MP में BJP के लिए आदिवासी वोट क्यों जरूरी?
अमित शाह कल भोपाल में; लगातार दूसरे दौरे में भी ट्राइबल पर फोकस, जानिए वजह…
मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले BJP आदिवासी वोट बैंक को लेकर बहुत चौकन्नी है। वह 2018 की गलती नहीं दोहराना चाहती। इसलिए इस वर्ग को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इसी कड़ी में देश की गृह मंत्री और भाजपा के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह 22 अप्रैल को भोपाल आ रहे हैं। जो आदिवासियों से जुड़े एक कार्यक्रम को संबोधित करेंगे। यह अमित शाह का लगातार दूसरा दौरा है। जिसमें आदिवासी ही केंद्र में रहेंगे। कुछ महीने पहले वे जबलपुर भी आए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नवंबर 2021 में भोपाल दौरा किया तो उनका भी कार्यक्रम आदिवासी वर्ग से जोड़कर ही बनाया गया था।
इस वर्ग पर BJP का इतना हाईफोकस क्यों.. आइए आपको बताते हैं-
बात साल 2000 के आसपास की है। यही वह साल है जब RSS ने MP के आदिवासियों और वनवासियों को जोड़ने के लिए ताकत झोंकी। 2002 में झाबुआ में हिंदू संगम हुआ। दो से ढाई लाख आदिवासी जुटे और पूरा खेल पलट गया। 10 साल से सत्ता में काबिज दिग्विजय सरकार को कुर्सी गंवाना पड़ी। ये आदिवासी वोट बैंक को साधने का नतीजा था कि BJP धुआंधार तरीके से सरकार में आ गई।
2008 और 2013 के चुनाव में भी आदिवासी वोट बैंक BJP से जुड़ा रहा लेकिन 2018 में पलट गया। CM के रूप में तीन पारी खेल चुके CM शिवराज सिंह चौहान आदिवासियों का मूड भांपने में चूक गए। लिहाजा सत्ता गंवाना पड़ी। इससे समझने के लिए अब हम आपको कुछ आंकड़े बताने जा रहे हैं ।
मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद आदिवासी बहुल विधानसभा सीटों की संख्या 41 रह गई। 2003 के चुनाव में आदिवासी वोट बैंक के दम पर भाजपा ने 41 में से 37 सीटों (सक्सेस रेट 90%) पर कब्जा कर लिया। यह कांग्रेस के लिए हैरान करने वाला था और यही बड़ा उलटफेर साबित हुआ। नतीजों ने कांग्रेस की ‘कमर’ तोड़ दी। वह सोचने को मजबूर हो गई कि शहरी वोटर तक BJP का प्रभाव समझ में आता था, गांव-जंगलों के बेल्ट में हार ने कांग्रेस की जड़ें हिला दीं।
याद कीजिए, CM शिवराज के वे नारे। वे फसल मुआवजा के साथ कहते थे कि चाहे मुर्गा-मुर्गी, चूजा-चूजी कुछ भी हो, इसकी भरपाई की जाएगी मेरे भाइयों और बहनों। उनका यही अंदाज आदिवासियों को भाने लगा। नतीजा- दो-दो मुख्यमंत्रियों को बदलने के बावजूद शिवराज ने सरकार बचा ली। वे 143 सीट लाए। परिसीमन के कारण आदिवासी बहुल सीटें बढ़कर 41 से 47 हो चुकी थीं। इन 47 में से BJP को 2008 में 31 सीट (66%) से संतोष करना पड़ा।
2008 के बाद खुद को साबित करने के लिए शिवराज ने महिला, लाडली, किसान और बुजुर्गों के साथ आदिवासियों पर खजाना खोल दिया। नतीजा- वे 2013 में 2003 जैसी जीत दर्ज करने में कामयाब रहे और खुद को साबित करने में भी..। बीजेपी ने शिवराज के नेतृत्व में इस बार 165 सीटें जीतीं जो 2003 से सिर्फ 8 कम थीं। बड़ी बात यह रही कि आदिवासी वोट बैंक को खिसकने से राेक लिया। इस वर्ग की 47 सीटों में से 31 पर जीत के साथ 2008 का आंकड़ा यथावत रखा।
