लंपी से मौतों का सच छिपाता रहा प्रशासन इधर, लाशों और कंकाल से बन गया पहाड़

लंपी पर लापरवाही, गायों पर पड़ रही भारी
लंपी से मौतों का सच छिपाता रहा प्रशासन इधर, लाशों और कंकाल से बन गया पहाड़

ग्वालियर. जिस तरह से कोरोना संक्रमण काल ने इंसानों का जीवन संकट में डाल दिया था, ठीक उसी तरह से लंपी वायरस गो वंश के लिए काल बनकर सामने आया है। शहर में विचरण कर रही गायों में लंपी वायरस कहर बनकर टूट पड़ा है। एक ओर जहां जिला प्रशासन और नगर निगम इस बीमारी में आंकड़ों की बाजीगरी दिखा रहा है वहीं हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं।

यही सबकुछ जानने पत्रिका टीम ने शहर के अलग-अलग हिस्सों में जाकर गो वंश की वस्तु स्थिति को जानने की कोशिश की तो हालात बद से बदतर मिले। लश्कर, मुरार और उपनगर ग्वालियर में इन गायों की इतनी बुरी स्थिति है कि किसी की आंख से खून निकल रहा है तो किसी का पूरा का पूरा पैर ही सड़ गया है। ये बेजुबान अपना दर्द किससे बयां करें। यहां तक कि कई गायों में तो कीड़े तक पड़ चुके हैं। शहर में गायों की इतनी भयावह स्थिति होने के बावजूद किसी ने भी इनके हालात सुधारने की पहल नहीं की। सबसे बड़ी बात राष्ट सेवा और गो माता के लिए मरने-मारने वाले बड़े-बड़े संगठन भी लंपी वायरस में गायों से दूरी बनाए हुए हैं। आलम यह है कि मृत गायों को शहर से दूर नगर निगम की केदारपुर लैंडफिल साइट ले जाया जा रहा है, ये जगह गायों की कब्रगाह बनी हुई है। यहां हर ओर मृत गायों के ढेर और उनके अवशेष ही नजर आते हैं। यहां पड़ताल करने पर पता लगा कि यहां शहर भर से हर रोज करीब 200 मृत गाय पहुंच रहीं हैं, इस हिसाब से पिछले डेढ़ माह में करीब 10 हजार से अधिक गायों की मौत हो चुकी है। शहर की 10 में 4 से अधिक गो माता लंपी वायरस से पीड़ित नजर आ रही हैं।

नगर निगम की केदारपुर लैंडफिल साइट के हालात जानने जब पत्रिका टीम यहां पहुंची तो यहां हर गो वंश की लाशों के पहाड़ खडे़ दिखाई दिए। हर ओर हजारों की संख्या में गायों की अस्थियां बिखरी पड़ी दिखाई दीं। इसके साथ ही यहां गायों के अवशेषों की इतनी तीक्ष्ण दुर्गंध फैली हुई थी कि साधारण व्यक्ति 10 मिनट भी इस जगह खड़ा नहीं रह सकता। साथ ही कई जगहों पर मक्खियां भी भिनभिनाती दिखाई दीं। गड्ढों में गायों के ताजा शव भी यहां पड़े हुए दिखाई दिए। यहां लगा इंसीनरेटर भी खराब अवस्था में है, जिससे गायों का अंतिम संस्कार भी नहीं हो पा रहा है। यहां करीब दो बीघा जमीन पर हर ओर मृत गायों के ढे़र देखे जा सकते हैं। नगर निगम की ओर से यहां मृत गायों को लाने के लिए चार गाड़ियां और एक ट्रेक्टर रखा गया है। इनमें एक बार में 7 से 8 गायें भरकर लाई जा रही हैं। जिस समय इन गायों को एकसाथ लाकर यहां पटका जाता है वह अवस्था कोई देख नहीं सकता है। सुबह 10 बजे से लेकर रात 1 बजे तक यहां गायों को लाने कार्य जारी रहता है। इसके साथ ही यहां गायों की लाशों को ठीक तरीके से डी-कंपोज भी नहीं किया जा रहा है। गायों को लाकर गड्ढों में पटक दिया जाता है और इसके लिए जेसीबी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। एक कर्मचारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि गायों की लाशों को दफनाने के लिए करीब आठ फीट का गड्ढ़ा खोदा जाता है, लेकिन यहां सभी गड्ढे़ ऊपर तक भरे दिखाई दिए।

