बेटियों… आधी जमीन, आधा घर, आधा बैंक बैलेंस मत मांगो

बेटियों… प्‍यार मांग लो, शादी-त्‍योहार पर उपहार मांग लो; लेकिन आधी जमीन, आधा घर, आधा बैंक बैलेंस मत मांगो

ये एक सच्‍ची घटना है। 25 साल पुरानी और 25 साल लंबी क‍हानी। देश की राजधानी से सटे गुड़गांव में ठाकुर साहब के पास कुछ एकड़ जमीन थी। जमीन में उगने वाले अन्‍न से घर-गृहस्‍थी का खर्च चलता। उन्‍हीं पैसों से बेटियों और बड़ी मन्‍नतों के बाद पैदा हुए एक बेटे की परवरिश हुई।

लड़कियों ने गांव से दसवीं पास की और कुछ पैसों-गहनों की गठरी बांधकर उन्‍हें दूर ससुराल रुखसत कर दिया गया। मायके और ससुराल की माली हालत बमुश्किल एक जैसी ही थी। कुछ एकड़ खेत इधर थे और कुछ एकड़ खेत उधर।

फिर ग्‍लोबलाइजेशन आया। विदेशी कंपनियां आईं। बहुत सारा पैसा आया। शहर दिल्‍ली देखते-देखते गुड़गांव तक फैल गया। एक बड़ी कंपनी ने हाइवे और बिजनेस पार्क बनाने के लिए ठाकुर साहब की कौडि़यों की जमीन करोड़ों में खरीद ली। रातों रात परिवार की तकदीर बदल गई। अब तीन कमरों के पक्‍के मकान की जगह कोठी खड़ी थी। कोठी के सामने चार छल्‍ले वाली गाड़ी।

अचानक आया ये सारा धन-वैभव बेटे का हुआ। मामूली घरों में ब्‍याही गईं चारों बेटियों का इस सौभाग्‍य में कोई हिस्‍सा नहीं था। जब सबसे छोटी बेटी ने कानून का हवाला देकर संपत्ति में हिस्‍सा चाहा तो पिता और भाई ने ये कहकर इनकार कर दिया कि तेरे ब्‍याह में दहेज तो दिया था।

जमीन कंपनी को बेचने से पहले एक जोड़ी सूट और मिठाई का एक डिब्‍बा देकर बेटियों से नो ऑब्‍जेक्‍शन सर्टिफिकेट पर साइन करवा लिए गए थे। बेटियों को सूट और मिठाई का डिब्‍बा मिला और बेटे को 26 करोड़।

फर्ज करिए कि बेटियों का भी उस जमीन में हिस्‍सा होता तो आज 5 करोड़ की हिस्‍सेदार वो भी होतीं, जबकि उनके ब्‍याह में बमुश्किल डेढ़-दो लाख का खर्च आया था।

इस देश का उत्‍तराधिकार कानून कहता है कि बेटियों का पिता की संपत्ति में बेटों के बराबर हक है, लेकिन फिर भी इस देश की बेटियों को वह हक पाने के लिए न्‍यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ता है।

ऐसी ही एक बेटी ने हाल ही में गोआ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मां ने सारी संपत्ति बेटों के नाम कर दी और बेटी से कहा कि तुम्‍हारे ब्‍याह में खर्च किया, तुम्‍हें दहेज दिया। कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि शादी और दहेज के बाद भी पिता की संपत्ति में बेटी का अधिकार खत्‍म नहीं हो जाता। वह संपत्ति में बेटों के बराबर ही समान उत्‍तराधिकारी है।

इस बेटी में दम था तो उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने मां और भाइयों के साथ रिश्‍ते खराब होने की परवाह नहीं की। ठाकुर साहब की गांव से दसवीं पास बेटियां ये नहीं कर पाईं।

उन्‍होंने एक डिब्‍बा मिठाई से संतोष कर लिया। वो आज भी खेतों में काम करती हैं, गोबर के कंडे पाथती हैं, जानवरों का चारा-पानी करती हैं और पिता की जमीन का इकलौता उत्‍तराधिकारी बेटा ऑडी में घूमता है और गुड़गांव के नाइट क्‍लब्‍स से आधी रात नशे में धुत्‍त होकर निकलता है।

पांचों एक ही माता-पिता की संतान थे। एक ही कोख से जन्‍मे, एक ही छत के नीचे पले, लेकिन उनकी तकदीर में कितना फर्क। सिर्फ इसलिए क्‍योंकि एक लड़का था और बाकी चारों लड़कियां।

आज स्‍त्री अधिकार की बातें बहुत होने लगी हैं चारों ओर। लोगों ने भी इस बात को एक तरह से पचा लिया है। अब उन्‍हें इतनी तकलीफ नहीं होती, जब औरतें शिक्षा में, नौकरी में, वेतन में समानता की बात करती हैं, लेकिन जब पिता की प्रॉपर्टी में अपना हिस्‍सा मांगने की बात आती है तो बड़े-बड़े स्‍त्री समानता के पैरोकारों को भी सांप सूंघ जाता है।

