4 साल से सुपरएक्टिव ED …? 9 राज्यों ने CBI की एंट्री बैन की तो ED ने संभाला मोर्चा; जानिए किस कानून ने बनाया सुपर पावर
भाजपा के शासनकाल में ज्यादातर जांच पड़ताल की कार्रवाई प्रवर्तन निदेशालय यानी ED ही कर रहा है, जबकि इससे पहले होने वाले बड़े-बड़े घोटालों की छानबीन या छापेमारी में हर जगह CBI ही नजर आती थी। तो ऐसा क्या हुआ कि मनमोहन के शासनकाल तक एक्टिव रहने वाली CBI पिछले 4 वर्षों में बैकग्राउंड में चली गई है और उसकी जगह ED ने ले ली।
भास्कर की पड़ताल में सामने आया कि पिछले 8 वर्षों में ED की कार्रवाई में पांच से छह गुना का उछाल दर्ज किया गया है। हमने पड़ताल की कि किन वजहों से ED ने CBI को पछाड़ दिया। आइए आपको बताते हैं।
9 राज्यों ने CBI की एंट्री बैन की
UPA शासनकाल तक CBI ही देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी मानी जाती थी। केंद्र में BJP सरकार बनने के बाद जब इसी CBI ने गैर भाजपा शासित राज्यों में कार्रवाई करनी चाही तो ये राज्य लामबंद हो गए। देखते ही देखते राजस्थान, पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब, मेघालय और मिजोरम की गैर भाजपा सरकारों ने एक के बाद एक अपने प्रदेश में CBI की एंट्री पर रोक लगा दी, मतलब बिना राज्य सरकार की इजाजत के CBI राज्य में जांच पड़ताल नहीं कर सकती। सबसे ताजा मेघालय राज्य ने CBI की एंट्री पर बैन लगाया है।
9 राज्यों में CBI की एंट्री बैन होने से मजबूरन केंद्र सरकार को आर्थिक अपराध की छानबीन से जुड़ी दूसरी बड़ी जांच एजेंसी यानी ED को सक्रिय करना पड़ा। यह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के तहत एक विशेष वित्तीय जांच एजेंसी है।
पिछले तीन से चार साल में ED का दायरा इतना अधिक बढ़ गया है कि हर बड़े घोटाले का खुलासा अब ED ही कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी PMLA के तहत ED की गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती से जुड़ी शक्तियों को कायम रखा है। कोर्ट ने साफ कहा है कि गिरफ्तारी के लिए ED को आधार बताना जरूरी नहीं है।
ED को सुपर पावर बनाता है PMLA
प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 में बना था। यह कानून 2005 में अमल में आया। PMLA (संशोधन) अधिनियम, 2012 ने अपराधों की सूची का दायरा बढ़ाया। इनमें धन छुपाने, अधिग्रहण और धन के आपराधिक कामों में इस्तेमाल को शामिल किया गया। इस संशोधन की बदौलत ED को विशेषाधिकार मिले। वहीं मनी लॉन्ड्रिंग का मतलब पैसों की हेराफेरी है। यह अवैध तरीके से कमाई गई ब्लैक मनी को वाइट मनी में बदलने की तरकीब है। ये ज्यादातर मामले वित्तीय घोटाले के होते हैं। एक्ट की अनुसूची के भाग ए में शामिल प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट ED को राजनीतिक घोटालों पर कार्रवाई का अधिकार देता है।
ED के पास विशेष अधिकार
यह एक्ट प्रवर्तन निदेशालय को जब्ती, मुकदमा शुरू करने, गिरफ्तारी, जांच और तलाशी की शक्ति देता है। आरोपी व्यक्ति पर जिम्मेदारी होती है कि वह अपने को निर्दोष साबित करने के लिए सबूत दे।
ED पर आरोप लगता है कि इस एक्ट के कड़े प्रावधानों, जैसे कि जमानत की कड़ी शर्तें, गिरफ्तारी के आधारों की सूचना न देना, ECIR (FIR जैसी) कॉपी दिए बिना अरेस्टिंग, मनी लॉन्ड्रिंग की व्यापक परिभाषा, जांच के दौरान आरोपी की ओर से दिए गए बयान ट्रायल में बतौर सबूत मानने आदि, का एजेंसी दुरुपयोग करती है।
