शिक्षा में ट्विस्ट लाएं, ताकि बच्चे स्कूल में वापस आकर सीखने को लेकर सकारात्मक रहें

‘जिस दिन तुम पैदा हुए मैं समझ गया था कि तुम्हारी जिंदगी में कुछ होने-जाने वाला नहीं है और आखिर में तुम पक्का किसी रेलवे प्लेटफॉर्म पर गाकर ही कमाओगे।’ यह डायलॉग कपिल शर्मा का अपने वीकली शो में चंदू की बेइज्जती करने वाला तो बिल्कुल नहीं है। कुछ ऐसे ताने सुनकर हमें बचपन याद आ जाएगा, जहां माता-पिता कुछ सीखने में अनिच्छुक, शैतान-मस्तीखोर बच्चों से इसी तरह की बातें कहते थे, भले वे हूबहू ऐसी न हों।

दुर्भाग्य से उस समय ऐसा कोई स्कूल या गर्मियों में 5-6 हफ्तों का कोई छोटा कोर्स नहीं होता था जो कि सीखने की उत्सुकता को धीरे-धीरे बढ़ाकर उस उद्दंड व्यवहार को दूर कर सके। अब जल्दी से 2022 में आ जाएं। जो उस समय हमारे अभिभावक नहीं कर सके, वो करने के लिए अब एक ‘बीच स्कूल’ है। ये स्कूल न सिर्फ उन बच्चों पर ध्यान देते हैं, जिनका मन उचट जाता है, साथ ही वे 5 से 16 साल के ऑटिज्म, डिस्लेक्सिया या एडीएचडी से ग्रसित बच्चों के मुद्दों पर भी ध्यान देते हैं।

इस स्कूल में हफ्ते में एक दिन बच्चे यूनिफॉर्म नहीं वेटसूट पहनते हैं, क्योंकि यह स्कूल नहीं ‘बीच स्कूल’ है। स्कूल के मैदान में चढ़ाई का कोई फ्रेम नहीं बल्कि असली चट्‌टान है। शिक्षक सिर्फ विषय विशेषज्ञ नहीं बल्कि क्वालिफाइड लाइफगार्ड हैं और शिक्षक सहायक, सर्फिंग इंस्ट्रक्टर हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि स्कूल कोई इमारत में नहीं बल्कि समुद्र के किनारे है! यह ब्रिटेन में न्यूक्वे के विशाल रेतीले बीच पर संचालित होता है।

पर यहां के छात्रों को तटीय परिवेश को ध्यान में रखकर तैयार किए गए अकादमिक कोर्स का पालन करना होता है। वह लहरों की गति और लंबाई मापकर फिजिक्स सीखते हैं, लहरों में ज्वार-भाटा का अध्ययन करके भूगोल तो चट्‌टानों में जमा पानी में इकोसिस्टम का अध्ययन करके जीवविज्ञान और समुद्र तट पर चित्रित पत्थरों के निर्देशांक का पालन करके गणित सीखते हैं।

जिन बच्चों का मन नहीं लगता, वे बच्चे इस ‘वेव (Wave) प्रोजेक्ट’ में शामिल होकर ये नोटिस कर रहे हैं कि क्यों चट्‌टान की चोटी पर मसल्स (एक तरह की कौड़ी) होती हैं और नीचे बार्नकल्स (नाकचिमटी)। शिक्षक, विज्ञान के सहारे इसका जवाब देते हैं। फिर रेत से महल बनाना शुरू कर देते हैं फिर धीरे-धीरे उनका लकड़ी और कंक्रीट के महल से परिचय कराते हैं।

शुरुआत में जोर मौखिक चीजों पर होता है ना कि लिखने पर। ऐसी कक्षाएं उन्हें सामाजिक लचीलापन सिखाती हैं, खासतौर पर उन बच्चों को जिन्हें समूहों में काम करने में कठिनाई होती है। इस कोर्स ने स्कूल को खारिज कर देने वालों के मन में स्कूलिंग के प्रति रुचि जगाई है, साथ ही मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हजारों छात्रों की मदद की है।

सामान्य स्कूलों में दाखिला नहीं हो पाने का जिन्हें डर है, उनके लिए खासतौर पर वे एक अलग और गहन कोर्स ‘सर्फ बैक टू स्कूल’ चलाते हैं। और उन्होंने विद्यार्थियों की वैलबीइंग में 17%, स्कूल उपस्थिति में 10%, आत्मविश्वास में 27% और लचीलेपन में 24% का सुधार देखा। कई बच्चे जो स्कूल नहीं जाना चाहते थे, कोर्स के बाद बोले कि ‘मुझे स्कूल से बाहर मत ले जाओ!’ कोविड से ऑनलाइन कक्षाएं शुरू हुईं।

भले शुरू में इसका विरोध हुआ, पर आज बच्चे ऑनलाइन क्लास पसंद कर रहे हैं क्योंकि इसमें कक्षा में सजग रूप से बैठना अनिवार्य नहीं है। यहां तक कि वे डिसइंगेज्ड बच्चों से कम नहीं हैं। बच्चों को कक्षाओं में वापस लाने के लिए हमें ‘वेव प्रोजेक्ट’ की तरह एक रचनात्मक योजना बनाने की जरूरत है।

फंडा यह है कि वक्त आ गया है कि स्कूल मालिक और शिक्षक अपने इलाके और वहां की भूगोल के मुताबिक नए आइडियाज़ सोचें, ताकि बच्चे स्कूल में वापस आकर सीखने को लेकर सकारात्मक रहें।

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