शिवसेना में बगावत की वजह गठजोड़ …. ?

पार्टी विधायक का दावा- शिंदे ने कई बार समझाया- NCP-कांग्रेस हमें बर्बाद कर रही हैं…पर उद्धव अड़े रहे…

महाराष्ट्र में चल रहा सियासी संकट किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं है। यहां, रिवेंज, रिवोल्ट और ड्रामा सब कुछ है। शिवसेना के विधायक दीपक वसंत केसरकर, जो अब तक पूरी तरह से बागी तो नहीं हुए हैं लेकिन उद्धव को अल्टीमेटम दे चुके हैं, उन्होंने साफ कह दिया है कि अगर उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे भी अपना रास्ता अलग कर लेंगे।

दरअसल, शिवसेना के बागी लीडर एकनाथ शिंदे की तरह दीपक केसरकर भी चाहते हैं कि शिवसेना, NCP और कांग्रेस से नाता तोड़कर भाजपा से हाथ मिला ले। उन्होंने दैनिक भास्कर को बताया, ‘यह बात मैंने ही नहीं बल्कि शिंदे ने भी कई बार शिवसेना प्रमुख से कही, लेकिन उन्होंने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया।’

उन्होंने कहा कि एकनाथ शिंदे उद्धव से लगातार NCP और कांग्रेस विधायकों के रवैये पर लगाम लगाने की बात कर रहे थे, लेकिन उनकी बात को नजरअंदाज किया गया। जब हमने उनसे पूछा कि क्या आपने खुलकर यह कहा कि सेना को BJP के साथ आ जाना चाहिए? तो केसरकर ने कहा, ‘हमारा और BJP का साथ तो बहुत पुराना है। NCP और कांग्रेस तो हमारे विरोधी रहे हैं।’

अब पार्टी और सत्ता दोनों पर खतरा मंडराते देख उद्धव ने शिंदे से FB लाइव के जरिए इमोशनल अपील की है- ‘एकनाथ उनके सामने आएं। वह कहेंगे तो पार्टी और पद दोनों त्याग दूंगा।’

लेकिन गुजरात पहुंचे एकनाथ ने जब उद्धव से पार्टी और उसकी आइडियोलॉजी बचाने की बात कही थी तब महाराष्ट्र के CM अड़े हुए थे।

केसरकर ने बताया कि 11 जून को राज्यसभा चुनाव में शिवसेना के दूसरे उम्मीदवार संजय पवार की हार की वजह भी NCP के शिवसेना को दिए गए निर्दलीय विधायक ही थे, उन्होंने क्रॉस वोटिंग कर सेना के उम्मीदवार को हराया।

तब भी उद्धव ने NCP प्रमुख शरद पवार से बात नहीं की। इस पर एकनाथ ही नहीं पार्टी के लगभग सभी विधायक और मंत्री नाराज थे। राज्यसभा चुनाव की आंच MLC चुनाव तक पहुंची। जहां सेना को भारी शिकस्त मिली। गुस्सा तो पूरी सेना के भीतर था, लेकिन एकनाथ ने बस उसकी लीडरशिप अपने हाथ में ले ली।

तो क्या इस गुस्से ने रखी इस सियासी संकट में ‘रिवोल्ट’ की नींव?

दीपक केसरकर कहते हैं, ‘हां कह सकते हैं। मगर इस संकट की नींव तो सरकार बनने के साथ ही रख दी गई थी। जहां कहीं भी शिवसेना के विधायक हैं, वहां दूसरे नंबर पर NCP और कांग्रेस के नेता हैं। मतलब जब चुनाव के नतीजे आए थे तो जीत सेना के उम्मीदवार की हुई तो दूसरे नंबर पर NCP या कांग्रेस रही थी।

कांग्रेस और NCP के साथ भले ही पॉलिटिकल गठजोड़ हो गया हो, लेकिन कभी भी इन दोनों दलों ने हमें जमीन पर मदद नहीं की। उलटे हमें उखाड़ने की कोशिश करते रहे। जहां भी ये लोग दूसरे नंबर पर हैं वहां, लगातार इनकी पार्टी उन्हें प्रमोट करती है। हम अपने विपक्ष यानी BJP से नहीं, बल्कि अपने सहयोगी दल से पिछले दो सालों से लड़ रहे हैं।

शिंदे ने राज्यसभा इलेक्शन के बाद ही खोल दिया था मोर्चा

एकनाथ शिंदे लगातार उद्धव को समझाने की कोशिश कर रहे थे, वे ही नहीं हम सब शिवसेना को बचाना चाहते थे, लेकिन उद्धव किसी भी सूरत में NCP प्रमुख शरद पवार के सामने मुंह नहीं खोलना चाहते थे। शायद वे उस एहसान तले दबे थे कि उनकी वजह से वे मुख्यमंत्री बने!

शिंदे ने, हालांकि, उद्धव को राज्यसभा इलेक्शन के नतीजों के बाद ही अल्टीमेटम दे दिया था। उन्होंने पार्टी तोड़ने के संकेत भी दिए थे, लेकिन तब उद्धव को नहीं लगा था कि शिवसेना के विधायक इतनी बड़ी संख्या में रिवोल्ट कर देंगे।

गुजरात पहुंचने के बाद भी एकनाथ ने उद्धव को फोन कर कहा था, अब भी समय है

’26 विधायकों को लेकर सूरत पहुंचने के बाद भी एकनाथ ने मेरे और कुछ और मंत्री-विधायकों के कहने पर महाराष्ट्र के CM साहेब से बात की थी। उन्होंने कहा था, अगर आप अब भी हमारी बात मान लें तो हम लौट आएंगे।

हमें उस पार्टी से हाथ मिलाना चाहिए जिससे हमारी ‘हिंदुत्व’ की विचारधारा मिलती है। हम हिंदुत्ववादी हैं, हमें इस पर ही अडिग रहना चाहिए, लेकिन उद्धव ने दो टूक कहा-BJP से किसी भी कीमत पर हाथ नहीं मिलाएंगे।’

BJP ने उद्धव पर पर्सनल अटैक कर लिया ‘रिवेंज’, फिर उद्धव भी जिद पर अड़े

राजनीति में दल बदल, सरकार गिराना और बनाना तो चलता रहता है। NCP और कांग्रेस जैसी धुर विरोधी आइडियोलॉजी वाली पार्टियों से हाथ मिलाने वाले उद्धव आखिर BJP से इतना खफा क्यों हो गए कि उन्होंने सरकार गिरना तक कुबूल कर लिया? शिवसेना के एक मंत्री ने बताया, दरअसल उद्धव इस बार BJP से राजनीतिक दुश्मनी नहीं निभा रहे, वे सुशांत सिंह राजपूत और उसकी PA दिशा के मर्डर में आदित्य ठाकरे का नाम उछालने से खफा हैं।

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