PMLA के सेक्शन 3, 5, 18, 19, 24 और 45 ED को सुपरपावर बनाते हैं। आइए आपको उन सेक्शंस के बारे में एक-एक करके बताते हैं…
सेक्शन 3: यह सेक्शन दोषियों की बात करता है। इनमें हर ऐसा शख्स शामिल होगा जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपराध में लिप्त है।
सेक्शन 5: इसमें ऐसे लोगों की बात कही गई है जिनके खिलाफ जब्ती की कार्रवाई शुरू की जा सकती है। इसमें ये भी बताया गया है कि किन हालात में जब्ती नहीं की जा सकती है।
सेक्शन 18: ये तलाशी से संबंधित सेक्शन है। इसमें बताया गया है कि किन हालात में किसी की तलाशी ली जा सकती है।
सेक्शन 19: इसमें गिरफ्तारी के तौर-तरीकों के बारे में बताया गया है। कब और किन स्थितियों में गिरफ्तारी की जा सकती है, इसका भी जिक्र है।
सेक्शन 24: यह सेक्शन ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ की बात करता है। यह कहता है कि खुद को बेकसूर साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी व्यक्ति की होगी।
सेक्शन 42: इसमें बताया गया है कि एक्ट के तहत किन स्थितियों में हाई कोर्ट में अपील की जा सकती है।
ED की कार्रवाई पर हंगामा क्यों मचा
सियासी मामलों में ED की कार्रवाई से हंगामा मचा हुआ है। राजनीतिक दल अपने जनाधार का फायदा उठाने की भरसक कोशिश करते हैं। इसके लिए दिग्गज नेता कार्यकर्ताओं, प्रवक्ताओं और अपनी मशीनरी के जरिये मीडिया में खुद को विक्टिम की तरह पेश करते हैं और सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं।
नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ से लेकर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार के मंत्री तक की गिरफ्तारी ED कर रही है।
कांग्रेस, TMC सहित तमाम विपक्षी दलों का आरोप है कि भाजपा सरकार राजनीतिक विरोधियों को निशाने पर लेने के लिए ED का दुरुपयोग कर रही है।
ED के एक्शन से तीन राज्यों के चार मंत्रियों को हुई जेल
ED के एक्शन से पहली बार एक साल के भीतर तीन राज्यों के चार प्रभावशाली मंत्रियों को जेल जाना पड़ा है। इनमें महाराष्ट्र के तत्कालीन दाे कैबिनेट मंत्री अनिल देशमुख और नवाब मलिक शामिल हैं। नवाब मलिक दाऊद इब्राहिम से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में अरेस्ट हुए, जबकि देशमुख को ED ने एंटीलिया केस में गिरफ्तार बर्खास्त पुलिस अधिकारी सचिन वझे द्वारा वसूले 4.7 करोड़ के मामले में की है। आरोप है कि ये रकम सचिन वझे ने मुंबई के कई रेस्तरां और बार ओनर्स से वसूले और देशमुख के निजी सचिव (PS) संजीव पलांडे और निजी सहायक (PA) कुंदन शिंदे को दिए थे। ये दोनों भी ED की गिरफ्त में हैं।
दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ED ने 30 मई को गिरफ्तार किया था।
हाल में पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले में मंत्री पार्थ चटर्जी की चार दिन पहले ही गिरफ्तारी हुई है। ED के छापे में पार्थ की करीबी अर्पिता मुखर्जी के घर से 27 करोड़ रुपये से अधिक कैश और 5 किलो सोने के जेवरात जब्त किए गए।
ED ने ही की सोनिया- राहुल से पूछताछ
1 नवंबर 2012 को BJP नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने नेशनल हेराल्ड मामले में केस दर्ज करवाया था। एक अगस्त 2014 को ED ने जांच अपने हाथ में ली और केस दर्ज किया। इस साल जून में राहुल गांधी से कई दिन तक ED अधिकारियों ने घंटों पूछताछ की। इस पर कांग्रेसियों ने संसद से लेकर सड़क तक आंदोलन किया। पिछले दिनों कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी ED ने पूछताछ की। इस पर भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर आंदोलन किया।
