इकोनॉमी के मोर्चे पर देश में 24वें पायदान पर, कोई यूनिवर्सिटी टॉप 100 में नहीं; हरियाली में भी पीछे

चुनौती कड़ी  ….

इंदौर देश का सबसे साफ शहर है। छह साल से यह बादशाहत कायम है। सफाई के मामले में देश का पहला सेवन स्टार शहर भी बन चुका है, लेकिन देश का सबसे स्वच्छ शहर एक बार भी लिविंग इंडेक्स रिपोर्ट में टॉप-5 में जगह नहीं बना पाया। इस बार आठवें स्थान पर रहा है। इस 8वीं पायदान से पहले नंबर पर आने में अभी लंबा सफर तय करना है क्योंकि इकोनॉमिक ग्रोथ के मामले में देश मे 24वें नंबर पर है।

कई चुनौतियां हैं। मोस्ट लिवेबल सिटी के लिए इंदौर को बेंगलुुरू, मुंबई और पुणे जैसे शहरों से प्रतिस्पर्धा करना है जो अपने बेहतर यातायात, आईटी हब व रोजगार व शैक्षणिक संस्थानों के लिए जाने जाते ह। जहां इन शहरों में हरियाली नजर आती है, वहीं हमारे शहर में यह कम हो रही है।

बेंगलुरू, पुणे, सूरत हमसे कहीं आगे

ट्रैफिक के मामले में बेंगलुरू, पुणे, सूरत सहित कई शहर हमसे आगे हैं। हमारे यहां शिक्षा का डिजिटलाइजेशन नहीं हो पाया है। डीएवीवी केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की रैंकिंग में टॉप 100 में भी नहीं है। ईज ऑफ लिविंग में शिक्षा, स्वास्थ्य, हरियाली, परिवहन, आर्थिक स्थिति, सुरक्षा, वेस्ट मैनेजमेंट, प्रदूषण, स्वच्छता, बिजली, पानी सहित 27 बिंदुओं पर सर्वे किया जा रहा है। वर्ष 2018 में ईज ऑफ लिविंग सर्वे की शुरूआत हुई। इंदौर टॉप-10 में जगह पाता है लेकिन आगे स्पर्धा कड़ी है।

हमसे आगे कई मेट्रो सिटीज है जो इकॉनोमिक ग्रोथ के मामले में हमसे कहीं आगे है। मुंबई को तो देश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है। वहीं बेंगलुरु आई सिटी के नाम से मशहूर है। पिछली बार सर्वे में 111 शहरों ने हिस्सा लिया था। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने मोस्ट लिवेबल सिटीज के लिए मापदंड तय करता है। इसमें देखा जाता है कि जनता को क्या सुविधाएं मिल रही है।

लोक परिवहन, हरियाली में भी पीछे

  • लोक परिवहन व्यवस्था ठीक करना होगी। चौराहों पर रोड इंजीनियरिंग में दिक्कत है। संकेतक नहीं है कि कितने मीटर पर क्या है।
  • हमारे यहां 12 यूनिवर्सिटी हैं। डीएवीवी परीक्षा कराने और रिजल्ट देने में पीछे है। आईआईटी 16वें, आईआईएम 7वें क्रम पर है।
  • 2020 की रिपोर्ट के अनुसार शहर में जरूरत से आधी 54 वर्ग किमी हरियाली ही बची है।
  • चार साल बीतने के बाद भी अब तक 20 फीसदी पात्र हितग्राहियों के आयुष्मान कार्ड नहीं बन पाए। जिले के 50 से ज्यादा अस्पतालों में से कोई लैब या संस्था को एनएबीएल एक्रीडिटेशन नहीं मिल पाया है। 90 प्रतिशत आबादी सुपर स्पेशियलिटी सेवाओं के लिए निजी सेक्टर पर निर्भर है। वहां कोई शुल्क नियंत्रण नहीं है।

जीवन की गुणवत्ता, आर्थिक स्थिति देखी जा रही

  • क्वालिटी ऑफ लाइफ में साक्षरता दर, ड्रापआउट रेशाे, शिक्षा पर प्रति परिवार खर्च, छात्राें और शिक्षकों का अनुपात जैसे मानक हैं। स्वास्थ्य पर प्रति घर खर्च, पब्लिक हेल्थ सुविधा, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, राेड, फुटपाथ, वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट देखे जाते हैं।
  • पीएमएवाई योजना के तहत हितग्राही, शहर में ओपन स्पेस की उपलब्धता, क्राइम रेट, महिलाओं व बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराध, ग्रीन बिल्डिंग, एयर क्वालिटी इंडेक्स, ग्रीन स्पेस, इकॉनोमिक अपॉर्चूनिटी आदि देखी जा रही है।

करीब 30 तरह के पैरामीटर होते हैं। सफाई सिर्फ एक हिस्सा है। खासकर रोजगार व आर्थिक सुदृढ़ीकरण करना बहुत जरूरी है। मेट्रो सिटी हमसे ज्यादा बड़ी हैं, लेकिन वहां ट्रैफिक व्यवस्थाएं हमारे यहां से बेहतर हैं।
आर्किटेक्ट व प्लानर

लोक परिवहन व सुदृढ यातायात पर इकॉनोमिक ग्रोथ निर्भर करती है। पुणे और बेंगलुरू इसमें हमसे बेहतर स्थिति में हैं। शिक्षा को डिजिटल इकोनॉमी के साथ तैयार करना है लेकिन स्कूलों में यह दिखाई नहीं दे रहा है।
अर्थशास्त्री

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