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हाल ही में चारधाम की यात्रा में कई लोग हताहत हुए और उधर यूक्रेन-रूस युद्ध में मरने वालों की संख्या के बारे में क्या कहें। लेकिन लगता है कि कहीं कुछ हुआ ही नहीं। हम अपनी दौड़ में लगे हैं। तो क्या सहानुभूति गौण होती जा रही है? क्या हम असंवेदनशील बनते जा रहे हैं? मेरा मन तो नहीं मानता लेकिन यह सच ही है।
सहानुभूति क्या है? यह प्रश्न सरल प्रतीत होता है, लेकिन इसका उत्तर देना कठिन है। सहानुभूति शब्द का प्रयोग अनुभवों की एक विस्तृत शृंखला का वर्णन करने के लिए किया जाता है। शोधकर्ता आम तौर पर सहानुभूति को अन्य लोगों की भावनाओं को समझने की क्षमता के रूप में परिभाषित करते हैं, साथ ही यह कल्पना करने की क्षमता के रूप में कि कोई और क्या सोच रहा है या महसूस कर रहा है।
ईसेनबर्ग और स्ट्रायर के अनुसार एक दृष्टिकोण सहानुभूति को अनिवार्य रूप से भावनात्मक घटना से जोड़ता है, वहीं दूसरा दृष्टिकोण सहानुभूति को अनिवार्य रूप से संज्ञानात्मक घटना व अनुभव की परिभाषित विशेषता मानता है। अर्थशास्त्र में सहानुभूति की भूमिका को लेकर एलन किरमन, मिरियम टेस्चली ने माना कि इसका उल्लेख विशेष रूप से कल्याणकारी अर्थशास्त्र के लिए हुआ है लेकिन हाल के वर्षों में वह कुछ फीका पड़ा है।
हालांकि न्यूरोइकॉनॉमिक्स के उदय के साथ अब इसमें रुचि बढ़ी है। बैंकर टु द पुअर : यह नोबेल पुरस्कार विजेता और ग्रामीण बैंक के संस्थापक मुहम्मद यूनुस की आत्मकथा है। किताब में उस घटना का जिक्र है, जब प्रो. यूनुस कक्षा में पढ़ा रहे होते हैं और उन्हें कुछ बच्चे खिड़की से बाहर घास और लकड़ियां बीनते नजर आते हैं। उनके मन में प्रश्न उठता है कि जीडीपी, जीएनपी, एनडीपी पढ़ने-पढ़ाने का क्या औचित्य है अगर समाज में इतनी गरीबी है।
शायद सहानुभूति के जीवन-मूल्य समाज को सही मूल्यों से जोड़ पाएं। अगर हम परिवार के स्तर पर देखें तो पाएंगे कि हम सब मेरे और तुम्हारे जैसे भाव में केंद्रित होते जा रहे हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर सहानुभूति तभी नजर आ सकती है जब परिवार कमरों से कुछ ज्यादा हो। और इन मोबाइल फोन से भी कुछ ज्यादा।
माइकलिनोस जेम्बिलास का लेख ‘हमारे और उनके नुकसान की भावनात्मक जटिलताएं’ उन तरीकों की पड़ताल करता है, जिसमें साइप्रस के छात्रों और उनके शिक्षक की पांचवीं कक्षा ने जातीय संघर्ष के संदर्भ में अन्य के लिए सहानुभूति के अर्थों को माना और बातचीत की। निष्कर्ष बताते हैं कि सहानुभूति के साथ जुड़ने की प्रक्रिया विफलताओं, संभावनाओं और असंभवताओं से भरी है। अन्य के साथ सहानुभूति रखने के लिए बच्चों की भावनात्मक महत्वाकांक्षाएं संघर्ष की राजनीति में अंतर्निहित हैं, फिर भी अतिक्रमण के क्षण भी हैं। पर परिवार में कैसे कोई अन्य की श्रेणी में आ सकता है?
इमोशनल इंटेलिजेंस की चर्चा करते हुए डेनियल गोलेमैन कहते हैं कि यदि हम भावनात्मक क्षमता से लैस नहीं हैं, यदि हममें जागरूकता नहीं है, यदि हम परेशान करने वाली भावनाओं को प्रबंधित करने में सक्षम नहीं हैं तो हम कितने भी स्मार्ट क्यों न हों, बहुत दूर नहीं जा रहे हैं। जब हम खुद पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हमारी दुनिया सिकुड़ जाती है, लेकिन जब हम दूसरों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हमारी दुनिया फैल जाती है। यह सहानुभूति से ही संभव है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)