ED ने ममता को भी कराया खामोश
फरवरी 2019 में CBI टीम कोलकाता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ करने पहुंची तो ममता बनर्जी ने इसे मुद्दा बना दिया। ममता ने कार्रवाई के विरोध में रात में धरना दिया। इसके बाद CM ममता ने राज्य में CBI की एंट्री पर रोक लगा दी। उनके मंत्री पार्थ चटर्जी पर ED ने कार्रवाई की तो ममता ने चुप्पी साध रखी है।
राजस्थान पर भी ED की तलवार
राजस्थान REET पेपर लीक मामले में सियासी घमासान चल रहा है। गहलोत सरकार ने बैकफुट पर आकर शिक्षक भर्ती परीक्षा को रद्द कर दिया था। भाजपा ने 400 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया है। इससे पहले राजस्थान में फोन टैपिंग कांड की जांच CBI नहीं कर पाई। अब कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव से पहले ED के जरिए केंद्रीय एजेंसी का राज्य में दखल हो सकता है।
कभी CBI से पीछे थी ED
CBI चार साल पहले तक देश के तमाम बड़े सियासी मामलों और घोटालों को टेकअप करती थी। इसके बाद ED की एंट्री होती थी। उदाहरण के लिए चारा घोटाला, स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला सहित तमाम बड़े चर्चित मामलों के अलावा मुलायम, मायावती, मधु कोड़ा से जुड़े केस भी हैं। राज्य सरकारों के पास ऐसा कोई कानून नहीं है, जिससे वे ED के दखल को रोक सकें।
8 साल में 5 गुना बढ़े ED के एक्शन
पिछले 10 साल में ED ने विदेशी मुद्रा से जुड़े FEMA के तहत 24,893 मामले दर्ज किए। इसमें मनी लॉन्ड्रिंग के 3,985 मामले हैं। 2014-15 में FEMA के तहत दर्ज 915 मामले 2021-22 में बढ़ कर 5,313 हो गए। PMLA के तहत 2014-15 में 178 मामले दर्ज थे, जो 2021-22 में बढ़ कर 1,180 हो गए। इस तरह 2014 से अब तक ED के दर्ज मामलों में पांच गुना का उछाल आया है। कुल मिलाकर 2014-15 में जहां 1,093 मामले दर्ज थे, वहीं 2021-22 में ये संख्या 5,493 हो गई है।
2019-20 के बाद और तेज हुई रफ्तार
FEMA के तहत 2018-19 में 2,659 मामले दर्ज किए थे, जाे 2021-22 में बढ़कर 5,313 हो गए। इसी तरह, PMLA के तहत 2018-19 में दर्ज 195 मामले छह गुना बढ़कर 2021-22 में 1,180 हो गए।
‘टाइमिंग और सोशल मीडिया ने बदली धारणा’
ED के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर सत्येंद्र सिंह कहते हैं कि ED शुरू से ही एक्टिव है। एजेंसी की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया है। टाइमिंग और सोशल मीडिया ने परसेप्शन चेंज कर दिया है। झारखंड का माइनिंग स्कैम, कोयला घोटाला, जगन रेड्डी, बेलारी में रेड्डी बंधुओं का घोटाला, MP का व्यापम केस, पंजाब और हरियाणा में शिक्षक भर्ती घोटाला, राजस्थान में आदर्श सोसाइटी घोटाला जैसे तमाम मामलों को ED ने पहले टेकअप किया था, लेकिन अब टाइमिंग कुछ ऐसी है, जैसे कि चुनाव या उसके आसपास के दौरान एक्शन होने से चर्चा ज्यादा होती है। जब भी एक्शन किसी राजनीतिक दल या नेता से जुड़ा होता है, तब शोर ज्यादा होता है। 2017 तक ED की स्ट्रेंथ एक हजार थी, जो बढ़कर 1600 हो गई है। स्थानीय कार्यालय खुलने से लोकल इनपुट भी आते हैं, जिससे ED के केस भी बढ़ रहे हैं।