ये तस्वीरें कैसे दिखाएं… सड़कों पर घूमती गायों के शरीर से रिस रहा खून, पड़ गए कीड़े
गायों की कब्रगाह बनी लैंडफिल साइट
पत्रिका टीम पहुंची तो देखा यहां फेंके जा रहे कंकाल व लाशें क्योंकि लाशों को दफन करने जगह नहीं।

गोवंश पर संकट का साया, नगर निगम और जिला प्रशासन को नहीं सुध

केदारपुर लैंडफिल में हर रोज 200 मृत गाय पहुंच रहीं, डेढ़ माह में 10 हजार गायों की हो चुकी मौत

दबी जबान में उसने बताया कि लंपी वायरस के बाद से लगातार ऐसे हालात बन रहे हैं।

24 घंटे में 10 गुना रफ्तार पकड़ते हैं कीडे़

लंपी वायरस गो माता को कितनी पीड़ा दे रहा है, इसे सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है। लंपी वायरस से पीड़ित गाय के शरीर पर लम्स निकलते लगते हैं और धीरे-धीरे ये फटने लगते हैं। फिर इनमें कीड़े पड़ जाते हैं और 24 घंटे की भीतर ही ये कीड़े 10 गुना रफ्तार से बढ़ते हैं। शहर में कई गाय ऐसी भी देखने को मिली जिनका 3 से 6 माह में ही प्रसव हो गया और उनके बछड़े भी मृत ही निकल रहे हैं।

आइसोलेशन सेंटर के भी हालात और भी बुरे

शहरी क्षेत्र में गायों में लंपी वायरस के लक्षण दिखने पर उन्हें क्वारंटाइन किए जाने को लेकर बंधौली में आइसोलेशन सेंटर बनाया गया है। यहां के हालात भी बुरे ही हैं। लंपी से पीड़ित कई गायों की यहां भी मौत हो रही हैं। इसके साथ ही जिंदा गायों का ट्रीटमेंट होता नहीं दिखाई दिया, इसके लिए चिकित्सक भी नहीं दिखाई दिए। यहां दवाइयों की बोतलें भी टूटी पड़ी दिखाई दीं। यहां लाई जाने वाली गायों को वापिस शहर में ही छोड़ दिया जा रहा है।

कलेक्टर के आदेश का भी नहीं हो रहा पालन

लंपी वायरस से बचाव को लेकर कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने एडवाइजरी के साथ प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किया गया था। कलेक्टर ने आदेश दिया था कि अगले दो महीने तक धारा-144 के अंर्तगत पशुओं का आवागमन और परिवहन पूरी तरह से प्रतिबंधित रहेगा। बावजूद इसके शहर में ये प्रतिबंध लागू नहीं हो पाया और राजस्थान के साथ-साथ आसपास के जिलों से गो वंश का आवागमन भी जारी है।

भयावह स्थिति… श्वानों ने बना लिए घर

इस जगह बड़ी संख्या में श्वान भी दिखाई दिए। ये श्वान यहां आने वाली गायों की लाशों का मांस नोचकर खा जाते हैं। खास बात यह देखने को मिली कि इन श्वानों ने यहीं पर अपने-अपने छोटे-छोटे घर भी बना लिए हैं। ये श्वान बार-बार इन घरों से अंदर-बाहर आते दिखाई दिए।

अब लंपी से पीड़ित गायों की शिकायतों में काफी कमी आई है। आइसोलेशन सेंटर की गायें भी अब ठीक हो रही हैं और लैंडफिल साइट पर भी मृत गायों की संख्या में कमी आ चुकी है। फिर भी एक बार आप वेटनरी के डॉक्टर बघेल से भी बात कर लें। किशोर कान्याल, निगमायुक्त

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