दिग्विजय से 16 गुना ज्यादा कर्ज में शिवराज सरकार …?
पहली बार बजट से ज्यादा हो गया कर्ज यानी इनकम से अधिक, हर व्यक्ति पर 41 हजार का बोझ; हैरान कर देगी यह रिपोर्ट…
मध्य प्रदेश पर उसके सालाना बजट से भी ज्यादा कर्ज है! यानी स्टेट की स्थिति उस घर की तरह हो गई है, जिसकी इनकम कम और कर्जा ज्यादा है। CM शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में यह कर्ज बढ़कर 3 लाख 32 हजार करोड़ रुपए हो गया। यह दिग्विजय सिंह सरकार की विदाई के वक्त से 16 गुना अधिक है। विशेषज्ञ हैरान हैं कि कर्ज में डूबी सरकार ने दो साल में बाजार से एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का लोन उठा लिया है। यह अब तक लिए गए कुल लोन का एक तिहाई है। इसका असर यह हुआ कि मप्र के हर व्यक्ति पर पांच साल में ही कर्ज बढ़कर डबल हो गया। ऐसा संभवत: पहली बार है। जॉब्स नहीं मिलने से प्रदेश में एक ही साल में पांच लाख से ज्यादा नए बेरोजगार बढ़ गए।
शिवराज सरकार में मप्र के हर व्यक्ति के माथे अब 41 हजार रुपए कर्जा है। इसी रफ्तार से बढ़ोतरी हुई, तो यह कर्ज अगले साल बढ़कर 47 हजार रुपए तक पहुंच जाएगा। 2017 तक यह कर्ज 21 हजार रुपए था। दिग्विजय सिंह के 10 साल के शासन के आखिरी साल यानी 2003-04 में प्रदेश पर 20 हजार करोड़ रुपए का कर्ज था जो प्रति व्यक्ति 3300 रुपए आता है।
सरकार की नजर से देखें तो बाजार और फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन से लोन कैपिसिटी बढ़ना अच्छा संकेत है। उसकी यह कैपिसिटी जितनी बढ़ेगी, सैद्धांतिक रूप से डेवलपमेंट के लिए पैसा खर्च हो सकेगा। इसमें सड़क, बिजली, पानी और पंचायतें शामिल हैं। साथ में पगार, पेंशन, महंगाई भत्ता और सामाजिक न्याय से जुड़ी योजनाओं पर भी राशि खर्च होगी।
कर्जदार सरकार का असर –
हेल्थ सर्विसेज में 17वें नंबर पर, सैकड़ों स्कूलों में टीचर नहीं
राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा का हाल ठीक नहीं है। देश में स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में राज्य 17वें नंबर पर है। यहां प्रति व्यक्ति सालाना सरकारी खर्च 1,428 रुपए ही होता है। राज्य में 13 चिकित्सा महाविद्यालय और करीब साढ़े 11 हजार स्वास्थ्य और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, जहां पर विशेषज्ञ चिकित्सकों के ज्यादातर पद रिक्त हैं।
इसी तरह, राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं, जहां या तो शिक्षक नहीं हैं अथवा एक शिक्षकों के भरोसे स्कूल चल रहे हैं। आदिवासी बाहुल्य आलीराजपुर, झाबुआ, बड़वानी, सिंगरौली, सीधी, मंडला व धार जिलों के 1587 स्कूलों समेत कई अन्य जिलों में बड़ी संख्या में स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं।
मप्र में 1.30 करोड़ बेरोजगार
राज्य में रोजगार बड़ा मुददा है। सरकार हर साल एक लाख लोगों को रोजगार देने का वादा कर रही है, जबकि एक साल में ही राज्य में 5.46 लाख बेरोजगार बढ़ गए हैं। प्रदेश में पिछले साल 24.72 लाख पंजीकृत बेरोजगार थे, जो अब 30.23 लाख हो गए हैं। हालांकि केंद्र सरकार का ई-श्रम पोर्टल बताता है कि राज्य में 1.30 करोड़ बेरोज़गार हैं, जिसमें से 35% ग्रेजुएट हैं।
नए कर्ज की राशि का 50% सिर्फ ब्याज में
- आंकड़ों से स्पष्ट है कि वर्ष 2021-22 में सरकार ने जो कर्ज लिया था, उसकी 50% राशि यानि 20 हजार करोड़ रुपए केवल ब्याज में खर्च हुई। वर्ष 2022-23 में ब्याज भुगतान की राशि बढ़कर 22 हजार करोड़ रुपए हो जाएगी। पिछले 5 वर्षों में (वर्ष 2017-18 से 2021-22 तक) मध्यप्रदेश सरकार द्वारा करीब 74 हजार करोड़ रुपए सिर्फ ब्याज में व्यय की है।
- – वर्ष 2020 में सत्ता परिवर्तन के बाद नई सरकार ने गत 2 वर्षों में 92 हजार करोड़ रुपए के कर्ज लिए। 36 हजार करोड रुपए की राशि केवल ब्याज में खर्च की है। इस वर्ष यह सरकार करीब 52 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेगी। 22 हजार करोड़ रुपए ब्याज चुकाने में खर्च करेगी।
कम हो रही प्रति व्यक्ति आय
एक तरफ राज्य पर कर्ज बढ़ रहा है, वहीं प्रति व्यक्ति आय कम हो रही है। प्रचलित भाव के आधार पर देखें, तो जहां प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2019-20 में एक लाख 33 हजार 288 थी, वो वर्ष 2020-21 में घटकर 98 हजार 418 रह गई। देश की प्रति व्यक्ति आय एक लाख 27 हजार है। इसी तरह, स्थिर भाव में भी यही हाल हुआ। वर्ष 2019-20 में आय 62,233 थी, वह वर्ष 2020-21 में घटकर 58,425 रुपए वार्षिक हो गई। देश में प्रति व्यक्ति आय 86 हजार 456 रुपए है। बीते दो सालों से कोरोना महामारी की मार के चलते यह आय और भी घटने की आशंका है।
आगे क्या
अब हर महीने 400 करोड़ रु. ज्यादा कर्ज लेगी सरकार
मध्यप्रदेश सरकार ने 2020-21 में 52 हजार 413 करोड़ रुपए, 2021-22 में 40 हजार 082 करोड़ रुपये का शुद्ध कर्ज लिया। यानी एवरेज हर महीने करीब 3 हजार 900 करोड़ रुपए का कर्ज लिया है। सरकार के अनुसार 2022-23 में 51 हजार 829 करोड़ रुपए का कर्ज लेगी। यानी अब यह बढ़कर हर महीने लगभग 4,300 करोड़ रुपए कर्ज होने जा रहा है।
22 हजार करोड़ सिर्फ ब्याज
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा जो कर्ज लिए जाते हैं, उस पर प्रतिवर्ष ब्याज भी देना होता है। वर्ष 2017-18 में सरकार द्वारा लिए गए कर्ज पर 11,045 करोड़ रुपए ब्याज दिया था। 2020-21 में सरकार द्वारा 15,917 करोड़ व 2021-22 में 20, 040 करोड़ रुपए ब्याज दिया जा रहा है। सरकार के अनुसार वर्ष 2022-23 में वह 22,166 करोड़ रुपए केवल ब्याज के भुगतान में खर्च करेगी।
ऐसे कर्ज लेती है सरकार
सरकार आरबीआई के माध्यम से कर्ज लेती है। इसमें सरकार को बताना होता है कि इस राशि को कहां और कैसे खर्च करना है। इसके लिए सरकार नोटिफिकेशन जारी करती है। इसमें कर्ज लेने के कारण की जानकारी दी जाती है। आरबीआई की अनुशंसा के बाद सरकार इस कर्ज को लेती है। यह पैसा आरबीआई में रजिस्टर्ड वित्तीय संस्थाएं देती हैं।
चिंता की बात-
प्रदेश की हालत श्रीलंका जैसी न हो जाए
अर्थशास्त्री जयंतीलाल भंडारी बताते हैं कि श्रीलंका के भीषण आर्थिक संकट को सामने रखकर मप्र की अर्थव्यवस्था संभालने की जरूरत है। श्रीलंका की स्थिति 3-4 सालों में बुरी तरह बिगड़ी है। देश ने टैक्स घटा दिए और लोकलुभावन योजनाएं, मुफ्त की सौगातें बांटीं। ऐसे हालात बना लिए कि लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान की सप्लाई करना भी मुश्किल हो गया। निष्कर्ष है कि यदि लोकलुभावन योजनाओं की तरफ बढ़ते हैं, तो अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा ही। कहीं ऐसा न हो कि प्रदेश की हालत भी श्रीलंका जैसी हो जाए। इसके लिए प्रदेश सरकार को ऐसी योजनाओं से बचना पड़ेगा। पंजाब में तो मुफ्त की सौगातों का ढेर लगा दिया गया। ऐसे में प्रदेश का विकास रुकेगा।
MP अभी दिवालिया नहीं लेकिन घाटा बढ़ रहा : एक्सपर्ट
भंडारी कहते हैं कि मप्र की अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं है। कर्ज के आंकड़े बताते हैं कि सरकार यदि अतिरिक्त कर्ज लेने लगेगी तो विकास पर असर पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 3 अप्रैल को वित्त मंत्रालय के अफसरों की बैठक हुई। इसमें बताया गया कि देश के कई राज्य लोकलुभावनी योजनाओं, रियायतों और मुफ्त की सौगातें दे रहे हैं। उनकी वित्तीय स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। मध्य प्रदेश अभी दिवालिया वाली स्थिति में नहीं है लेकिन राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है।
अलर्ट रहने के संकेत
यह सरकार को अलर्ट रहने के लिए संकेत ही हैं कि ज्यादा कर्ज लेने से बचना चाहिए। जैसे-जैसे कर्ज बढ़ेगा, वैसे-वैसे बुनियादी ढांचे और विकास के संसाधन कम होते जाएंगे। हम कोरोना की चुनौतियों से निकल चुके हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध का असर मप्र पर कम है। यहां से गेहूं का निर्यात बढ़ेगा। ऐसे में आमदनी बढ़ेगी लेकिन वित्तीय संसाधन जुटाने और कम से कम कर्ज लेने की नीति पर आगे बढ़ने की बिल्कुल जरूरत है।