जानिए उस डिजाइन थिंकिंग के बारे में, जिसको अपनाकर एपल बनी दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी

एक बार की बात है…। एक ट्रक कम ऊंचाई वाले एक ब्रिज पर फंस गया। ट्रक का ऊपरी हिस्सा ब्रिज के हिस्से में अटक गया। ट्रक ना आगे आ रहा था….ना पीछे। निकालने के सारे तरीके फेल हो गए। अचानक एक लड़के ने कहा–क्यों ना ट्रक के सारे टायरों की हवा निकाल दी जाए। इससे टायरों की ऊंचाई कम हो जाएगी और ट्रक को धकेलकर निकाला जा सकेगा। आखिरकार बात बन गई। ट्रक निकल गया। अलग सोचने के इसी हुनर को मैनेजमेंट की भाषा में कहते हैं- डिजाइन थिकिंग।

‘डिजाइन थिंकिंग’ केवल डिजाइनर्स तक ही सीमित नहीं है। इसे कोई भी उपयोग में ला सकता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सोच के नए तरीके अपनाए जाते हैं। इसमें बिल्कुल नए माइंडसेट के साथ काम शुरू किया जाता है।

आज के मैनेजमेंट मंत्रा में जानिए डिजाइन थिंकिंग के बारे में

डिजाइन थिंकिंग आखिर है क्या? होती कैसे है?

डिजाइन थिंकिंग यानी सोचने के नए तरीके विकसित करना। बहुत पहले से जो तरीके चले आ रहे हैं, उन्हें तोड़कर नई सोच के साथ काम शुरू करना। काम की पूरी प्रक्रिया के दौरान महत्वपूर्ण सवाल उठाना। पुरानी मान्यताओं को नकारना। साथ ही आउट ऑफ द बॉक्स सोचना। यही डिजाइन थिंकिंग है। भीड़ से अलग सोचना, पूरी गहराई और तथ्यों को ध्यान में रखकर सोच तय करना डिजाइन थिंकिंग का ही हिस्सा है।

एप्पल की केस स्टडी

सिर्फ अलग सोचने के तरीके से एक कंपनी किस तरह सबसे ऊपर उठ गई

एपल के शुरुआती दिनों को उसके पहले कंप्यूटर एपल ओएस के नाम से जाना जाता है। इस समय एपल का मार्केट पर कब्जा था। लेकिन 1985 में स्टीव जॉब्स को कंपनी छोड़नी पड़ी। इस दौरान कंपनी की रणनीतियां फेल हुईं और प्रोडक्ट के विस्तार में काफी दिक्कतें आईं। 1985-1997 के बीच, स्टीव जॉब्स के न होने और आईबीएम जैसी अन्य कंपनियों के संग बढ़ती प्रतियोगिता के चलते, एपल ने लंबा संघर्ष किया। कई चुनौतियों का सामना किया।

1997 में स्टीव जॉब्स ने ‘डिजाइन थिंकिंग’ को अपनाया

एपल आज दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में गिनी जाती है। यह संभव हुआ डिजाइन थिंकिंग की वजह से। 1997 में जब स्टीव जॉब्स एपल में लौटे, तो उन्होंने इस कॉन्सेप्ट को पूरी तरह अपना लिया और कंपनी का विज़न ही बदल दिया। उन्होंने डिजाइन थिंकिंग को ऐसे अपनाया।

उन्होंने बिजनेस की जरूरतों से ज्यादा ध्यान लोगों की जरूरतों पर दिया। लोगों की मदद कर सहानुभूति हासिल की, जिससे वो एपल को पसंद करने लगे। मुश्किल प्रोडक्ट्स की बजाय साधारण और यूजर फ्रेंडली प्रोडक्ट्स बनाए। यही विजन आज भी एपल के हर प्रोडक्ट में दिखता है। जब ज्यादातर कंपनियां प्रोडक्ट के फीचर्स और स्ट्रेंथ पर ध्यान देती हैं, तब एपल केवल अपने प्रोडक्ट के जरिए यूजर को एक अच्छा एक्सपीरियंस देने की कोशिश करता है। स्टीव जॉब्स का फोकस डिजाइन की सादगी और यूजर फ्रेंडली तजुर्बे पर था।

डिजाइन थिंकिंग ने ही एपल को मार्केट में नई ऊंचाइयां दी हैं। 2007 में भी जब एपल ने आईफोन लॉन्च किया था, तो वो हर यूजर का फेवरेट बन गया था। इस सफलता की एक ही वजह सामने आती है, वो ये कि आईफोन को भी यूजर की सहूलियत को देखते हुए, गहरी समझ के साथ प्लान किया गया था।

स्टीव जॉब्स ने कहा था कि ज्यादातर लोग डिजाइन का मतलब नहीं समझते हैं। उन्हें लगता है डिजाइन का मतलब है- प्रोडक्ट कैसा दिखता है। उन्हें लगता है कि डिजाइनर्स को केवल इतना बोल दिया जाता है कि प्रोडक्ट खूबसूरत दिखना चाहिए। लेकिन हम ऐसा नहीं सोचते। हमारे लिए डिजाइन केवल लुक या फील तक ही सीमित नहीं है, डिजाइन का मतलब यह भी है कि आपका प्रोडक्ट काम कैसा करता है।’ एपल उदाहरण है कि किस तरह डिजाइन थिंकिंग और इनोवेशन किसी भी कंपनी को नई ऊंचाइयां दे सकते हैं।

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