प्रदेश का सबसे सुंदर गांव …. मप्र के बघुवार गांव में 28 साल में दूसरी बार होंगे सरपंच के चुनाव, दो प्रत्याशी मैदान में, लेकिन गांव वाले दुखी
नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर बसा गांव बघुवार। 25 जून को ग्राम पंचायत के नए सरपंच के लिए यहां मतदान है। इस मतदान की हर जगह चर्चा है। दरअसल, 1993-94 में पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद यह दूसरा मौका है, जब सरपंच पद के लिए मतदान की नौबत आई। अब तक सारे चुनाव यहां निर्विरोध चुने गए। हर बार चुनाव के पहले ग्राम के बड़े बुजुर्ग बैठक करते।
एक राय से नए सरपंच को चुन लेते। कोशिश इस बार भी हुई, लेकिन सफल नहीं हो सकी। कुछ लोग चुनाव लड़ने पर आमादा थे। लिहाजा समझाइश की कोशिशें बेकार चली गईं। दो प्रत्याशी प्रीति चौहान (35) और दीक्षा चौहान (32) मैदान में उतर गईं।
गांव हो तो ऐसा… स्कूलों में टीचर लेट नहीं होते, हर सरकारी भवन में हरियाली
गांव के लोग दुखी हैं। वजह भी बड़ी खास है। दरअसल ग्रामीणों ने मिलजुलकर बघुवार को देश-प्रदेश में आदर्श गांव बनाया। चमचमाते रोड, 10 साल से जारी पौधरोपण, हर घर के सामने एक पेड़, स्कूल, ग्राम पंचायत, सोसायटीज सभी पेड़-पौधों से घिरे और भी न जाने बहुत कुछ अच्छा है यहां। गांव केे स्कूलों में कभी कोई अध्यापक लेट नहीं आता। सरकारी स्कूलों का रिजल्ट कभी भी 80% से कम नहीं आता। बच्चों का शैक्षणिक स्तर किसी शहरी कॉन्वेंट या पब्लिक स्कूल से कम नहीं।
गांव में 100% साक्षरता, झगड़े होते तो पुलिस तक नहीं जाते
गांव के पूर्व उप सरपंच शोभाराम जाटव (63) कहते हैं कि चूंकि चुनाव नहीं होते, इसलिए यहां दलगत वैमनस्य नहीं पनपा। सुनिश्चित करते हैं कि नियमों का पालन हो। खुद का घर बनाने के लिए पेड़ काटना जरूरी हो तो भी व्यक्ति को तहसीलदार से अनुमति लेनी पड़ती है, लेकिन अब चिंता यह है कि आगे गांव की ये एकता बनी रहेगी या नहीं।
निवर्तमान सरपंच नरेंद्र सिंह चौहान की भी यही चिंता है। वे बोले कि यह प्रदेश का एक बिरला गांव है, जहां अंडरग्राउंड सेनिटेशन है। इसके लिए सरकारी मदद मिली। जब पैसा कम पड़ा तो ग्रामीणों ने मदद की। साझा निगरानी इतनी तगड़ी है कि गांव की किसी भी दुकान में कोई तंबाकू आधारित पान-मसाला और सिगरेट नहीं बेच सकता। युवा पीढ़ी शराब समेत दूसरे नशे से दूर है, इसलिए झगड़े कम होते हैं। यदि होते भी हैं तो पुलिस तक नहीं जाते। ज्यादातर मामले मिलजुलकर सुलझा लिए जाते हैं।