महाराष्ट्र में ‘सेंट्रल’ सरकार …?

त्ता परिवर्तन के बाद 8 फैसले केंद्र के इशारे पर, 25 दिन में 5 बार दिल्ली दरबार में हाजिरी…..

एकनाथ शिंदे को CM और देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी CM बने 25 दिन बीच चुके हैं, लेकिन अभी तक राज्य में कैबिनेट का विस्तार नहीं हुआ है। विपक्ष इसके पीछे केंद्र सरकार को जिम्मेदार बता रहा है। उनका कहना है कि दिल्ली की हरी झंडी के बिना महाराष्ट्र में कोई फैसला नहीं लिया जा रहा है।

सत्ता पर काबिज होने के बाद फडणवीस और शिंदे ने 3 कैबिनेट बैठक की हैं और इनमें लिए गए ज्यादातर फैसलों पर BJP के केंद्रीय नेतृत्व की छाप नजर आ रही है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या महाराष्ट्र की सरकार अब दिल्ली से चल रही है? आपको महाराष्ट्र सरकार के ऐसे 8 फैसले बताते हैं जिनमें दिल्ली का दखल दिखता है।

शिंदे सरकार के इन 8 फैसलों पर केंद्र की छाप ….

1. बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट: यह केंद का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था, जिसे महाविकास अघाड़ी सरकार बनते ही उद्धव ठाकरे ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। सत्ता में आने के बाद एकनाथ शिंदे ने फिर से इस प्रोजेक्ट को रफ्तार दे दी है। नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड ने मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल परिपथ के लिए बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (BKC) में एक अंडरग्राउंड स्टेशन निर्माण के उद्देश्य से टेंडर निकाला है।

2. मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट: उद्धव सरकार बनने के 24 घंटे के भीतर ही आरे कॉलोनी में बन रहे मुंबई मेट्रो-3 कार शेड को कंजुरमार्ग शिफ्ट कर दिया गया था। कंजुरमार्ग में जहां यह प्रोजेक्ट बनना था, उसकी जमीन पर केंद्र ने अपना दावा ठोक दिया और यह मामला अदालत पहुंच गया। ढाई साल तक इसका निर्माण रुका रहा और अब नई सरकार बनते ही इस प्रोजेक्ट को फिर से आरे जंगल वाली जगह पर शिफ्ट कर दिया गया और केंद्र की जमीन फिर से फ्री हो गई है।

3. फोन टैपिंग केस: महाराष्ट्र सरकार ने IPS रश्मि शुक्ला से जुड़े कथित फोन टैपिंग मामले को CBI को सौंपने के निर्देश दिया हैं। शुक्ला पर आरोप है साल 2019 में उन्होंने विपक्ष के कई नेताओं के फोन टैप किए थे। उस समय वे राज्य खुफिया विभाग (SID) की प्रमुख थीं। शुक्ला द्वारा की गई रिकॉर्डिंग की एक कॉपी देवेंद्र फडणवीस ने केंद्रीय गृह मंत्रालय तक पहुंचाई थी। अब कहा जा रहा है कि सेंट्रल होम डिपार्टमेंट के कहने पर ही यह केस राज्य सरकार ने सेंट्रल एजेंसी को सौंपा है।

4. केंद्र के दबाव में लेना पड़ा डिप्टी CM पद: उद्धव सरकार के गिरने के बाद अपनी पहली संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि वे मंत्रीमंडल में शामिल नहीं होंगे। इस बयान के कुछ ही घंटे बाद केंद्रीय नेतृत्व ने सोशल मीडिया में उनके शपथ लेने का ऐलान कर दिया और शाम होते-होते उन्हें डिप्टी CM की शपथ लेनी पड़ी।

5. पहले नाम बदलने पर लगाई रोक, फिर माना: CM की शपथ लेने के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर, उस्मानाबाद का धराशिव तथा नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा का नाम बदलकर डीबी पाटिल करने के फैसले पर रोक लगा दी थी। पूर्व की उद्धव सरकार ने अपनी आखिरी कैबिनेट बैठक में नाम बदलने का यह फैसला लिया था। हालांकि, बाद में शिंदे को उद्धव सरकार के इस फैसले को लागू करना पड़ा। सूत्रों के मुताबिक, शिंदे सरकार ने केंद्र के निर्देश पर ही यह फैसला बदला था।

6. महाजन केस CBI को सौंपा गया: BJP नेता और राज्य के पूर्व मंत्री गिरीश महाजन पर जबरन वसूली और आपराधिक धमकी के आरोप लगे थे, अब इस मामले को CBI को सौंपने का आदेश जारी किया गया है। सूत्रों के मुताबिक, BJP नेतृत्व के आदेश पर ही शिंदे सरकार ने यह केस सेंट्रल को सौंपा है।

7. सेंट्रल के प्रोजेक्ट्स को लागू करने का निर्देश: प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को 18 मुख्यमंत्रियों और डिप्टी CM संग बैठक की थी। इसमें देवेंद्र फडणवीस भी शामिल थे। केंद्र की ओर से सभी CM और डिप्टी CM को प्रमुख योजनाओं जैसे गति शक्ति, हर घर जल, स्वामित्व, और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के बेहतर कार्यान्वयन पर जोर दिया। ऐसे में माना जा रहा है कि केंद्र के कुछ और प्रोजेक्ट्स को सरकार को मानते हुए राज्य में लागू करना पड़ेगा।

