10 पॉइंट्स में जानिए इंद्रपुर, इंदूर से कैसे बना इंदौर …..1870 में बनी पहली नगर पालिका, राजवाड़ा से नदी पार कर बच्चे जाते थे स्कूल

मालवा के पठार के शिखर पर बसा है इंदौर…। 17वीं शताब्दी में इंदौर आकार लेने लगा था। इतिहासकार रघुवीर सिंह के अनुसार 17वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों की सनदों में इंदौर कस्बे का उल्लेख है। 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक प्रमुख प्रशासनिक मुख्यालय के रूप में इंदौर परगने की पहचान बना चुका था। तब इंदौर, सरकार उज्जैन, सूबा मालवा का परगना था। 1724 के बाद के दस्तावेज़ों में परिवर्तन मिलता है और तब इंदौर को सूबा इंदौर, सरकार उज्जैन, परगना कम्पेल कहा जाने लगा था। उस समय तक होलकर सत्ता का अस्तित्व नहीं था।

गौरव दिवस उत्सव पर आज पढ़िए इंदौर बनने की कहानी…

सबसे पहले नामकरण से जुड़ी किवदंतियां
नर्मदा घाटी के मार्ग पर व्यापार-व्यवसाय को उन्नत करने की दृष्टि से इस स्थान का महत्व बढ़ता चला गया। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार मराठों के मालवा में आगमन के साथ तब के इंदौर क्षेत्र का महत्व बढ़ता गया। होलकरों का अधिपत्य इंदौर पर 1730 में हुआ। जब पेशवाओं ने उन्हें जागीर दी। इतिहासकार स्व. डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर की पुस्तकों में राष्ट्रकूट शासक इंद्र के नाम पर इस नगर का नाम इंद्रपुर रखा गया जो आगे चलकर इंदौर हो गया।

एक और किवदंती के अनुसार 1741 में इंद्रेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना हुई। इस मंदिर के नाम पर इस क्षेत्र का नाम पहले इंद्रेश्वर फिर इंद्रपुर हुआ। 1732 में इंदौर कस्बा होलकर राज्य के संस्थापक मल्हार राव होलकर को पेशवा द्वारा जागीर में दिया गया था। इंदौर के विकास के प्रति सूबेदार मल्हारराव होलकर के चिंतित होने का पहला प्रबल प्रमाण 7 जनवरी 1743 में उनके द्वारा इंदौर के कानूनगो (राजस्व अधिकारी) को लिखा गया पत्र है। इस पत्र में उन्होंने लिखा कि वे बाहर के व्यापारियों और साहूकारों को इंदौर आने और यहां बसने के लिए प्रभावित और प्रोत्साहित करें।

राजबाड़ा के दरबार हॉल में लगा राजदरबार। सिंहासन पर हैं महाराज यशवंतराव होलकर द्वितीय।
राजबाड़ा के दरबार हॉल में लगा राजदरबार। सिंहासन पर हैं महाराज यशवंतराव होलकर द्वितीय।

1. राजबाड़ा : यह देश का एकमात्र पैलेस जिसका दरवाजा सात मंजिला
एक पुस्तक इसका अस्तित्व 1766 में बताती है और दूसरी 1809 में। इसके निर्माण का एक और संदर्भ 1811 से 1833-34 तक का है। शहर के मध्य बसा यह विशाल सात मंजिला महल 4 लाख रुपए में बनवाया गया था। इसकी लंबाई 318 फुट और चौड़ाई 232 फुट है। होलकर रियासत के संस्थापक मल्हार राव होलकर ने अपने अंतिम दिनों में राजबाड़ा बनवाने की शुरुआत की। हालांकि, इसे बनवाने का श्रेय मल्हार राव होलकर द्वितीय को जाता है।

इंदौर का राजवाड़ा। 1801, 1908 और 1984 में यहां अलग-अलग कारणों से आग लगी पर आज भी यह इंदौर की पहचान है।
इंदौर का राजवाड़ा। 1801, 1908 और 1984 में यहां अलग-अलग कारणों से आग लगी पर आज भी यह इंदौर की पहचान है।