बाकी किसी समानता से उन्‍हें कोई गुरेज नहीं है। बस घर की जमीन-जायदाद में हिस्‍सा मत मांगो। प्‍यार मांग लो, शादी-त्‍योहार-जन्‍मदिन पर उपहार मांग लो, नेग मांग लो, लेकिन आधी जमीन, आधा खेत, आधा घर, आधा गहना और आधा बैंक बैलेंस मत मांगो।

कानून का तो ऐसा है कि मौजूदा कानून लड़कियों को सिर्फ पिता की ही नहीं, पैतृक संपत्ति में भी बराबर का हिस्‍सा देता है। हिंदू उत्‍तराधिकार कानून 1956 में वर्ष 2005 में एक एमेंडमेंट हुआ, जिसके बाद पिता की संपत्ति में लड़का और लड़की दोनों को बराबर अधिकार दिया गया, लेकिन बेटियों का ये अधिकार सिर्फ पिता की अर्जित संपत्ति पर था।

पैतृक संपत्ति में अब भी उसका कोई हिस्‍सा नहीं था। जबकि बेटे उस पैतृक संपत्ति के भी उत्‍तराधिकारी होते थे।

दिल्‍ली हाईकोर्ट की पूर्व जस्टिस लीला सेठ ने इस नियम को बदलने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। अगस्‍त, 2020 में हिंदू उत्‍तराधिकार अधिनियम में बदलाव करते हुए पैतृक संपत्ति में भी लड़कियों को बराबर अधिकार दिया गया। अब लड़कियां न सिर्फ पिता के शहर वाले मकान और बैंक बैलेंस में बराबर की अधिकारी थीं, बल्कि गांव की पुश्‍तैनी जमीन और घर में भी उनका बराबर हिस्‍सा था।

कानून ने तो अधिकार दे दिए, लेकिन समाज अब भी वह अधिकार देने को तैयार नहीं। अगर आप जमीनी हकीकत को समझना चाहते हैं तो भारतीय न्‍यायालयों का एक चक्‍कर लगा आइए और आंकड़े जुटाइए उन केसेज के, जिसमें लड़कियों ने पिता की संपत्ति में अपने हिस्‍से के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

एक काम और भी करिए। जहां कचहरी में घर-जमीन का रजिस्‍ट्रेशन होता है, वहां उन ब्‍याहता बुआओं की भीड़ देख आइए, जो पिता की प्रॉपर्टी पर अपना अधिकार छोड़ने के लिए कचहरी के कागज पर अंगूठा लगाने आई हैं। पचास लाख की जमीन भाइयों के नाम करते हुए वो कागज से आंख उठाकर भी नहीं देखतीं।

वो भाई की आंखों में भी नहीं देखतीं। जिंदगी भर बर्तन मांज-मांजकर खुरदुरे हो चुके बस अपने अंगूठों के उस निशान को देखती हैं और फिर उन कचौडि़यों को जो उनके हिस्‍से की लाखों की जमीन उनसे हड़पकर कचहरी के बाहर हलवाई की दुकान पर उन्‍हें खिलाए गए। चलते हुए छोटे भाइयों ने उनके पैर छुए।

अगर आपको लगता है कि यह किसी फिल्‍म का दृश्‍य है और आपकी जिंदगी की हकीकत नहीं है, तो आप या तो अंधे हैं या मक्‍कार। ज्‍यादा दूर क्‍यों जाना। अपने घर में ही देख लीजिए। क्‍या आपकी मां को आपके नाना की संपत्ति में हिस्‍सा मिला?

क्‍या आपकी बुआ को आपके दादा ने अपनी संपत्ति में हिस्‍सा दिया। आपकी मां, आपकी बुआ, सब पर उन कागजों पर दस्‍तखत कराए गए, जिसमें उन्‍होंने खुशी-खुशी सारी संपत्ति अपने दुलारे भाइयों के नाम कर दी और खुद ससुराल की जिल्‍लत और पति का रौब सहने वापस लौट गईं।

अगर आपने घर में मां को पिता की डांट खाते, उनसे दबते, चुप रहते देखा है तो पता है, इसकी वजह क्‍या थी। इसकी वजह थी कि आपके नाना ने आपके मामा को सारी जमीन-जायदाद दे दी और आपकी मां को ससुराल। जैसे पैसे और प्रॉपर्टी से आप सबल और ताकतवर महसूस करते हैं, आपकी मां भी कर सकती थीं, अगर उन्‍हें हिस्‍सा दिया गया होता तो।

ऐसा तो कुछ हुआ नहीं और आपकी मां जीवन भर अपमान सहती रहीं। इस देश की लाखों-करोड़ों औरतें पीढ़ी दर पीढ़ी अपमान सहती रहीं। दबकर, डरकर जीती रहीं, क्‍योंकि पिताओं ने बेटों को सात मंजिला मकान दिए और बेटियों को ससुराल। वो बेटियों को शिक्षा देते, आधी जमीन देते, आधा खेत देते, आधा घर देते तो अपने सिर पर छत और दो वक्‍त की रोटी के लिए वो पति की मोहताज नहीं होती। वो सबल और आत्‍मनिर्भर होती, जैसे आप हैं।

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