ग्वालियर में स्मार्ट के नाम पर थोपीं परियोजनाएं हुई बदसूरत
शहर को आधुनिक और सुविधाजनक बनाने के लिए स्मार्ट सिटी कारपोरेशन द्वारा तैयार की गई परियोजनाएं ही जनता की परेशानी का कारण बन रही हैं।
ग्वालियर। शहर को आधुनिक और सुविधाजनक बनाने के लिए स्मार्ट सिटी कारपोरेशन द्वारा तैयार की गई परियोजनाएं ही जनता की परेशानी का कारण बन रही हैं। अफसरों ने बिना पूरी प्लानिंग किए परियोजनाएं शुरू कीं और इन्हें जनता पर थोप दिया। नतीजा सड़क, स्ट्रीट लाइट, ट्रैफिक सिग्नल से लेकर सिटी ट्रांसपोर्ट तक सभी परियोजनाएं बदसूरत (फेल) हो चुकी हैं। इन परियोजनाओं पर 382 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन लोगों को लाभ मिलने की बजाय समस्याएं खड़ी हो रही हैं।
शुक्रवार को स्मार्ट सिटी के बोर्ड की बैठक है और एजेंडे में सिर्फ एलईडी के रखरखाव का मुद्दा रखा जाएगा। इसमें कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह, नगर निगम आयुक्त किशोर कान्याल से लेकर निदेशक मंडल के अन्य सदस्य भी शामिल होंगे। उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे उन परियोजनाओं का भी जनता को लाभ दिलाएं, जो अभी उनके किसी काम नहीं आ रही हैं। कलेक्टर का कहना है परियोजनाअों की समीक्षा करेंगे। साथ ही सिटी बसों के सभी रूटों पर बसों का संचालन हो,इसके लिए आपरेटरों से नए सिरे से चर्चा करेंगे,संचालन में पुलिस व प्रशासन का पूरा सहयोग मिलेगा। स्मार्ट एलइडी की लाइटों की मैपिंग व थीम रोड का कार्य तेज कराएंगे।
कई समय सीमा पीछे छूटीं, एक किमी सड़क भी अधूरी
थीम
लागत: 300 करोड़ रुपये
दावे: सड़क पर आकर्षक सजावट, तारों को अंडरग्राउंड किया जाना है, ड्रेनेज की व्यवस्था
स्थिति: लश्कर क्षेत्र में प्रस्तावित 15.625 किमी स्मार्ट थीम रोड पर सिर्फ एक किमी का काम हो पाया है, जबकि अफसरों ने डेढ़ किमी सड़क और खोद रखी है। आमखो, राजपायगा रोड, नया बाजार आदि इलाकों में इस खुदी हुई सड़क पर वाहन चालकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बिजली कंपनी ने सीमेंट कंक्रीट डक्ट बनाकर तारों को अंडरग्राउंड करने का पैच लगा दिया, जिसकी वजह से काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है। स्मार्ट सिटी का कार्यकाल जून 2023 में समाप्त हो जाएगा। ऐसे में इस रोड का काम पूरा होना असंभव नजर आ रहा है।
आइटीएमएस से और बिगड़ी यातायात की चाल
इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम
लागत: 56 करोड़ रुपये
दावे: ट्रैफिक नियमों के पालन पर सख्ती, वाहनों की कैमरों से निगरानी, आनलाइन चालान, सुगम यातायात में सहायक
स्थिति: आइटीएमएस (इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम) को सुगम यातायात में सहायक बताया जा रहा है, उससे व्यवस्था और बिगड़ गई है। चौराहों पर सिग्नल की टाइमिंग गड़बड़ है। लाल बत्ती के बाद लाइट हरी होने की बजाय दोबारा लाल हो जाती है। इस बीच वाहन चालक बीच चौराहे तक पहुंच जाते हैं। चौराहों पर लेफ्ट टर्न फ्री होता है, लेकिन अफसरों को विशेष तौर पर इसके लिए कवायद करनी पड़ रही है। पब्लिक एड्रेस के नाम पर सरकारी योजनाओं के गुणगान चलते रहते हैं, जबकि इससे वाहन चालकों को चेतावनी मिलती रहनी चाहिए।
शहर में अधिकतर जगहों पर बंद हैं एलईडी लाइटें
लागत: 26 करोड़ रुपये
दावे: गली-मोहल्ले एलईडी से रोशन होंगे, बिजली की बचत, डैशबोर्ड पर सभी लाइटें दिखेंगी, आटोमेटिक बंद और चालू होंगी
स्थति: स्मार्ट सिटी के अफसरों ने एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (इइएसएल) के माध्यम से सोडियम स्ट्रीट लाइटें हटाकर उनके स्थान पर स्मार्ट एलईडी लाइटें लगाने की कवायद की। इसके लिए 26 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है, लेकिन शहर में सर्वाधिक शिकायतें इन्हीं लाइटों से जुड़ी हुई हैं। शहर में अधिकतर जगहों पर ये लाइटें बंद हैं। डैशबोर्ड पर सिर्फ 42 हजार लाइटें ही मैप हुई हैं। कई इलाकों में रात में अंधेरा रहता है, तो कई इलाकों में ये लाइटें पूरे दिन चालू रहती हैं।
बसों को न यात्री मिल रहे हैं न स्टैंड पर सुविधाएं
लागत: पीपीपी माडल़ऩिादावे: विभिन्न रूटों पर इंट्रा और इंटरसिटी सीएनजी बसें, सस्ती कीमतों पर एसी बसों में सफऱ
स्थिति: शहर में सिर्फ दीनदयाल नगर से लेकर महाराज बाड़ा तक सिटी बस का संचालन हो पा रहा है। इसमें भी टेंपो और निजी बस आपरेटर हावी होने के कारण बसों को सवारियां नहीं मिलती हैं। स्मार्ट सिटी के बस स्टैंड पर कोई यात्री सुविधा नहीं है। इसके चलते यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। शहर में 60 और अन्य शहरों के लिए 20 अतिरिक्त बसें चलाने का टेंडर छठी बार फेल हो चुका है। राजनीतिक कारणों के चलते बस आपरेटर रुचि नहीं ले रहे हैं। इस कारण जनता एक अच्छी सुविधा से वंचित है।