पिछले नौ साल में पहली बार विपक्ष के हत्थे कोई तगड़ा मामला चढ़ा है
बीते कुछ दिनों में कुछ ऐसे हादसे हुए, जिन्होंने हम हिंदुस्तानियों के भरोसे को हिलाकर रख दिया। बात अदाणी ग्रुप या उनकी कम्पनियों या खुद गौतम अदाणी की नहीं है। उनको तो खुद हिंडनबर्ग ने हिला दिया है। वे क्या हमें डराएंगे? जहां तक भरोसे की बात है, अदाणी पर विश्वास सरकारें करती होंगी, हम नहीं। विपक्ष उन पर अविश्वास करता होगा, हम नहीं। क्योंकि हमारा उनसे चंद शेयरों के अलावा कोई वास्ता वैसे भी नहीं है।
हमारे विश्वास को, भरोसे को तो हिलाया है, उन संस्थानों ने जिन्होंने अदाणी ग्रुप को बेइंतहा लोन दे रखा है। जिन बैंकिंग या वित्तीय संस्थानों पर हम भरोसा करते हैं, वे ढंग के तो इस देश में दो ही हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी एसबीआई और लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया यानी एलआईसी। इन दोनों का खासा कर्ज अदाणी ग्रुप पर चढ़ा हुआ है।
रिजर्व बैंक ने इनसे और इन जैसे अन्य संस्थानों से हिसाब मांगा है कि बताइए, किसने कितना पैसा अदाणी को दे रखा है और कितना देने वाले हैं? जाहिर है सभी ने रिजर्व बैंक को अपनी-अपनी मंशा बता ही दी होगी लेकिन आंकड़ों का खुलासा अब तक नहीं हो पाया है। खुलासा हो भी जाए तो कोई क्या कर लेगा? कई माल्या-वाल्या इस देश के सरकारी बैंकों को लूट कर रफूचक्कर हो गए। किसी ने क्या कर लिया?
हालांकि धीरे-धीरे ही सही, शेयर बाज़ार की गिरावट में कुछ स्तर तक कमी आई है, लेकिन संसद का पारा बेहद गर्म है। दरअसल पिछले नौ साल में पहली बार विपक्ष के हत्थे कोई तगड़ा मामला चढ़ा है। यही वजह है कि इस बार समूचा विपक्ष मत चूके चौहान की शैली में आगे बढ़ रहा है।
जहां तक सरकार का सवाल है, वह अब तक इस पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए है। उसने बस इतना कहा है कि इस मामले से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। विपक्ष संसदीय समिति से जांच कराने पर तुला हुआ है, जबकि कुछ अदाणी समर्थक विशेषज्ञ कहते फिर रहे हैं कि संसदीय समिति में कौन-से वित्तीय विशेषज्ञ बैठे हैं, जो मामले को समझ भी लेंगे और दूध का दूध, पानी का पानी कर देंगे? सरकार कह रही है कि सेबी इस मामले की जांच कर रही है। इसलिए और किसी जांच की फिलहाल कोई जरूरत नहीं है।
सब जानते हैं अदाणी ग्रुप किसके करीब और किससे दूर है। जो भी हो, संसद का वक्त जाया हो रहा है। लेकिन यह भी कोई नई बात नहीं है। जो आज सत्ता में बैठे हैं वे भी जब विपक्ष में थे, तब भी कुछ अनोखा नहीं घट रहा था। तब भी कई-कई दिन तक संसद के दोनों सदन ठप पड़े रहते थे और जो आज विपक्ष में बैठे हैं, वे भी इस तरह संसद के वक्त को लेकर गीत गाया करते थे। कुल मिलाकर यह सत्ता का खेल है।
ऐसा ही रहता है। चाहे कुर्सी पर ये बैठे हों या वो। केवल चेहरे बदलते हैं। कार्यशैली और काम लगभग एक जैसे ही रहते हैं। जब तक वोट देते समय हम समझदारी नहीं दिखाएंगे, संसद और विधानसभाओं में ऐसे ही लोग आते रहेंगे, जिन्हें न तो हमारे भरोसे की कद्र होगी और न ही हमारे वोट की।
हमारे भरोसे को तो हिलाया है उन संस्थानों ने जिन्होंने अदाणी ग्रुप को बेइंतहा लोन दे रखा है। जिन संस्थानों पर हम भरोसा करते हैं, वे ढंग के दो ही हैं- एसबीआई और एलआईसी। इनका खासा कर्ज अदाणी ग्रुप पर चढ़ा है।