बुलडोजर-लाउडस्पीकर से पहले ये 8 टूल्स बन चुके हैं राजनीति का हथियार; जानिए चरखे से लेकर हथौड़े की कहानी
भारत की राजनीति में इन दिनों दो मशीनों के बड़े चर्चे हैं- पहला बुलडोजर और दूसरा लाउडस्पीकर। 1904 में बुलडोजर की खोज करते हुए बेंजामिन होल्ट और 1876 में लाउडस्पीकर बनाते हुए हुए ग्राहम बेल; दोनों ने नहीं सोचा होगा कि उनका आविष्कार एक दिन भारत का सबसे बड़ा पॉलिटिकल टूल बन जाएगा।
हालांकि, ये पहला मौका नहीं है जब आम लोगों के इस्तेमाल की कोई चीज देश और दुनिया में एक बड़े पॉलिटिकल टूल के रूप में उभरी हो।
भास्कर इंडेप्थ में आज हम ऐसे ही 10 पॉलिटिकल टूल्स की कहानी जानेंगे, जिन्होंने देश और दुनिया की राजनीति में तहलका मचा दिया…
1. UP से निकलकर दिल्ली की गलियों में पहुंची बुलडोजर की कार् वाई
- कंस्ट्रक्शन साइट्स पर अकसर दिखने वाला पीले रंग का बुलडोजर आजकल भारत की राजनीति में चर्चा का मुद्दा है। इसकी शुरुआत की उत्तर प्रदेश के CM योगी आदित्यनाथ ने। 2017 से लेकर अब तक भू-माफियाओं के कब्जे से 67,000 एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन मुक्त कराने पर उन्हें ‘बुलडोजर बाबा’ कहा जाने लगा।
- UP में बुलडोजर सख्त कानून व्यवस्था लागू करने और माफियाओं पर कार्रवाई करने के लिए CM योगी के सुशासन का प्रतीक बन गया। 2022 में ही हुए UP चुनाव के दौरान BJP ने ‘UP की मजबूरी है, बुलडोजर जरूरी है’ का नारा भी दिया था।
- इन्हीं के पदचिन्हों पर चलते हुए मध्य प्रदेश के CM शिवराज सिंह चौहान ने भी खरगोन हिंसा के दौरान दंगाइयों की अवैध संपत्ति ढहाने करने के लिए बुल्डोजर का इस्तेमाल किया। इसके बाद उनका नाम ‘बुलडोजर मामा’ पड़ गया।
- वहीं, दिल्ली के जहांगीरपुरी में हिंसा के बाद अवैध निर्माण को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया। हालांकि, इसके कुछ देर में ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी, जो अब तक बरकरार है।
2. राज ठाकरे के बयान से शुरू हुई लाउडस्पीकर पर पॉलिटिक्स
- मंदिर, मस्जिद और शादी-पार्टियों में दिखने वाले लाउडस्पीकर की गूंज पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र से लेकर UP तक की राजनीति में सुनाई दे रही है। दरअसल, महाराष्ट्र में नव निर्माण सेना पार्टी के अध्यक्ष राज ठाकरे ने मस्जिदों से 3 मई तक लाउडस्पीकर हटाने की मांग की थी। ऐसा ना करने पर उन्होंने लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा सुनाने की चेतावनी भी दी थी।
- नासिक के पुलिस कमिश्नर दीपक पांडे ने मस्जिद के 100 मीटर के दायरे में अजान से 15 मिनट पहले या बाद में कोई भी धार्मिक गीत नहीं बजाने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद विवाद और बढ़ गया।
- इस दौरान UP में लाउडस्पीकर को हटाने के लिए के लिए अभियान चलाया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए राज्य के अलग-अलग जिलों में मंदिर-मस्जिद से लाउडस्पीकर हटाए गए। CM योगी ने भी 10,923 लाउडस्पीकरों को धार्मिक स्थानों से हटाने के निर्देश दे दिए।
- अप्रैल के आखिर तक UP के 12 जोन और कमिश्नरेट में धार्मिक स्थानों पर लगे 6,031 लाउडस्पीकर को हटा दिया गया। वहीं, 29 हजार 674 धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर्स की आवाज को तय मानक के हिसाब से सेट किया गया।
