मध्य प्रदेश में तो वनरक्षक दे रहे अधिकारियों के दफ्तर-बंगलों पर सेवाएं, शिकार पर कैसे लगेगी रोक
वन परिक्षेत्र में गश्त की कमी के चलते मुखबिर तंत्र हो रहा है ध्वस्त, शिकारी भी दे रहे हैं चकमा
भोपाल। प्रदेश में वन्यप्राणियों का शिकार करने वालों के हौसले बुलंद होने की सबसे बड़ी वजह वन विभाग के निगरानी तंत्र का कमजोर होना है। राष्ट्रीय अभयारण्यों के साथ सामान्य वन मंडलों में भी शिकार पर अंकुश नहीं लग रहा है। प्रदेश का जंगल 8286 बीटों में बंटा है। एक बीट का दायरा 12 से 16 वर्ग किलोमीटर तक है। इसकी सुरक्षा के लिए सिर्फ एक वनरक्षक की तैनाती की जाती है, जो बढ़ती चुनौतियों के सामने कुछ भी नहीं है।
वहीं, वन रक्षकों के 14024 पदों में से 1695 खाली हैं। इनमें 20 प्रतिशत उम्रदराज हो गए हैं, जबकि चार हजार से अधिक दफ्तर व अधिकारियों के बंगले पर सेवाएं दे रहे हैं। कई बीटें खाली हैं, जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी दूसरी बीट के वनरक्षकों को दी गई है। इसी का फायदा शिकारी उठाते हैं। जानकारों का कहना है कि सुरक्षा और संवेदनशीलता नहीं बढ़ाई गई तो पारिस्थितिकीय तंत्र पर खतरा बढ़ सकता है।
राजधानी के वन कार्यालयों की हकीकत
– नई उम्र के अधिकतर वनरक्षक मैदान में जाने से बचते हैं। भोपाल सीसीएफ (चीफ कंजर्वेटर आफ फारेस्ट) कार्यालय में एक वनरक्षक कंप्यूटर चला रहा है।
– महिला वन रक्षक फील्ड पर जाने के बजाय किसी भी बहाने से कार्यालयों में ही पदस्थ रहने की कोशिश करती हैं।
– यहां 58 वर्षीय एक वनरक्षक को धुंधला दिखाई देता है, मैदान में काम नहीं कर सकते। दफ्तर में पदस्थ हैं। वहां भी कोई काम नहीं करते।
– सतपुड़ा भवन में वन विभाग के दफ्तर लगते हैं। यहां कुछ अधिकारियों के कैबिन के सामने वनकर्मियों को तैनात किया गया है। बंगलों पर भी कई की तैनाती है।
एक नजर में
पद –स्वीकृत–कार्यरत–खाली
वनरक्षक–14,024–12,329–1,695
वनपाल–4,194–2,527–1,667
उप वन क्षेत्रपाल–1,258–544–714
वन क्षेत्रपाल–1,194–813–381
कुल –20,670–16,281–4,457 नोट – मप्र वन विभाग से मिले ये आंकड़े एक दिसंबर 2021 की स्थिति तक के हैं।
इनका कहना है
वरिष्ठ अधिकारियों के पद भरे जा रहे हैं, लेकिन जंगल की सुरक्षा करने वालों के पद खाली हैं। बीटों का दायरा नहीं घटाया जा रहा है। कर्मचारियों को दफ्तर व बंगलों पर तैनात करके रखा गया है।
– निर्मल तिवारी, अध्यक्ष वन कर्मचारी संघ मप्र
अमला कम है और चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। कई बीटें खाली हैं, जिन्हें भरा जाना चाहिए। दूसरे विभागों की तुलना में वन विभाग में बहुत कम अटैचमेंट है।
– डा. राम प्रसाद, सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक मप्र
यह सही है कि जंगलों की सुरक्षा से जुड़ी व्यवस्थाओं में कई तरह की कमियां हैं, जिनका फायदा शिकारी उठा रहे हैं। कानून की कुछ धाराओं में भी बदलाव की जरूरत है।
– आरएन सक्सेना, सेवानिवृत्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक मप्र