हिंदुत्व के नाम पर सबसे बड़ी जीत:फिर भी BJP को क्यों चाहिए मुस्लिम वोट?

16 अक्टूबर 2022 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में BJP ने पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन आयोजित किया। कार्यक्रम में UP के डिप्टी CM ब्रजेश पाठक ने कहा- जैसे बिरयानी बनने के बाद उसे खाने से पहले हर कोई तेजपत्ता को निकालकर फेंक देता है। उसी तरह पार्टियां चुनाव के बाद पसमांदा मुस्लिमों को साइड कर देती हैं।

इससे करीब 3 महीने पहले 3 जुलाई 2022 को हैदराबाद में आयोजित BJP राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में PM मोदी ने स्नेह यात्रा की घोषणा की। इस यात्रा का मकसद पसमांदा मुस्लिमों के घर-घर पहुंच कर BJP से जोड़ने की पहल करना है।

सवाल उठता है कि क्या BJP को मुस्लिम वोटों की जरूरत है? कौन हैं पसमांदा मुस्लिम, जिन्हें BJP रिझाने की कोशिश कर रही है? क्या पसमांदा मुस्लिम BJP खेमे में आ सकते हैं? 

उर्दू-फारसी का शब्द है पसमांदा, मतलब है- पिछड़े और दलित मुस्लिम
‘पसमांदा’ शब्द फारसी भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब है- समाज में पीछे छूट गए लोग। भारत में पिछड़े और दलित मुस्लिमों को पसमांदा कहा जाता है।

जब हमने पसमांदा की शुरुआत जानने के लिए ‘ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज’ के संस्थापक और राज्यसभा सांसद रहे अली अनवर अंसारी से बात की तो उन्होंने दावा किया कि फारसी और उर्दू के इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल उन्होंने ही किया है।

अली अनवर कहते हैं कि मुस्लिम समाज भी जातियों में बंटा है। जो मुस्लिम जातियां सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी हैं, उन्हें पसमांदा मुस्लिम कहते हैं। इनमें वो जातियां भी शामिल हैं जिनसे छुआछूत होती है, लेकिन यह हिंदू दलितों की तरह अनूसूचित जातियों यानी SC की सूची में शामिल नहीं हैं।

अलग-अलग जातियों में बंटे पिछड़े मुस्लिमों को ‘जाति से जमात’ की नीति पर एकजुट करने के लिए पसमांदा शब्द की शुरुआत हुई थी। अब भारतीय मुस्लिमों में पसमांदा मुस्लिमों की आबादी 80% से ज्यादा है।

खबर में आगे बढ़ने ले पहले जानते हैं कि देश के किस हिस्से में कितनी मुस्लिम आबादी है, इससे हम देश में मौजूद पसमांदा मुस्लिमों की आबादी का एक अंदाजा लगा सकते हैं…

यह BJP के लिए वोटों का मामला नहीं बल्कि छवि सुधारने की कोशिश है: अभय दुबे
पॉलिटिकल एक्सपर्ट अभय कुमार दुबे बताते हैं कि BJP को पसमांदा से जुड़े इस तरह के कार्यक्रम और ‘स्नेह यात्रा’ से काफी लाभ हो सकता है, इसलिए क्योंकि पसमांदा की एक शिकायत रही है कि अशराफ लोग सत्ता में रहते हैं। पसमांदा की इस शिकायत को दूर कर BJP इस समुदाय के कुछ लोगों को अपनी ओर खींच सकती है।

उन्होंने कहा, ‘BJP औपचारिक तौर पर ‘स्नेह यात्रा’ निकालने के बजाय अगर ठोस राजनीतिक और आर्थिक कार्यक्रम लेकर पसमांदा के बीच जाएगी तो इसका फायदा मिल सकता है। अभी तक BJP शिया और बरेलवी वोटों पर काम करती रही है, लेकिन सुन्नियों पर BJP ने इस बार यह बड़ा प्रयोग किया है।’

दुबे का कहना है कि BJP की राजनीति काफी फ्लेक्सिबल यानी लचीली रही है। एक वक्त था जब NDA बनाने के लिए BJP ने अनुच्छेद 370 और राम मंदिर जैसे मुद्दे को साइड कर दिया था, लेकिन सत्ता में आते ही सबसे पहले यही काम किया।

ऐसे में BJP को अगर दिखाई देगा कि उसे पसमांदा का थोड़ा बहुत भी वोट मिल सकता है तो लोगों को BJP का बदला रूप भी देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि BJP मुख्यतौर पर 2 वजहों से पसमांदा मुस्लिमों को साध रही है..

