मध्यप्रदेश की सेहत ‘मंद …यहां 5 साल की कम उम्र में 1000 में से 56 बच्चे दुनिया छोड़ देते हैं; हर बीमारी की रैंकिंग में हम पीछे
ओवरऑल सेहत के मामले में मप्र की हालत खस्ता है। नीति आयोग की एक ताजा रिपोर्ट में मप्र को 17वीं रैंकिंग दी गई है। बीते 5 साल में हम हमारी रैंकिंग सिर्फ एक बार 16वीं हुई, लेकिन इस बार हम वापस एक पायदान फिसल गए हैं। जबकि केरल लगातार चौथे साल नंबर एक पर काबिज है। यहां तक कि छत्तीसगढ़ भी मप्र से आगे है। केवल बिहार और उप्र ही मप्र से पीछे हैं।
रैंकिंग में पिछड़ने के पीछे की बड़ी वजह ये है कि नीति आयोग ने दो बड़े मापदंडों के आधार पर 43 पैमानों का इंडेक्स बनाया है। पहला मापदंड है कि मप्र में शिशु मृत्यु दर व 5 साल से कम उम्र वालों की मौत ज्यादा हैं। यहां जन्म से 29 दिन के अंदर जान गंवाने वाले नवजातों की संख्या प्रति हजार पर 35 है। जबकि 5 साल से कम उम्र में मरने वाले बच्चे प्रति हजार पर 56 हैं।
डॉक्टरों की कमी से भी पिछ़ड़े- अस्पतालों में 5 हजार डॉक्टर, 15 हजार नर्स कम
नीति आयोग ने पांच साल में डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टॉफ की कमी को भी बड़ा मुद्दा बनाया है। मप्र के सरकारी अस्पतालों में करीब 5 हजार डॉक्टरों की कमी है। प्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेज में कुल स्वीकृत पद 2814 हैं, जिनमें 1958 भरे हैं और 856 खाली हैं।
यहां लोक सेवा आयोग से 400 डॉक्टर भर्ती किए गए हैं। जबकि मेडिकल ऑफिसर के 1400 पद खाली हैं। 2650 विशेषज्ञ डॉक्टर चाहिए। 15 हजार से ज्यादा नर्सिंग स्टाफ की कमी है। इसी प्रकार मातृ मृत्युदर मामले में मप्र की रैंक 15वीं है। 2018-19 में रैंक इससे ऊपर थी। प्रदेश में संस्थागत या अस्पतालों में डिलीवरी कराने के मामले में भी हम पीछे रहे हैं।