इस इमारत में तीन बार 1801, 1908 और 1984 में आग लगने का उल्लेख मिलता है। महाराजा यशवंत राव होलकर ने उज्जैन पर आक्रमण किया था। जवाबी हमले में सरजे राव घाटगे ने इंदौर पर आक्रमण किया और इंदौर को लूटा। राजबाड़ा की ऊपरी दो-तीन मंजिलों में आग लगाई। होलकर रियासत के दीवान तात्या जोग ने 1811 में एक बार फिर इसका निर्माण कराया। इसके बाद 1908 में राजबाड़ा की लेफ्ट विंग में आग लगी और फिर 1984 के दंगों में राजबाड़ा को सर्वाधिक क्षति पहुंची। दो शीश महल जलकर खाक हो गए। यह देश का एकमात्र ऐसा पैलेस है, जिसका दरवाजा सात मंजिला है।

इंदौर के राजा होलकर की हाथी सेना।
इंदौर के राजा होलकर की हाथी सेना।

जब गांधी हॉल में होती थी विधानसभा बैठक
1948 में मध्यभारत राज्य का निर्माण हुआ, तब इंदौर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी। आज के कमिश्नर कार्यालय मोती बंगले में मंत्रीमंडल कार्य किया करता था। गांधी हॉल में विधानसभा की बैठक होती थी।

रेसीडेंसी की वो तस्वीर जब यहां कान्ह नदी बहा करती थी।
रेसीडेंसी की वो तस्वीर जब यहां कान्ह नदी बहा करती थी।

2. इमली साहब गुरुद्वारा
एक मान्यता है कि दक्षिण भारत की यात्रा करने के लिए जब सिख गुरु नानकदेव इंदौर आए थे, तब उन्होंने नगर के बाहर इमली के एक घने पेड़ के नीचे विश्राम किया था। बाद में इसी पेड़ के पास गुरुद्वारा बनवाया गया। नाम दिया गया इमली साहब गुरुद्वारा।

तब का नवलखा। यहां बड़ी संख्या में खजूर के पेड़ हुआ करते थे।
तब का नवलखा। यहां बड़ी संख्या में खजूर के पेड़ हुआ करते थे।

3. वो किस्सा जिससे देवी अहिल्या के मन में स्त्री सुधार का विचार जन्मा
घटना 12 जून 1784 की है। सराफा के सेठ अनूपचंद के पुत्र की फर्म तिलोकसी पद्मसी पर 25 डकैतों ने धावा बोला। उन्होंने सेठ के 20 वर्षीय दामाद, गुमास्ता व नौकर की हत्या कर दी। डाकू 2 हज़ार रुपए का माल लूटकर भाग निकले। रास्ते में भी मारकाट की। ऐसी ही एक घटना 1791 में हुई। शिकारी जाति की एक महिला ने कपड़ा व्यापारी के यहां चोरी की पर रंगेहाथों पकड़ ली गई। जनता ने उसे पीटा। लोगों ने कहा कि उसके नाक कान काट दिए जाएं और गधे पर बैठाकर नगर में उसका जुलूस निकाला जाए। मां अहिल्या इस नृशंसता के लिए तैयार नहीं हुईं। यहीं से उनके मन में स्त्री सुधार और उन्हें नई दिशा देने का विचार जन्मा।

इंदौर की पहली घड़ी की दुकान। इसका नाम दी राइजिंग सन कमर्शियल कंपनी रखा गया।
इंदौर की पहली घड़ी की दुकान। इसका नाम दी राइजिंग सन कमर्शियल कंपनी रखा गया।

4. 1832 में बनवाया गोपाल मंदिर, 80 हजार आई लागत
होलकर राज परिवार की महिलाएं महानुभाव पंथ का अनुसरण करने वाली थीं। जिसमें कृष्ण को अवतारी पुरुष मानकर उनकी पूजा की जाती है। यशवंतराव होलकर प्रथम की पत्नी कृष्णाबाई साहेब भी इस संप्रदाय का अनुसरण करती थीं। उन्होंने राजबाड़ा के बिलकुल पास कृष्ण मंदिर बनवाया जो गोपाल मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इसके निर्माण में तब 80 हजार रुपए खर्च हुए थे।