3. CM नीतीश ने PMO भेजे थे 1 लाख से ज्यादा DNA सैंपल्स
- 2015 में बिहार के CM और जदयू पार्टी के नेता नीतीश कुमार ने 1 लाख लोगों के DNA सैंपल PM ऑफिस भेजे थे। दरअसल, बिहार चुनाव से पहले एक परिवर्तन रैली के दौरान PM मोदी ने कहा था कि सीएम नीतीश के DNA में कोई दिक्कत है, तभी वो बार-बार अपने राजनीतिक सहयोगियों का साथ छोड़ देते हैं।
- इस बयान से बौखलाए नीतीश ने PM मोदी के खिलाफ ‘शब्द वापसी’ अभियान चलाया था। उन्होंने कहा कि बिहार के हर एक शख्स का DNA एक जैसा है। हम PMO में बिहार के लोगों के DNA टेस्ट के लिए बाल और नाखून के सैंपल भेज रहे हैं।
- PMO ने इन सैंपल को लेने से इनकार कर दिया था। इसके बाद नीतीश ने तंज कसते हुए कहा था, नहीं चाहिए तो वापस कर दो। इस पूरे मामले पर नीतीश ने प्रधानमंत्री को खत भी लिखा था।
4. 1988 से चल रहा है चुनाव से पहले रथ यात्रा का ट्रेंड
- चुनाव के दौरान नेता जनता को लुभाने के लिए अक्सर नए-नए पैंतरे अपनाते हैं। कोई पैदल मार्च निकालता है तो कोई रथ यात्रा करता है। राजनीति में पहली बार रथ यात्रा की शुरुआत पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल ने की थी।
- साल था 1988। वीपी सिंह बोफोर्स घोटाले के खिलाफ पूरे देश में आवाज उठा रहे थे। इस दौरान उनका साथ दिया चौधरी देवी लाल ने। वे एक मेटाडोर में सवार होकर किसानों के बीच गए और अपनी बात रखी। इस मेटाडोर को नाम दिया गया था क्रांति रथ और इस यात्रा को नाम दिया गया था क्रांति रथ यात्रा। नतीजा ये हुआ कि 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 543 में से सिर्फ 197 सीटों पर सिमट गई।
- रथयात्रा को चलन में लाने का श्रेय जाता है लालकृष्ण आडवाणी को। वीपी सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद BJP ने एक और रथयात्रा निकाली। इसे नाम दिया गया था स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, जिसका मकसद था राम मंदिर का निर्माण।
- 25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ मंदिर से लाल कृष्ण आडवाणी एक मेटाडोर पर सवार हुए, जो अयोध्या जानी थी। हालांकि, इससे पहले ही बिहार में आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। रथयात्रा अधूरी रह गई और इसके साथ ही वीपी सिंह सरकार का कार्यकाल भी अधूरा रह गया। आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद BJP ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।
5. कांग्रेस ने की थी रेडियो क्रांति की शुरुआत
- 60-70 के दशक में मनोरंजन का मुख्य जरिया रहे रेडियो ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अहम भूमिका निभाई। 1942 में महात्मा गांधी के ‘करो या मरो’ नारा देने के बाद आंदोलनकारियों को पकड़ने का सिलसिला शुरू हो गया। इस दौरान अखबारों पर भी कई पाबंदियां लगा दी गईं।
- 9 अगस्त, 1942 को कुछ युवा कांग्रेस समर्थकों ने एक बैठक की जिसमें अखबार की जगह रेडियो का इस्तेमाल करने का फैसला हुआ।