1. अंतराष्ट्रीय स्तर पर इमेज चमकाने के लिए BJP ऐसा कर रही है।

2. BJP को जीतने के लिए नहीं बल्कि वोट शेयर बढ़ाकर सत्ता में मजबूती से आने के लिए पसमांदा मुस्लिमों को साधने की कोशिश है।

एक राय यह भी…

UP चुनाव में 8% पसमांदा मुस्लिमों ने BJP को दिया वोट: CSDS
उत्तर प्रदेश के 45% मुस्लिम आबादी वाली रामपुर लोकसभा सीट पर BJP को 42 हजार वोटों से जीत मिली। मुस्लिमों के गढ़ माने जाने वाले आजमगढ़ उप-चुनाव में भी 13 साल बाद BJP कमल खिलाने में कामयाब रही है। BJP प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने दावा किया है कि UP विधानसभा चुनाव में 8% पसमांदा का वोट BJP को मिला है।

इसके अलावा CSDS लोकनीति सर्वे 2022 ने भी अपने रिपोर्ट में बताया है कि 8% पसमांदा मुस्लिमों ने UP विधानसभा में BJP को वोट दिए। इसकी वजह से कई सीटों पर BJP की जीत में पसमांदा ने अहम भूमिका निभाई है। UP विधानसभा चुनाव 2022 में 34 मुस्लिम विधायक जीतकर लखनऊ पहुंचे हैं, जिनमें से 30 विधायक पसमांदा हैं।

उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में पसमांदा मुस्लिम 18% हैं। ऐसे में साफ है कि ‘स्नेह यात्रा’ के जरिए BJP न सिर्फ 80 लोकसभा वाले UP बल्कि बिहार, बंगाल, झारखंड जैसे राज्यों में भी राजनीति साधने की कोशिश कर रही है।
अब ग्राफिक्स से समझिए मुस्लिमों में 80% से ज्यादा पसमांदा को अपनी ओर खींचने के लिए BJP क्या कर रही है…

पसमांदा को साधकर विपक्षी दलों को कमजोर करना चाहती है BJP
छोटे दलों की मदद से BJP कैसे पसमांदा मुस्लिमों को साधना चाहती है, इस बात को बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम से समझा जा सकता है।

2010 में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली NDA सरकार बिहार में दो-तिहाई से अधिक बहुमत के साथ बनी थी। नीतीश कुमार के सुशासन और माफिया को खत्म कर कानून-व्यवस्था को मजबूत करने के चुनावी नारे उन कई कारणों में से एक थे, जिनकी वजह से उनकी जीत हुई।

इतना ही नहीं नीतीश कुमार ने जातिगत समीकरणों को काफी शानदार तरीके से साधा था, जिसके चलते पसमांदा मुसलमानों ने RJD और LJP के बजाय NDA को वोट दिया था।

सूत्रों की मानें तो 2024 लोकसभा चुनाव में NDA के सहयोगी पार्टियां अन्नाद्रमुक, अपना दल, निषाद पार्टी, JJP, राष्ट्रीय लोजपा, BPF, AGP, IPFT आदि पसमांदा मुस्लिम समुदाय को जोड़ने के लिए अन्य छोटे सहयोगियों के माध्यम से अपने मास्टर प्लान को लागू करेंगे। यानी चुनाव में ये पार्टियां पसमांदा समुदाय के नेताओं को मुस्लिम बहुल सीटों पर उनके चुनाव चिह्न पर टिकट देंगी।

भले ही ये पार्टी चुनाव न जीत सकें, लेकिन मुस्लिम वोटों को बांटने और विपक्षी दलों को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाएगी।

आजादी के बाद 400 मुस्लिम सांसद बने, इनमें सिर्फ 60 पसमांदा
2019 लोकसभा चुनाव के बाद पसमांदा मुस्लिमों के भारतीय राजनीति में हिस्सेदारी को लेकर सवाल खड़े होने लगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1947 से लेकर 14वीं लोकसभा तक कुल 7,500 सांसद बने, जिनमें से 400 मुस्लिम थे। हैरानी की बात यह है कि इनमें से 340 सांसद अशरफ यानी उच्च मुस्लिम जाति के थे और सिर्फ 60 मुस्लिम सांसद पसमांदा समाज से रहे हैं।

नीचे के ग्राफिक्स में समझिए किस दल के कितने मुस्लिम सांसद जीतकर 2019 में लोकसभा पहुंचे थे…