इंदौर की सड़कों पर एम्फिबियन जीप।
इंदौर की सड़कों पर एम्फिबियन जीप।

5. नदी पार कर स्कूल पहुंचते थे विद्यार्थी, बंबई से बुलवाए गए शिक्षक
1818 में होलकरों और अंग्रेजों के बीच हुई मंदसौर संधि के अनुसार इंदौर होलकरों की राजधानी बना और यहां एक ब्रिटिश रेजीडेंट रखने पर सहमति बनी। तब रेसीडेंसी का निर्माण किया गया। मालवा में तब विश्व की सर्वश्रेष्ठ अफीम का उत्पादन होता था। इंदौर अफीम व्यापार का विश्वविख्यात केंद्र था। अफीम की पेटियों पर जो कर वसूला जाता था, उसे शिक्षा में लगाने का निर्णय लिया गया। संपूर्ण होलकर राज्य और इंदौर नगर में पाश्चात्य शिक्षा व्यवस्था पर आधारित पहला विद्यालय महाराजा हरिराव होलकर के शासनकाल में 6 जून 1841 में खोला गया। 45 विद्यार्थी थे इसकी पहली बैच में। यहां अंग्रेजी फारसी और हिंदी पढ़ाई जाती थी।

सिटी ऑफ इंदौर नाम का फाइटर एयरक्राफ्ट। एयर शो में इसे रखा गया था। यह बताने के लिए कि द्वितीय विश्व युद्ध में इंदौर का रोल अहम था।
सिटी ऑफ इंदौर नाम का फाइटर एयरक्राफ्ट। एयर शो में इसे रखा गया था। यह बताने के लिए कि द्वितीय विश्व युद्ध में इंदौर का रोल अहम था।

6.अप्रैल 1843 को यह विद्यालय रेसीडेंसी परिसर से हटाकर कान्ह नदी के तट पर कृष्णपुरा स्थित धर्मशाला में लगाया जाने लगा। स्थान परिवर्तन के साथ ही स्कूल का नाम इंदौर मदरसा रख दिया गया। फिर तोपखाने में नवीन स्कूल भवन बनाया गया। 15 अगस्त 1850 को स्कूल यहां स्थानांतरित हुआ। उस समय कृष्णपुरा पुल नहीं बना था। बच्चों को राजबाड़े की ओर से नदी पार कर नए स्कूल पहुंचना होता था। बंबई से गणपत राव को अंग्रेजी पढ़ाने बुलाया गया था।

राजवाड़ा से नदी पार कर स्कूल जाना पड़ता था। यहां खुले स्कूल की पहली बैच में 45 विद्यार्थी थे।
राजवाड़ा से नदी पार कर स्कूल जाना पड़ता था। यहां खुले स्कूल की पहली बैच में 45 विद्यार्थी थे।

1911 तक इस विद्यालय के छात्रों की संख्या 761 हो गई। तब 1912 में चिमनबाग मैदान के दक्षिणी छोर पर बड़े विद्यालय का निर्माण किया गया। 1918 में इसका उद्घाटन लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने किया और इंदौर मदरसा नाम बदलकर महाराजा शिवाजीराव हाईस्कूल रख दिया गया।

लाल बाग का बैंक्वेट हॉल। यहां होती थीं आलीशान पार्टियां। चित्र 1930 का।
लाल बाग का बैंक्वेट हॉल। यहां होती थीं आलीशान पार्टियां। चित्र 1930 का।

7. 1870 में बनी इंदौर नगर पालिका, सड़कों पर बहता था गंदा पानी, खुली नालियों से होता था वाटर सप्लाय
1866-67 तक इंदौर में 10731 मकान थे। जनसंख्या थी 56730। तब तक सार्वजनिक स्थानों, गलियों की स्वच्छता की कोई व्यवस्था नहीं थी। तब 1870 में नगर पालिका की स्थापना की गई। प्रारंभिक अनुदान के रूप में 12 हजार रुपए स्वीकृत हुए। किराएदार रखने वाले मकान मालिकों से कर वसूला गया। इस तरह नगर पालिका की शुरुआती वार्षिक आय 36 हज़ार रुपए थी। बक्षी खुमानसिंह इंदौर नगर पालिका के पहले अध्यक्ष बने। तब इंदौर में खुली नालियों से जल प्रदाय होता था।