- इंग्लैंड से टेक्नोलॉजी सीखकर आए नरीमन अबराबाद प्रिंटर ने ट्रांसमिटर बनाया और कांग्रेस कार्यकर्ता ऊषा मेहता ने प्रसारण की कमान संभाली। रेडियो स्टेशन का नाम ‘द वॉयस ऑफ फ्रीडम’ रखा गया।
- 14 अगस्त को आवाज गूंजी- ‘यह कांग्रेस रेडियो है। 42.34 मीटर बैंड्स पर आप हमें भारत में किसी स्थान से सुन रहे हैं।
- कांग्रेस रेडियो का प्रसारण केवल 80 दिन चला। पुलिस ने 12 नवंबर, 1942 को छापा मारकर कांग्रेस रेडियो के सारे लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
- चाहे PM मोदी की मन की बात हो या छत्तीसगढ़ के CM बघेल का लोकवाणी शो, 80 दिन के अंदर क्रांति लाने वाला रेडियो आज भी देश की राजनीति में अहम भूमिका निभा रहा है।
6. स्वदेशी मूवमेंट की नींव था चरखा
- 1862 के दौरान ब्रिटेन में 67% कॉटन (सूत) बेहद सस्ते दाम में भारत से मैनचेस्टर भेजे जा रहे थे। वहां की मशीनों से बनकर आने वाले कपड़े सस्ते थे। जिससे मार्केट में इसकी डिमांड बढ़ने लगी। नतीजा ये हुआ कि भारत का हैंडलूम मार्केट सिमटने लगा।
- हैंडलूम वर्कर्स की परेशानियों को देखते हुए महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़े के बहिष्कार का अभियान चलाया, जिसका सबसे जरूरी टूल बना चरखा।
- गांधी ने लोगों को चरखे से बने खादी कपड़े पहनने के लिए प्रोत्साहित किया। इससे न सिर्फ हैंडलूम वर्कर्स को रोजगार मिला, बल्कि स्वदेशी मूवमेंट की नींव भी पड़ी।
- 1921 में महात्मा गांधी ने विदेशी सामान का बहिष्कार करने के लिए विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। इसी साल आजाद भारत के लिए बनाए गए झंडे में चरखे को भी शामिल किया गया। भारत के झंडे तिरंगे में शामिल अशोक चक्र भी चरखे से ही लिया गया है।
7. दांडी मार्च में जुड़े थे 50 हजार से ज्यादा लोग
- नमक हमारे खाने का सबसे जरूरी हिस्सा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये सिर्फ खाने का ही नहीं बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम का भी अहम हिस्सा रहा है। भारत पर शासन करते वक्त अंग्रेजों ने लोगों पर सॉल्ट टैक्स लगाया था। इसके तहत किसी को भी नमक बनाने या बेचने की इजाजत नहीं थी। ब्रिटिश सरकार नमक पर भारी टैक्स वसूलती थी।
- 31 जनवरी 1930 को महात्मा गांधी ने वायसराय इरविन को 11 मांगों के साथ एक लेटर लिखा। इसमें सॉल्ट टैक्स पर रोक लगाने की भी मांग की गई। इसे अंग्रेजों ने ठुकरा दिया। इसके बाद गांधीजी ने 12 मार्च 1930 नमक सत्याग्रह की शुरुआत की जिसे दांडी मार्च नाम दिया गया।
- दांडी मार्च की शुरुआत करीब 80 लोगों के साथ हुई थी। 386 किमी की इस मार्च के दांडी पहुंचने तक इसमें 50 हजार से ज्यादा लोग जुड़ चुके थे। दांडी में समुद्र किनारे पहुंचकर महात्मा गांधी ने गैर-कानूनी तरीके से नमक बनाया और अंग्रेजों का नमक कानून तोड़ा। आगे चलकर यह एक बड़ा नमक सत्याग्रह बन गया और हजारों लोगों ने नमक बनाया और बेचा।
8. रोटियों से बनाया गया था अंग्रेजों पर मानसिक दबाव
- भारत की आजादी के लिए कई तरह के आंदोलन चलाए गए थे। इसके लिए कभी चरखे को तो कभी नमक को हथियार बनाया गया। 1857 की क्रांति के दौरान ऐसा ही एक हथियार बना था कमल का फूल और रोटी।