8. ठाकरे परिवार पर शिकंजा कसने की तैयारी: केंद्र सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे और पूर्व पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे के मंत्रालय के ढाई साल के काम के ऑडिट का आदेश दिया है। यह ठाकरे परिवार के खिलाफ के एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है।

‘असली सरकार दिल्ली से ही चल रही’

सीनियर पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ रवि किरण देशमुख बताते हैं कि ‘सरकार बनने के बाद 5-7 बार दोनों दिल्ली जा चुके हैं। दोनों की गृह मंत्री अमित शाह, BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री मोदी से कई राउंड की मीटिंग हो चुकी है। जिस तरह से CM बनने के बाद एकनाथ शिंदे ने केंद्र के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट यानी बुलेट ट्रेन के काम को फिर से शुरू किया, मेट्रो कार शेड को आरे कॉलोनी शिफ्ट किया, उससे साफ जाहिर होता है कि यहां भले ही शिंदे CM और फडणवीस डिप्टी CM की पोस्ट पर हैं, लेकिन असली सरकार दिल्ली से ही चल रही है।

दिल्ली की वजह से हो रही है कैबिनेट विस्तार में देरी

वरिष्ठ पत्रकार संजय आवटे ने बताया कि मंत्रिमंडल विस्तार की लिस्ट दिल्ली में बन रही है, इसमें कई चौंकाने वाले नाम हो सकते हैं। दिल्ली यानी अमित शाह, जेपी नड्डा और PM मोदी सब कुछ मैनेज कर रहे हैं। उनकी ओर से साफ संकेत दिए गए हैं कि CM पद के बाद अब कोई भी महत्वपूर्ण मंत्रालय शिवसेना को नहीं दिया जाएगा। शिंदे को CM और फडणवीस को डिप्टी का पद मिलना यह साबित करता है कि यह सरकार दिल्ली से चल रही है।

दीपक केसरकर ने मानी दिल्ली से संपर्क की बात

दिल्ली से सरकार चलाने के सवाल पर शिंदे गुट की शिवसेना के प्रवक्ता दीपक केसरकर ने कहा कि जब हम उद्धव ठाकरे साहब के साथ थे, तब हम उनकी बातें सुना करते थे। उन्होंने ही कहा था कि आप BJP से गठबंधन कीजिए। हमने उनसे यह भी कहा था कि अगर हम किसी और से गठबंधन करेंगे तो हमें उनकी सुननी पड़ेगी। लिहाजा आज हम BJP के साथ हैं और BJP का मुख्यालय दिल्ली में है तो संभावित तौर पर वहां से उनकी अनुमति लेना या मिलना बनता है और इसमें कोई गलत नहीं है। जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने भी सोनिया गांधी से जाकर मुलाकात की थी। तब किसी ने सवाल नहीं उठाया तो अब क्यों सवाल उठाए जा रहे हैं?

‘दिल्ली से हरी झंडी के बिना राज्य में कोई फैसला नहीं’

सोमवार को पूर्व डिप्टी CM अजित पवार ने कहा कि दिल्ली की हरी झंडी के बिना महाराष्ट्र में कोई फैसला नहीं लिया जा रहा है। इनके पास बहुमत है तो मंत्रिमंडल के विस्तार में देरी क्यों हो रही है। राज्य सरकार को तत्काल विधानमंडल का सत्र बुलाना चाहिए। हमने इस संबंध में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। ये सिर्फ केंद्र के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा रहे हैं और महाराष्ट्र की जनता पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।

सुप्रीम कोर्ट में मामले होने के कारण केंद्र नहीं दे रहा मंजूरी

उद्धव ठाकरे का दामन छोड़ कर शिंदे खेमे से जाने वालों में पूर्व सरकार के 8 मंत्री शामिल हैं। ऐसे में ये मौजूदा सरकार में भी इन्हें मंत्रिपद दिया जाएगा। BJP से जुड़े एक करीबी नेता ने बताया कि उद्धव ठाकरे गुट द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर 15 विधायकों के निलंबन की याचिका की वजह से मंत्रिमंडल विस्तार में देरी हो रही है। केंद्र को लगता है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इनमें से किसी भी विधायक को अयोग्य घोषित कर दिया तो यह उनके लिए एक बड़ा सेटबैक हो सकता है। यही वजह है कि अलग-अलग वजहों को आधार बनाकर मंत्रिमंडल के विस्तार को आगे बढ़ाया जा रहा है।

पूर्व की सरकारों में भी चलता रहा है यह सिस्टम

राजनीतिक विशेषज्ञ राजू पारुलेकर बताते हैं, ’यह पहली बार नहीं है, जब राज्य की कोई सरकार दिल्ली के इशारे पर चल रही है। आमतौर पर जब केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होती है तो सेंट्रल का हस्तक्षेप स्टेट के फैसलों में नजर आता है। पूर्व में भी जब महाराष्ट्र और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तो ज्यादातर फैसलों पर अंतिम मुहर सोनिया गांधी ही लगाती थीं।’

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