इंदौर में ऐसी हुआ करती थी बसाहट।
इंदौर में ऐसी हुआ करती थी बसाहट।

पहले लोगों के घरों में कुएं थे। बावड़ियों का निर्माण किया गया था। 1899 में इंदौर में भयानक अकाल पड़ा। कुएं-बावड़ियां फरवरी में ही सूख गए। तब सिरपुर तालाब से नगर तक पाइप लाइन डाली गई। तालाब के मध्य फिल्टर टैंक बनवाया गया। पिपल्यापाला और एबी रोड पर जल यंत्रालय बनाए गए। यहां तक पानी खुली नालियों से भेजा जाता था। 1893-94 में पाइपलाइन डाली गई।

होलकर रानियों की हाथी गुलाबपरी।
होलकर रानियों की हाथी गुलाबपरी।

इंदौर के औद्योगिक विकास की पहली कहानी

8. हाथियों पर लदकर आई कपड़ा मिल मशीनें, फिर शहर में इतनी कपड़ा मिलें खुलीं कि इंदौर बन गया एमपी का मेनचेस्टर
इंदौर में मिलों का इतिहास 1866 से मिलता है। शहर की पहली कॉटन मिल जिसका नाम ‘स्टेट मिल’ था, उसकी स्थापना होलकरों ने की थी और इसकी मशीनें हाथियों पर लदकर आई थीं। सबसे पहले वर्ष 1867 में इंग्लैंड से ये मशीनें जलमार्ग से मुंबई बुलवाई गईं, लेकिन इसे मुंबई में जब्त कर लिया गया। कपड़ा मिलों का निर्माण रोकने के लिए होलकर राजा के विरुद्ध मुंबई उच्च न्यायालय में एक डिक्री लाई गई। इस कानूनी अड़चन के बाद मशीनें रेलमार्ग से खंडवा लाई गईं और वहां से हाथियों पर लादकर इंदौर तक पहुंचाया गया।

जूनी इंदौर के चंद्रभागा ब्रिज पर होलकर का रॉयल प्रोसेशन।
जूनी इंदौर के चंद्रभागा ब्रिज पर होलकर का रॉयल प्रोसेशन।

महाराजा तुकोजीराव होलकर द्वितीय (1844-1866) ने इंदौर में कपड़ा मिल स्थापित करने का निर्णय लिया। अंग्रेज इसके लिए सहमत नहीं थे लेकिन बाद में रेजीडेंट ने यह सहमति इस शर्त पर दी कि भारत सरकार (अंग्रेजी शासन) 3 यूरोपीय व्यक्तियों की सेवाएं मिल में लें। एमपी में कुल 16 मिलें खुलीं, जिनमें से इंदौर में स्थापित की गईं राजकुमार, होप टेक्सटाइल्स, हुकुमचंद, स्वदेशी, इंदौर मालवा मिल और कल्याण मिल। आंकड़े बताते हैं कि जब सभी मिलें अपने पूरे चरम पर उत्पादन कर रही थीं, उस वक्त करीब 14 हजार प्रत्यक्ष और 20 हजार अप्रत्यक्ष रोजगार लोगों को मिलता था। इतनी सारी कपड़ा मिलें थीं इसलिए इंदौर को एमपी का मेनचेस्टर कहा जाने लगा।

इंदौर की प्रमुख सड़क।
इंदौर की प्रमुख सड़क।

मिल का भवन 1866 ई में ठाकुरलाल मुंशी व गोपालराव थापके के निर्देशन में पूर्ण हुआ और 1871-72 में मिल से कपड़ा निर्माण प्रारंभ हुआ। ब्रूम इस मिल के प्रथम अधीक्षक बने। इस मिल की स्थापना में उस समय नौ लाख रुपए खर्च हुए थे। तत्कालीन रेजीडेंट हेनरी डेली ने अपनी जो रिपोर्ट भारत सरकार को भेजी, उसमें इस मिल स्थापना को फायदेमंद बताया। 1873-74 तक यह पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर रही थी फिर भी 224 सांचों व 10272 तकुओं से उत्पादन हो रहा था। तब मिल से धोती व लंबे वस्त्रों का उत्पादन प्रमुख था। 1875-76 में मिल का शुद्ध लाभ एक लाख छह हजार रुपए था।

