आखिरी बार ऐसा कब हुआ था कि किसी सरकार ने बड़े पैमाने पर सब्सिडियों में कटौती की हो
इस जैसे किसी कॉलम में सरकार की तारीफ करने का मतलब है, अपने पर ‘भक्त’ या ‘चापलूस’ होने का ठप्पा लगवाने का खतरा मोल लेना। ये सच है कि हमें सरकार या उसकी नीतियों में जो कमियां हैं, उनकी आलोचना करनी चाहिए। लेकिन क्या जब सरकार ने कोई प्रशंसा-योग्य कार्य किया हो तब भी उसकी प्रशंसा न की जाए? क्योंकि मौजूदा सरकार के द्वारा अब तक प्रस्तुत किए गए नौ बजटों में से इस वर्ष का आम बजट सबसे अच्छा रहा है।
बात राजकोषीय जिम्मेदारी की हो, बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने व खर्चीली सब्सिडियों में कटौती करने की हो या करदाताओं को राहत देने की, बजट ने हर क्षेत्र में अच्छा काम किया है। बजट की पांच बातें ऐसी हैं, जिनके लिए सरकार की सराहना की जाना चाहिए।
पहली बात, 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले यह इस सरकार का आखिरी बजट था। इसके बाद अब सरकार पूरी तरह से चुनावी मोड में आ जाएगी। अतीत में चुनाव से पूर्व के अंतिम बजटों के साथ यही समस्या रही है। वोटों की चाह में इनमें दिल खोलकर सौगातें, सबसिडियां, छूट आदि दी जाती थीं। वास्तव में चुनाव-पूर्व बजट का लोकलुभावन होना इतना तयशुदा मान लिया गया था कि विश्लेषकगण इस बार भी वैसी ही अपेक्षा कर रहे थे।
एक्सपर्ट लोग इस तरह की बातें कहने के लिए तैयार बैठे थे कि बजट में राजकोषीय जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया गया है, लेकिन यह समझा जा सकता है, क्योंकि अगले साल चुनाव जो हैं आदि इत्यादि… लेकिन मौजूदा बजट सरकारी खजाने को मजबूती देने वाला है। राजकोषीय घाटे का मतलब होता है सरकार का अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च करना, इसलिए यह घाटा जितना कम हो उतना अच्छा।
दो साल पहले यह जीडीपी का 6.7 प्रतिशत हो गया था, जिसे इस बार 5.9 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा गया था। ये आंकड़े भले हर भारतीय के जीवन पर प्रभाव डालते हों, लेकिन उनमें रुचि केवल अर्थशास्त्रियों की होती है।
अगर सरकार जरूरत से ज्यादा खर्च करती है तो मुद्रास्फीति की स्थिति निर्मित हो जाती है और इकोनॉमी कमजोर होती है। लेकिन शॉर्ट टर्म में ज्यादा खर्च करने का लोभ संवरण करना कठिन होता है। मुफ्त सौगातें देने वाली पार्टी वोटरों को बड़ी प्रिय होती है। लेकिन इस बार के बजट में सरकार ने ऐसा नहीं किया और वित्त-वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को 4.5 प्रतिशत तक लाने का भी लक्ष्य रख लिया गया है।
दूसरी बात, ऐसा नहीं है कि यह सरकार हमेशा ही हाथ रोककर खर्चा करती है। सरकार के खर्चों का एक बड़ा हिस्सा वेतन भुगतान और राजस्व-व्यय कहलाने वाले ब्याज भुगतान में नियमित रूप से जाता है। इनसे रोजमर्रा का कामकाज चलता है। लेकिन सरकार दीर्घकालिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए भी पैसा खर्च करती है, जिन्हें पूंजीगत-व्यय कहा जाता है।
