हेट स्पीच पर टीवी चैनलों के खिलाफ सख्ती जरूरी

भिन्न मुद्दों पर बहस के बहाने नफरती भाषणों को हवा देना कई टीवी चैनलों के एंकरों की आदत बन गई है। ऐसे एंकरों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट को हाल ही सख्त टिप्पणी करनी पड़ी। शीर्ष अदालत ने सवाल किया – यदि टीवी न्यूज एंकर हेट स्पीच की समस्या का हिस्सा हैं तो उन्हें हटा क्यों नहीं दिया जाता? कोर्ट की टिप्पणी थी, ‘टीवी चैनल और उसके एंकर शक्तिशाली विजुअल मीडियम के जरिए टीआरपी के लिए समाज में विभाजनकारी और हिंसक प्रवृत्ति पैदा करने वाला कुछ खास एजेंडा बेचने का औजार बन गए हैं।’ आम शिकायत है कि लाइव बहस में शामिल कुछ व्यक्तियों की आवाज को टीवी चैनल म्यूट कर देते हैं या एंकर उन्हें बोलने का मौका नहीं देते। कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि लाइव बहस में निष्पक्षता की जिम्मेदारी एंकर पर होती है। कुछ लोगों को बोलने का मौका नहीं देना पक्षपात है।

यह पहला मौका नहीं है, जब हेट स्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने टीवी न्यूज चैनलों पर निशाना साधा है। पिछले साल दिसंबर में भी उसने इन चैनलों की खुली चर्चाओं को हेट स्पीच फैलाने वाला सबसे बड़ा जरिया बताया था और नियमन के दिशा-निर्देश तैयार करने पर जोर दिया था। जस्टिस डी.वाइ. चंद्रचूड़ ने 2020 में सुदर्शन न्यूज चैनल के यूपीएससी जिहाद कार्यक्रम पर रोक लगाते हुए कहा था कि हमें इसलिए दखल देना पड़ा, क्योंकि कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा था। केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर मुख्यधारा के टीवी न्यूज चैनलों को मीडिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बता चुके हैं, पर मंत्रालय का कहना है कि मौजूदा नियमों के तहत कोई कार्यक्रम प्रसारित होने से पहले न तो उसकी स्क्रिप्ट मांगी जा सकती है, न ही प्रसारण पर रोक लगाई जा सकती है।

फिलहाल टीवी चैनलों पर प्रसारित सामग्री 1994 के केबल टेलीविजन नेटवर्क नियमों के तहत नियंत्रित की जा रही है। इनके अनुसार केबल सर्विस ऐसा कोई कार्यक्रम प्रसारित नहीं कर सकती, जो किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ हो। टीवी न्यूज चैनल इन नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। चैनलों की नैतिकता और परिचालन के मामलों पर प्रमुख न्यूज चैनलों ने न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन और न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी का गठन किया था। हेट स्पीच पर लगाम कसने की दिशा में दोनों संगठनों ने जो कदम उठाए, वे बेअसर रहे। नफरत फैलाने वाली सामग्री के प्रसारण पर रोक के लिए सख्त गाइडलाइन के साथ सजग निगरानी तंत्र भी जरूरी है। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में नफरत फैलाने वाले न्यूज चैनलों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। ऐसे चैनलों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *