए का ‘सीड कैपिटल’ दिया गया। और इसी छोटी-सी पूंजी से उन्होंने किसी आइडिया को पकड़कर अपना धंधा शुरू किया। 51,000 में से चुनकर सबसे जानदार और शानदार 156 टीम्स को ‘बिजनेस ब्लास्टर’ एग्जीबिशन में बुलाया गया। बच्चों में उत्साह तो था ही, उनके टीचर भी जोश में थे।

क्योंकि एक साथ संघर्ष करके, जूझकर, सपने को हकीकत में बदलना मामूली चीज नहीं। वो आपके दिल-दिमाग को बदल देता है। सरकारी स्कूल के बच्चे निम्न वर्ग के परिवार से आते हैं। उनके सपने छोटे और सीमित होते हैं क्योंकि आस-पास का माहौल ही कुछ ऐसा है। तो क्या किया जाए? इसी सवाल का उत्तर इन बच्चों की चमकती आंखों में देखने को मिला।

अपना छोटा-सा बिजनेस चलाकर कुछ प्रॉफिट तो उन्होंने कमाया। साथ ही उनका सोया और खोया हुआ आत्मविश्वास जाग उठा। ऐसे कई बिजनेस हैं, जो कम से कम पैसे में शुरू हो सकते हैं, अगर आपके पास कोई हुनर हो, जैसे कि मेहंदी रचना, या वेबसाइट बनाना। लेकिन हिम्मत बनाकर आपको अपनी मार्केटिंग करनी पड़ेगी।

अपनी बिल्डिंग के वॉट्सएप्प ग्रुप में मैसेज डालें या मॉल के नोटिसबोर्ड पर पोस्टर। कोई न कोई देखकर आपको जरूर चांस देगा। तो सोचिए कि कम पैसों में आप क्या-क्या बिजनेस कर सकते हैं। मुझे ईमेल पर अपने आइडियाज भेजिए, मैं अगले कॉलम में शेयर करूंगी। अपने में है दम, हम किसी से ना कम!

अगर आप के घर-परिवार में ऐसे तरुण हैं, जो गर्मी की छुट्‌टी में टाइमपास कर रहे हैं तो उन्हें चैलेंज दीजिए। तीन दोस्त इकट्‌ठे होकर अपना कुछ धंधा करें। और एक महीने में 5000 रुपए कमाकर दिखाएं।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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