- फरवरी 1857 में एक अनोखे अभियान का आगाज हुआ। पूरे भारत में रात के समय घरों और पुलिस चौकियों में हजारों रोटियां बांटी जाने लगीं। जिन लोगों के घर ये रोटियां पहुंचती वो ऐसी ही और रोटियां बनवाकर दूसरे घरों में बंटवाते।
- इसके बाद नाना साहब के रणनीतिकार तात्या टोपे के दूत हर छावनी में कमल के फूल लेकर गए। कमल की विशेषता यह होती है कि इसमें पंखुड़ियों की संख्या बराबर होती थी। पंखुड़ियां टूटने के बाद छावनियों से वापस आईं डंठलों से साफ हो जाता कि कहां से कितने फौजी क्रांति में शामिल होंगे।
- इस पूरे अभियान का मकसद अंग्रेजों पर मानसिक रूप से दबाव बनाना था। रोटी और कमल बंटने की सूचना पर ब्रिटिश अधिकारियों में दहशत फैलने लगी। देशभर से करीब 90 हजार पुलिसकर्मी इस अभियान में शामिल थे। खास बात ये थी कि उस समय ब्रिटिश खतों से ज्यादा तेजी से ये रोटियां लोगों के घर पहुंच रही थीं। यही बात अंग्रेजों को खास तौर पर विचलित कर रही थी।
ये तो हुई देश की राजनीति में इस्तेमाल किए गए पॉलिटिकल टूल्स की बात। ग्लोबल हिस्ट्री में भी ऐसे कई टूल्स मिलते हैं, जिन्होंने तहलका मचा दिया। हम यहां ऐसे दो टूल्स की बात कर रहे हैं।
9. I Can’t Breathe से शुरू हुई नस्लीय भेदभाव के खिलाफ जंग
- ‘आई कान्ट ब्रीद’ यानी मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं। मिनियापोलिस में आखिरी सांस लेते वक्त जॉर्ज फ्लॉयड के मुंह से निकले ये शब्द 2021 में पूरी दुनिया में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ क्रांति लेकर आए।
- 46 साल के अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय के थे। जॉर्ज फ्लॉयड को एक दुकान में नकली बिल का इस्तेमाल करने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था। जॉर्ज पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 20 डॉलर (करीब 1500 रुपए) के फर्जी नोट के जरिए एक दुकान से खरीदारी की।
- इसके बाद एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक पुलिस अधिकारी आठ मिनट तक घुटने से जॉर्ज की गर्दन दबाते नजर आया। वीडियो में जॉर्ज कह रहे हैं कि मैं सांस नहीं ले सकता (आई कांट ब्रीद)। बाद में फ्लॉयड की मौत हो गई।
- इस घटना के बाद गुस्साए लोग सड़क पर उतर आए। न सिर्फ अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया में बैनर, पोस्टर और आई कांट ब्रीद की टी-शर्ट पहनकर सड़कों पर इंसाफ की मांग की। इस दौरान नारा दिया गया- #BlackLivesMatter
- आई कांट ब्रीद पर अमेरिका की मशहूर सिंगर गैब्रिएला सरमिएंटो विल्सन (H.E.R.) ने एक गाना भी बनाया जो काफी पॉपुलर हुआ।
10. रूसी क्रांति का प्रतीक था दरांती-हथौड़ा
- 1917 से 1923 तक चले रूसी क्रांति या रशियन रिवोल्यूशन के समय से हथौड़ा और दरांती कम्युनिज्म या साम्यवाद का प्रतीक रहा है। रूसी क्रांति के बाद धीरे-धीरे इसे आंदोलनों और प्रदर्शनों में अपनाया जाने लगा।
- इसमें हथौड़ा फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों का प्रतीक है, जबकि दरांती किसानों के चिन्ह के तौर पर लिया गया।
- दरांती-हथौड़े को पहली बार अंतरराष्ट्रीय तौर पर इस्तेमाल किया गया पॉलिटिकल टूल कहा जाता है। मेरडी, मोल्दोवा से लेकर केरल तक सभी कम्युनिस्ट पार्टियां हथौड़े और दरांती का प्रतीक चिन्ह इस्तेमाल करती हैं।