इंदौर के पहले रेलवे स्टेशन का फोटो।
इंदौर के पहले रेलवे स्टेशन का फोटो।

9. नंदलालपुरा था इंदौर का पहला मोहल्ला
मराठा साम्राज्य इंदौर में आधिपत्य से पहले उज्जैन पहुंचा था और उनसे व्यापार करने के लिए कम्पेल से जमींदार 1795 में इंदौर आकर बस गए। इंदौर में जमींदारों के मुखिया नंदलाल चौधरी ने अगले ही साल व्यापार व्यवसाय के लिए नंदलालपुरा नामक नई बस्ती की स्थापना की। मुगलों की ओर से उन्हें एक सनद दी गई जिसमें लिखा है- कस्बा इंदौर के वर्तमान और भावी अहलकारों को मालूम हो कि सूबा मालवा सरकार उज्जैन कस्बा इंदौर के नंदलाल चौधरी ने उस रास्ते में अपने नाम से नंदलालपुरा नाम से नया मोहल्ला बसाया है और उस नए मोहल्ले में सायर आदि करों की छूट रहेगी।

पातालपानी-कालाकुंड खंड से गुजरती ट्रेन। खंडवा से इन्दौर को जोड़कर इस सेक्टर का नाम ‘होलकर स्टेट रेलवे’ रखा गया।
पातालपानी-कालाकुंड खंड से गुजरती ट्रेन। खंडवा से इन्दौर को जोड़कर इस सेक्टर का नाम ‘होलकर स्टेट रेलवे’ रखा गया।

10. इंदौर में रेलवे का सफर : भारत का सबसे पहला 35 मील का हिली रेलवे ट्रैक है कालाकुंड-पातालपानी
रेलवे मंत्रालय ने भारत की पांच मीटर गेज रेलवे को सुरक्षित करने का निर्णय लिया है। इसमें कालाकुंड, पातालपानी ट्रैक भी शामिल है, जिससे मात्र 16 किमी लाइन को हेरिटेज कन्जर्वेशन में लिया गया है। 17 अप्रैल 1859 में भीमाबाई होलकर तथा सन मार्च 1862 में चिमनजी बोलिया सरकार ने द ग्रेट इंडियन पेनेनसुला रेलवे (जीआईपी) के बड़ी संख्या में शेयर खरीदे। इसी के कारण कम्पनी का रुझान इंदौर की ओर बढ़ा और कम्पनी का नुमाइंदा सन् 1864 में ए.एस. आर्टन ने महाराजा तुकोजीराव से मुलाकात कर भामगढ़ (भमौर) से इंदौर तक रेलवे लाइन लाने का प्रस्ताव रखा। महाराजा होलकर ने इस रेलवे लाइन के लिए निःशुल्क भूमि उपलब्ध कराने तथा अपने द्वारा दी गई राशि पर 5 प्रतिशत की दर से ब्याज का प्रस्ताव रखा। यह पहली वार्ता थी, जो की विफल रही। सन् 1969 में एजेन्ट टू गवर्नर जनरल ऑफ मेजर हेनरी डार्मेट डेली ने ब्रिटिश गवर्नमेंट व महाराज के बीच सीधा संवाद कराया। कुछ शर्तों के साथ महाराजा होलकर ने 1 मिलियन स्टर्लिंग पाउंड का ऋण देने की सहमति देते हुए इन्दौर को रेलवे का टर्मिनल बनाने की बात रखी। महाराजा होलकर ने ब्रिटिश हुकूमत को वन मिलियन स्टर्लिंग पाउंड (एक करोड़ रूपए) एक सौ एक वर्ष के लिए साढ़े चार प्रतिशत ब्याज पर छः माही भुगतान की शर्त पर मंजूरी प्रदान की। साथ ही ग्रेट इंडियन पेनेनसुला रेलवे जीआईपी खंडवा से इंदौर को जोड़कर इस सेक्टर का नाम ‘होलकर स्टेट रेलवे’ रखा गया।

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