बैलेंस शीट में मार्कशीट से अच्छे नंबर्स हो सकते हैं!
सीबीएसई और आईएससी के रिजल्ट के बाद 99% और इससे ऊपर स्कोर करने वाले बच्चों की तस्वीरों और खबरों से अखबारों के फ्रंट पेज पिछले चार दिनों से भरे हैं। जाहिर तौर पर यह बच्चों, अभिभावकों, स्कूलों के साथ-साथ हम जैसे पाठकों के लिए भी अपने-अपने शहर पर गर्व महसूस कराने वाले पल हैं। पर अगर आप उनमें से हैं, जो नंबर जानने के लिए बेताब पड़ोसियों से असहज हैं या आपकी मां को कई आंटियों को फोन आ रहे हैं, जबकि खेल में कोई ट्रॉफी लाने पर वे फोन नहीं करती, तो आगे की कहानी आपके लिए है।
मेरे शहर ने भी इन दोनों परीक्षाओं में टॉपर्स दिए हैं, इस गर्व के साथ मैं ऑफिस गया, जहां राजस्थान के एक रिजॉर्ट के लिए ऑनलाइन इंटरव्यू हेतु कुछ पेपर्स तैयार रखे थे। ‘क्या आप अपने पूरी जीवन के बारे में बता सकते हैं, स्कूल से लेकर अभी तक? अगले 5 मिनट तक मैं कुछ नहीं कहूंगा और समय शुरू होता है अब।’ मेरे सामने ऑनलाइन इंटरव्यू के लिए आए एक प्रतिभागी के सामने मैंने इस तरह सवाल की बौछार की। उस पांच मिनट में मुझे पता चलने वाला था कि वह नियोक्ता के लिए जरूरी बिंदु भूले बिना अपनी पूरी जिंदगी को एक रोचक कहानी के रूप में बताने में कितने अच्छे हैं।
मैंने संचार कौशल के साथ उनकी कही हर बात में उनकी ईमानदारी को भी परखा। मेरी आंखें उनका बायोडाटा स्कैन करेंगी और उस कहानी के साथ तालमेल बैठाएंगी कि कहानी क्रमवार सही है या नहीं, जैसा कि उन पेजों में जिक्र है। औपचारिक परिचय के बाद जब मैंने यह सवाल विनोद से पूछा (यहां मैं पूरा नाम उजागर नहीं कर रहा हूं), तो उसे क्षण भर के लिए भी नहीं सोचना पड़ा।
उम्मीदवारों के चयन में वह टाइमिंग बहुत मायने रखती है। चूंकि यह उन्हीं का जीवन है, इसलिए सोचने की जरूरत ही नहीं। विनोद ने बताना शुरू किया, ‘मैं न सिर्फ स्कूल में बल्कि पढ़ाई के पूरे सालों में कमजोर था और इसलिए 12वीं के बाद नहीं पढ़ सका।’ धाराप्रवाह अंग्रेजी में वह कहता रहा, ‘मैं दसवीं में फेल हो गया था और मेरे पिता मुझे यूपी बोर्ड से परीक्षा दिलाने ले गए और किसी तरह मैंने वो पास की।
चूंकि पिता चाहते थे कि मैं किसी तरह 12वीं पास कर लूं, तो वो मुझे महाराष्ट्र बोर्ड में ले गए, जहां गिरते-पड़ते 42% हासिल किए, ये मेरे सबसे ज्यादा अंक थे। फिर पिता ने किसी के काम में हाथ बंटाने के लिए भेज दिया, उन्होंने उसी समय होटल खोली थी और वहां मैंने मेहमानों से बातचीत करना और उन्हें जो भी चाहिए होता था, उसमें उनकी मदद करना शुरू कर दिया।
इन सालों में मुझे समझ आ गया कि हॉस्पिटेलिटी ही मेरे काम का क्षेत्र है और इसलिए मैंने इस इंडस्ट्री से जुड़े शॉर्ट टर्म कोर्स किए और मुझे और जिम्मेदारियां मिलती गईं।’ फिर वो मुझे तमिलनाडु में रामेश्वरम से लेकर उप्र में इलाहबाद तक की अपनी सात जगहों की यात्रा पर ले गया, जहां उसने इन 15 सालों में काम किया। चूंकि वह 35 साल के आसपास का था और पत्नी के साथ दो बच्चे भी थे, इसलिए अब वो राजस्थान में अपने गृहनगर के पास आना चाह रहा था और इसलिए इस साक्षात्कार में उसने दावेदारी पेश की थी।
उसने कहा कि जिंदगी में उसका लक्ष्य ग्राहकों को संतुष्ट करने के साथ मुनाफा भी दिखाना है। मुुनाफा और ग्राहकों को संतुष्ट करने वाले सवाल के बाद मैंने उस रिजॉर्ट के प्रमुख के तौर पर विनोद के नाम की अनुशंसा की, क्योंंकि वो बिजनेस जानता था, अपने लक्ष्यों के प्रति जागरूक था और उस सबसे ऊपर वह हर पद की वर्किंग जानता था।
फंडा यह है कि अगर आपकी ईमानदारी, कड़ी मेहनत और निष्ठा के चलते बैलेंस शीट के नंबर्स अच्छे हैं, तो जीवन में फिर यह नंबर्स आपकी मार्कशीट के नंबर्स से आगे निकल जाते हैं!