MP में 36 दिनों में बिजली गिरने से 90 मौतें …? भोपाल में 1 घंटे में 6928 जगह गिरी बिजली …
वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक वेद प्रकाश सिंह ने बताया कि गत वर्ष पूरे सीजन में 116 लोगों की मौत हुई थी। यह बीते 50 साल में सबसे ज्यादा थी। इस साल अभी तक ही करीब 90 लोगों की जान आकाशीय बिजली ले चुकी है। जलवायु परिवर्तन के कारण इस तरह की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। रिटायर मौसम वैज्ञानिक डीपी दुबे से जानते हैं कि आखिर यह आकाशीय बिजली बनती कैसे है और इतनी भयानक कैसे हो जाती है…
पहले जानते हैं, बादलों के बीच कैसे बनती है बिजली
सामान्य रूप से बादल जमीन से एक किलोमीटर की ऊंचाई पर बनना शुरू होते हैं। गर्मी बढ़ने से इनकी मोटाई 3 किलोमीटर तक हो जाती है। बादल बनने की प्रक्रिया में बादलों की मोटाई 6 किलोमीटर तक हो जाती है। इन बादलों में जैसे-जैसे जलवाष्प ऊपर जाता है। वैसे-वैसे गिरते हुए तापमान की वजह से पानी की छोटी-छोटी बूंदें बड़ी बूंदों में बदलने लगती है। धीरे-धीरे तापमान शून्य हो जाता है। यहां से पानी की बूंदें बारीक बर्फ में बदलने लगती हैं। नीचे से गर्म हवाओं के आसमान की ओर उठने और ऊपर से ठंडी हवा के जमीन की तरफ आने से इनमें घर्षण होने लगता है। इससे बिजली पैदा होती है।
गर्मी बढ़ने से ट्रफ लाइन का रोल क्या
बिजली बनने और उसके गिरने के लिए मानसून में अधिक गर्मी बढ़ना प्रमुख कारण होता है। दिन में गर्मी बढ़ने से गर्म तेजी से ऊपर उठती है। इससे करीब 6 किलोमीटर की ऊंचाई तक बादल बनते जाते हैं। इसी दौरान ट्रफ लाइन के गिरने से बिजली ज्यादा तेज गति से बनती है। खास है कि ट्रफ लाइन के नॉर्थ की तरफ बिजली गिरती है, जबकि साउथ की तरफ इसका प्रभाव कम होता है। मान लीजिए, मानसून ट्रफ लाइन की पोजिशन राजस्थान के बीकानेर से जयपुर, ग्वालियर, जबलपुर, छत्तीसगढ़ के रायपुर से निकल रही है, तो बिजली नॉर्थ यानी ऊपर की तरफ गिरेगी।
जहां बिजली गिरी वहां का तापमान 38 से 45 के बीच रहा
प्रदेश भर में सबसे ज्यादा मौतें छतरपुर में 9 हुईं। इसके बाद छिंदवाड़ा में 6 और बालाघाट में 5, रीवा में 4 लोगों की जान बिजली गिरने से हुई। अधिकांश इलाकों में बिजली गिरने से पहले अधिकतम तापमान 38 डिग्री से 45 डिग्री के बीच रहा। इससे ज्यादा हीट बनने से तेजी से गर्म हवा ऊपर उठी। इससे बादलों की मोटाई 6 किलोमीटर तक होने से इन इलाकों में बिजली गिरने की घटनाएं ज्यादा हुईं।
कैसे गिरती है बिजली
यह बिजली बहुत पावरफुल होती है। चार्ज होने के बाद यह जमीन पर गिरकर डिस्चार्ज हो जाती है। इसका पॉजिटिव चार्ज बादल के ऊपरी तरफ चला जाता है। निगेटिव चार्ज नीचे साइड बन जाता है। निगेटिव चार्ज पॉजिटिव चार्ज की तरफ बढ़ता है। जमीन पर हवा चलने से पेड़-पौधों और ऊंचे स्थानों पर भी पॉजिटिव चार्ज जमा हो जाता है। इससे जमीन पर मौजूद पॉजिटिव चार्ज बादल के निगेटिव चार्ज को अपनी ओर आकर्षित करता है। इससे भयानक लाइटनिंग स्ट्राइक्स उत्पन्न होती है। हम बिजली गिरना भी कहते हैं, इसलिए आसमान से जमीन पर बिजली गिरती है। यह मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों, जंगल, हरियाली (पेड़), जलाशय और ऊंचाई वाली बिल्डिंग पर गिरती है।
जमीन पर कैसे गिरती है बिजली
दरअसल, आसमान में विपरीत एनर्जी के बादल हवा से उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। ये विपरीत दिशा में जाते हुए आपस में टकराते हैं। इससे होने वाले घर्षण से बिजली पैदा होती है। वह धरती पर गिरती है। धरती पर पहुंचने के बाद बिजली को कंडक्टर की जरूरत पड़ती है। लोहे के खंभों के अगल- बगल से जब आकाशीय बिजली गुजरती है, तो वह कंडक्टर का काम करता है। उस समय कोई व्यक्ति यदि उसके संपर्क में आता है, तो उसकी जान तक जा सकती है।
इससे कैसे बचा जा सकता है
बिजली गिरने की संभावना में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, बरामदे, छत, धातु से बने सामान, पेड़, बड़ी और ऊंची इमारत और नदी या तालाब के पास जाने से बचना चाहिए। बारिश के दौरान खुली छत वाले वाहनों का उपयोग न करें। बाइक, बिजली या टेलीफोन का खंभा तार की बाड़ और मशीन आदि से दूर रहें।
बिजली चमकने के बाद आवाज क्यों आती है
बिजली का चमकना और गड़गड़ाहट साथ ही होती है। बिजली की चमक पहले नजर आती है। ऐसा प्रकाश की गति ध्वनि से ज्यादा तेज होने के कारण होता है। इस दौरान प्रकाश की गति करीब 3 लाख किलो मीटर प्रति सेकंड होती है। इसके विपरीत ध्वनि की गति उससे कम काफी कम होती है।