ये वैसे व्यय हैं, जिनसे भविष्य में रिटर्न मिलता है। बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसे सड़कें, रेल, पुल, बंदरगाह, हवाई अड्डे आदि इनका बड़ा हिस्सा हैं। सरकार का पूंजीगत व्यय इस साल 7.21 लाख करोड़ से बढ़कर 10 लाख करोड़ हो जाएगा। यह 37 प्रतिशत की बढ़ोतरी है और तीन वर्ष पूर्व के व्यय की तुलना में लगभग दोगुनी है।
अकेले रेलवे मंत्रालय का व्यय 1.6 लाख करोड़ से बढ़कर 2.4 लाख करोड़ हो गया है, जो कि एक साल में 48 प्रतिशत का इजाफा है। ये मामूली बदलाव नहीं हैं, बल्कि देश के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर सर्वाधिक जोर देने की नीति का परिणाम हैं।
बुनियादी ढांचे की इन तमाम परियोजनाओं से नौकरियों का सृजन होगा, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि इससे आने वाले समय में उत्पादकता और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। नागरिकों को बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर से जो सुविधा होगी, वह तो है ही।
तीसरी बात, आखिरी बार ऐसा कब हुआ था कि सरकार ने बड़े पैमाने पर सब्सिडियों में कटौती की हो और वह भी चुनाव से ठीक पहले? सरकार ने इस बार के बजट में ठीक यही किया है। फूड, फर्टिलाइजर, पेट्रोलियम आदि में दी जाने वाली सब्सिडियों को 5.6 लाख करोड़ से घटाकर 4 लाख करोड़ कर दिया गया है, जो कि 28 प्रतिशत की गिरावट है। आम बजट के मूल में सरकारी खजाने की स्थिति को बेहतर बनाने की भावना निहित होती है और सरकार ने इस बजट के माध्यम से यही किया है।
चौथी बात, बीते अनेक वर्षों से विनिवेश के लक्ष्यों को अर्जित नहीं किया जा रहा था। बीते वर्ष भी विनिवेश के लक्ष्य का 77 प्रतिशत ही अर्जित किया जा सका। 65 हजार करोड़ के विनिवेश की अपेक्षा थी, पर 50 हजार करोड़ ही हो सका, अलबत्ता वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं। बतलाने की जरूरत नहीं कि कोविड-काल में सरकार ने एअर इंडिया को बेचने में सफलता पा ली थी, अकेला वह कदम ही सराहना का हकदार है।
आखिरी बात, बीते अनेक वर्षों से आयकर के स्तरों को बदला नहीं गया था और मुद्रास्फीति को देखते हुए इसमें सुधार अपेक्षित था। आयकर का एक अधिक उपयुक्त स्तर न केवल मध्यवर्ग को राहत देता है, बल्कि कर-नीति के प्रति स्वीकृति भी बढ़ाता है।
मिडिल इनकम वालों को कर में छूट देकर सरकार ने अपने लिए बहुत सारे समर्थक जुटा लिए हैं। साथ ही बजट में और भी बहुत सारी बातें थीं, जैसे विभिन्न योजनाएं, छोटे कल्याणकारी कदम, कुछ नीतिगत बदलाव। साथ ही नियमित ड्यूटियां, कर-निर्धारण, कुछ उत्पादों को महंगा तो कुछ को सस्ता करने के निर्णय थे। एक बड़ी और स्थिर अर्थव्यवस्था का बजट ऐसा ही होना चाहिए।
हमें ऐसे ही बजट की जरूरत
जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था बड़ी होती जाएगी, हमें इसी तरह के बजटों की आवश्यकता होगी, जो सरकारी खजाने के प्रति जिम्मेदार हों, भविष्य की परियोजनाओं में निवेश करें और अर्थव्यवस्था को स्थिरता दें। इस साल के बजट ने यह सब किया है, और सबसे बड़ी बात यह कि महामारी की मार झेलने के बाद और प्री-इलेक्शन ईयर होने के बावजूद उसने वैसा किया है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)