2013 की जीत से उत्साहित BJP ने विकास पर फोकस किया लेकिन आदिवासियों को जोड़े रखने की स्ट्रेटेजी में शिवराज सरकार चूक गई। नतीजा 2018 आते-आते यह वोट बैंक फिर कांग्रेस के पास खिसक गया। जो BJP 2003 में 92% के सक्सेस रेट से आदिवासी सीटें जीत रही थीं, वह 2018 में 34% ही रह गया। वह इस वर्ग की 47 में से सिर्फ 16 ही सीट जीत पाई। और सरकार गंवाना पड़ी। एनालिसिस में यही बात निकलकर आई कि आदिवासी ही ऐसा वोट बैंक जिसे साधने के लिए लगातार काम करना और दिखाना होगा, 2013 से 2018 में यही चूक की।
यही वजह है कि अब शिवराज सरकार दो साल से आदिवासियों को मनाने और लुभाने के लिए लगातार इवेंट्स कर रही है। जबलपुर में गृह मंत्री अमित शाह ने सितंबर 2021 में गृहमंत्री अमित शाह ने जबलपुर में गोंडवाना साम्राज्य के अमर शहीद राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर कार्यक्रम में शामिल हुए। जनजातीय अभियान की शुरुआत की। इसके बाद नवंबर 2020 में भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के लोकार्पण के साथ आदिवासियों के कार्यक्रम में PM नरेंद्र मोदी ने हिस्सा लिया। अब यह तीसरा प्रोग्राम तेंदूपत्ता संग्राहकों का है जो भोपाल में होने जा रहा है। इसमें गृह मंत्री शामिल होंगे और आदिवासियों को सौगातें देंगे।
BJP का 4 चुनाव के सक्सेस रेट में आदिवासी सीटों का ग्राफ
– 2003 में आदिवासी वर्ग की 41 में से 37 सीटें जीतीं – सक्सेस रेट 92% रहा
– 2008 में आदिवासी वर्ग की 47 में से 31 सीटें जीतीं – सक्सेस रेट 66% रहा
– 2013 में आदिवासी वर्ग की 47 में से 31 सीटें जीतीं – सक्सेस रेट 66% रहा
– 2018 में आदिवासी वर्ग की 47 में से 16 सीटें जीतीं – सक्सेस रेट 34% रहा
(परिसीमन के बाद 2008 में प्रदेश में 6 आदिवासी सीटें बढ़ गई थीं, नोट- उपचुनाव जीत में 1 सीट बढ़ने से अब BJP के पास 17 सीटें हैं)
आदिवासी वर्ग से बनाया राज्यपाल
बीजेपी ने आदिवासी वर्ग के मंगुभाई पटेल को मध्यप्रदेश का राज्यपाल बनाया है। इसके जरिए बीजेपी ने खुद को आदिवासी हितैषी बताने की कोशिश की है। बीजेपी को उम्मीद है कि उसके इस कदम का फायदा उसे 2023 के चुनाव में मिलेगा।
RSS भी आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय
संघ के सहयोगी संगठन वनवासी कल्याण परिषद के पदाधिकारी लगातार आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय हैं। जो आदिवासियों के जरूरी मुद्दों को उठाते रहे हैं। बीजेपी को इससे भी लाभ मिलने की उम्मीद है। RSS आदिवासी क्षेत्रों में हिंदुत्व के एजेंडे पर भी काम कर रहा है।
आदिवासियों को रिझाने BJP सरकार द्वारा उठाए कदम
- भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिवस यानी 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया गया।
- 89 आदिवासी विकासखंडों में आदिवासियों को उनके गांव में उचित मूल्य पर राशन देने की व्यवस्था की गई है। 15 नवंबर 2021 को PM मोदी ने भोपाल में इस योजना के तहत राशन वितरण के लिए आदिवासी युवाओं को वाहन की चाबी सौंपी।
- भोपाल की गौंड रानी कमलापति के नाम रेलवे स्टेशन का नाम किया।
- आदिवासियों के हितों को संरक्षित करने के लिए मध्यप्रदेश में पेसा एक्ट लागू किया गया। इसके अंतर्गत तेंदूपत्ता बेचने का कार्य ग्राम वन समिति, ग्राम सभा को दिया जाएगा।
- 800 ग्रामों को राजस्व ग्राम में बदला जाएगा।
- इंदौर के भंवरकुआं चौराहा का नाम बदलने की घोषणा की।