5 राज्यों में 190 लोकसभा सीट, यहीं सबसे ज्यादा पसमांदा
‘ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज’ के संस्थापक अली अनवर अंसारी का कहना है कि वैसे तो देश के 18 राज्यों में जहां भी मुस्लिम आबादी है, हर जगह पसमांदा हैं, लेकिन 5 राज्यों UP, बिहार, झारखंड, बंगाल और असम में इनकी संख्या ज्यादा है। इन 5 में से 3 राज्यों में अभी BJP और उसके सहयोगी दलों की सरकार है, जबकि 2 राज्यों में से एक में TMC और दूसरे में JMM और कांग्रेस की सरकार है।

2011 जनगणना के मुताबिक इन 5 राज्यों में मुस्लिम आबादी की बात करें तो UP में 19.26%, बिहार में 16.87%, बंगाल में 27.01%, झारखंड में 14.53% और असम में 34.22% मुस्लिम हैं।

इनमें ज्यादातर संख्या पसमांदा मुस्लिमों की है। इन राज्यों में 190 से ज्यादा लोकसभा की सीटें हैं। इसलिए BJP 2024 को ध्यान में रखते हुए यहां पसमांदा को साधने में लगी है। इसके अलावा दक्षिण भारत के तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी पसमांदा मुस्लिमों की अच्छी-खासी तादाद है।

सच्चर कमेटी ने भी दलित पसमांदा को SC में शामिल करने का दिया था सुझाव
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, 1936 में जब अंग्रेजों के सामने ये मामला गया तो एक इंपीरियल ऑर्डर के तहत सिख, बौद्ध, मुस्लिम और ईसाई दलितों को बतौर दलित मान्यता दी गई, लेकिन इन्हें हिंदू दलितों को मिलने वाले फायदे नहीं दिए गए। 1950 में आजाद भारत के संविधान में भी यही व्यवस्था रही।

हालांकि 1956 में सिख दलितों और 1990 में नव-बौद्धों को दलितों में शामिल तो कर लिया गया पर मुस्लिम दलित जातियों को मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद OBC लिस्ट में ही जगह मिल पाई। इसलिए कमीशन की रिपोर्ट में दलित पसमांदा मुस्लिमों को SC में शामिल करने का सुझाव दिया गया।

16 अक्टूबर को लखनऊ में पसमांदा सम्मेलन में डिप्टी CM ब्रजेश पाठक भी शामिल हुए थे।
16 अक्टूबर को लखनऊ में पसमांदा सम्मेलन में डिप्टी CM ब्रजेश पाठक भी शामिल हुए थे।

BJP की कोशिशों का पसमांदा पर कोई असर दिख रहा है?
BJP की कोशिशों का पसमांदा मुस्लिमों पर कितना असर पड़ रहा है, इसका जवाब ‘पसमांदा मुस्लिम समाज संगठन’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीस मंसूरी ने दिया है। अनीस का मानना है कि UP में BSP और SP ने हमें सपने दिखाए, वोट लिया, मगर चुनाव के वक्त किए गए वादों को भूल गए। जबकि BJP सरकार ने राशन, शौचालय, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान योजना का जाति-धर्म देखे बिना सबको लाभ दिया, इसीलिए 2022 में हमारे लोगों ने BJP को वोट दिया।

अब पसमांदा मुस्लिमों की बात हुई है तो जानिए अगड़े और पिछड़ों के अलावा मुस्लिमों में मसलक (मजहब) के आधार पर कौन से प्रमुख बंटवारे हैं…
भारत में मुख्य रूप से दो संप्रदाय के मुस्लिम हैं- पहला: सुन्नी और दूसरा: शिया। मुस्लिमों के इन दोनों संप्रदायों में कई-कई समुदाय हैं। इसके लिए नीचे दिए ग्राफिक को समझते हैं…

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में करीब 17 करोड़ मुस्लिम हैं। अंनुमान के मुताबिक फिलहाल यह आंकड़ा करीब 20 करोड़ है। प्यू रिसर्च के मुताबिक भारतीय मुस्लिमों में 85% से लेकर 87% सुन्नी हैं।

सुन्नी मुस्लिमों में अगड़े और पिछ़ड़ों के आधार पर दो वर्ग हैं-
1. अशराफ यानी उच्च वर्गीय मुसलमान : इसमें सैयद, शेख, मुगल, पठान, रांगड़ या मुस्लिम राजपूत, त्यागी मुसलमान आते हैं।

2. पसमांदा यानी OBC और दलित मुसलमान : कुंजड़े (राईन), जुलाहे (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), फकीर (अलवी), हज्जाम (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी (हवारी), लोहार-बढ़ई (सैफी), मनिहार, दर्जी (इदरीसी), वन्गुज्जर, तेली, गाड़ा आदि।

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