पुल की राह में अंधेरगर्दी बाधा
900 से अधिक ब्रिज हैं प्रदेश में जो सात मीटर से भी अधिक लंबे हैं
भोपाल. चुनाव में नेताओं के लिए मतदाता मानो भगवान हो गया है। विकास के दावे-वादे हो रहे हैं। बड़ी-बड़ी बातें भी। सरकार के नुमाइंदे पिछले काम गिना रहे हैं तो विपक्ष अपनी ‘सत्ता’ आने पर विकास कराने का दंभ भर रहा है। असल मुद्दों की फिक्र किसी को नहीं है। यहां बात बारिश में हादसों की सबसे बड़ी वजह बनने वाले टूटे पुल और क्षतिग्रस्त पुलियों की है।
पिछले वर्षों में बाढ़ में बह चुके कई पुल तो ऐसे हैं, जो अब तक बने ही नहीं हैं। प्रदेश में करीब सौ छोटे-बड़े पुल और पुलिए हैं, जो विकास को मुंह चिढ़ा रहे हैं। इनका जिक्र कहीं नहीं है। सबसे बड़ा उदाहरण मंदसौर का है। वर्ष 2019 की बाढ़ में सुवासरा क्षेत्र में चंबल नदी पर बनी पुलिया बह गई। नतीजतन यहां के लोगों का राजस्थान के चोमहला क्षेत्र से संपर्क कट गया।
पुल की…
अब बीते तीन साल से लोग आवागमन के लिए परेशान हैं। ये स्थिति तब है जब राज्य में इन तीन साल में दो सरकारें काम कर चुकीं। मंत्री हरदीप सिंह भी इसी क्षेत्र से आते हैं। हालांकि बजट में राशि मिलने का दावा है, लेकिन काम अभी तक शुरू नहीं हुआ। इससे लोगों को इस बारिश में भी मुसीबत झेलनी पड़ेगी।
यहां ऐसी स्थिति
1. रीवा: सिरमौर क्षेत्र के पटेहरा के पास टमस नदी पर बना पुल जर्जर है। यहां बारिश में हालात बिगड़ सकते हैं। वहीं त्योंथर में चिल्ला घाट टमस नदी पर झूला पुल की मांग की जा रही है, लेकिन अभी तक नहीं बना।
2. जबलपुर: पनागर विधानसभा की परियट नदी पर वर्धा घाट रपटा है। यह हर वर्ष बरसात में डूबता है। यहां पर बगल में नया ब्रिज बनना है, लेकिन पांच वर्ष से काम अधूरा है। बारिश में 25 से ज्यादा गांवों से संपर्क कट जाता है।
3. बरगी: चरगवां से नया नगर होते हुए लखनादौन मार्ग में भारतपुर के पास बंजर नदी में पुल का निर्माण नहीं हुआ है। इस मार्ग पर 20 से ज्यादा गांवों की निर्भरता है। बंजर नदी में बाढ़ आने पर आसपास के गांव टापू में तब्दील हो जाते हैं।
राह में…
अब बीते तीन साल से लोग आवागमन के लिए परेशान हैं। ये स्थिति तब है जब राज्य में इन तीन साल में दो सरकारें काम कर चुकीं। मंत्री हरदीप सिंह भी इसी क्षेत्र से आते हैं। हालांकि बजट में राशि मिलने का दावा है, लेकिन काम अभी तक शुरू नहीं हुआ। इससे लोगों को इस बारिश में भी मुसीबत झेलनी पड़ेगी।
यहां ऐसी स्थिति
1. रीवा: सिरमौर क्षेत्र के पटेहरा के पास टमस नदी पर बना पुल जर्जर है। यहां बारिश में हालात बिगड़ सकते हैं। वहीं त्योंथर में चिल्ला घाट टमस नदी पर झूला पुल की मांग की जा रही है, लेकिन अभी तक नहीं बना।
2. जबलपुर: पनागर विधानसभा की परियट नदी पर वर्धा घाट रपटा है। यह हर वर्ष बरसात में डूबता है। यहां पर बगल में नया ब्रिज बनना है, लेकिन पांच वर्ष से काम अधूरा है। बारिश में 25 से ज्यादा गांवों से संपर्क कट जाता है।
3. बरगी: चरगवां से नया नगर होते हुए लखनादौन मार्ग में भारतपुर के पास बंजर नदी में पुल का निर्माण नहीं हुआ है। इस मार्ग पर 20 से ज्यादा गांवों की निर्भरता है। बंजर नदी में बाढ़ आने पर आसपास के गांव टापू में तब्दील हो जाते हैं।
अनूपपुर: क्षतिग्रस्त पुल से ही आवागमन
जिला मुख्यालय के पास ग्राम हर्री-बर्री में तिपान नदी पर बना पुल 2019 में नदी की तल की ओर धंसक गया था। 2020 में दूसरा सिरा क्षतिग्रस्त हो गया। अब यहां मिट्टी भरकर आवागमन किया जा रहा है। पुल निर्माण के लिए 6 करोड़ 80 लाख रुपए का प्रस्ताव तैयार किया था, लेकिन निर्माण नहीं हुआ। यह पुल 10 से ज्यादा गांवों को जोड़ता है।
अशोकनगर: 4 साल से अधूरा है पुल
अशोकनगर-पिपरई मार्ग स्थित ओर नदी पर वर्ष 2018 में 9 करोड़ रुपए लागत का पुल स्वीकृत हुआ। चार साल में पुल आधा भी नहीं बन सका और पुराना पुल जर्जर है व एप्रोच रोड पर गहरी खाई बन गईं। विजयपुरा-नईसराय रोड पर जाजनखेड़ी व हसनपुर पर दो पुलों का निर्माण चल रहा है, जो ढ़ाई साल बाद भी नहीं बन पाया है।
छिंदवाड़ा-नागपुर नेशनल हाईवे पर गहरानाला पुल 2015 में क्षतिगस्त हो गया था। सात साल बाद भी नए पुल का निर्माण नहीं हुआ। तेज बारिश में छिंदवाड़ा-नागपुर हाईवे बंद हो जाता है। पेंच नदी पर बना सांख पुल अगस्त 2020 में ढह गया था, इसका आज तक निर्माण नहीं हुआ। लोधीखेड़ा और खमारपानी के बीच कन्हान नदी का पुल अगस्त 2020 में आई बाढ़ में क्षतिग्रस्त हो गया था। यहां वैकल्पिक मार्ग बनाया गया था, जो बारिश में बंद हो गया है। सिवनी में तीन वर्ष पहले बने भीमगढ़ और सुनवारा के पुल निर्माण के कुछ माह बाद बाढ़ के साथ बह गए। दोनों पुल का निर्माण अब तक नहीं हुआ है।
छिंदवाड़ा महाराष्ट्र से कट जाता है संपर्क