इंदौर हादसे की मजिस्ट्रियल जांच सिर्फ खानापूर्ति .! एक पुरानी बावड़ी 36 जिंदगी निगल गई
इंदौर हादसे की मजिस्ट्रियल जांच सिर्फ खानापूर्ति …
सरकार ने जिन 5 सवालों के जवाब 15 दिन में मांगे, हम आज बताते हैं उनके जवाब ..
इंदौर की एक पुरानी बावड़ी 36 जिंदगी निगल गई। सीएम शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और कलेक्टर इलैयाराजा टी कहते रहे कि मजिस्ट्रियल जांच कराएंगे। सीएम के कहने के बाद आनन-फानन में आदेश भी हो गए। वहीं मजिस्ट्रियल जांच, जो कमोबेश हर हादसे के बाद शुरू होती है, लेकिन उसकी रिपोर्ट कब आती है, उसमें क्या होता है, वो शायद ही किसी को याद हो।
36 मौतों की जांच के लिए मजिस्ट्रियल जांच के सवाल भी ऐसे हैं कि इस घटना को पढ़ने वाले हर आम और खास को पता है। खास बात ये है कि इन सवालों के जवाब के लिए 15 दिन का वक्त तय किया गया है, जिसके जवाब आपको…… आज और अभी इसी खबर में दे रहा है। हादसे के बाद के कई सवाल खड़े हुए हैं, जिन्हें सरकार किसी से नहीं पूछ रही है। सिलसिलेवार जानते हैं, क्या पूछ रही है और क्या नहीं पूछ रही है।
15 दिन नहीं, कुछ घंटे में मिल सकते हैं जवाब
जिस जांच के लिए प्रशासन ने 15 दिन का समय दिया है, उसकी कुछ घंटे की पड़ताल में ही इनके जवाब मिल जाते, लेकिन मौत पर जांच का पारंपरिक तरीका यही मजिस्ट्रियल जांच है।
हमने मजिस्ट्रियल जांच के इन सवालों पर हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस केएन मोदी, जस्टिस यूसी माहेश्वरी और रिटायर्ड जिला जज रेणु शर्मा से बात की। जानने की कोशिश की कि आखिर ऐसी मजिस्ट्रियल जांच के क्या मायने हैं? जवाब मिला कि रिकॉर्ड के लिए जांच रिपोर्ट जरूरी है, लेकिन जांच में जवाबदेही जरूर तय होनी चाहिए। ज्यादातर जांचों की तरह ये खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए।
जस्टिस केएन मोदी ने कहा कि ये भी जांचा जाना चाहिए कि आखिर अवैध निर्माण कैसे हो गया? जब तक सरकार या अफसर आंख मूंदे न रहे तो ऐसे अवैध निर्माण हो ही नहीं सकते।
जानिए, उन सवालों के जवाब जिसके लिए 15 दिन तक जांच का नाटक चलेगा…
1. किन परिस्थितियों में मृत्यु हुई?
बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में 30 मार्च की सुबह 10.30 बजे रामनवमी पर हवन चल रहा था। लोग जुटे थे। उन्हें पता ही नहीं था कि जिस जगह पर वे खड़े हैं, बैठे हैं, उसके नीचे सालों पुरानी बावड़ी है।
भीड़ थी, बावड़ी की कच्ची स्लैब भरभराकर गिर गई। 50 लोग उस 60 फीट गहरी बावड़ी में समा गए। चीख पुकार मच गई। कोहराम मच गया। जो लोग बाहर थे, उन्होंने कुछ को बचाने की कोशिशें कीं। जब उन्होंने कुछ लोगों को बचाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, तो वे भी उस मौत की बावड़ी में समा गए। 31 मार्च की दोपहर 12 बजे तक यहां से 36 लाशें निकाली जा चुकी थीं।
मौत की वजह– पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर कहते हैं कि नीचे दबे लोगों की पानी में डूबने से मौत हुई और जो बीच में फंसे थे, उनकी दम घुटने से।
2. पूरा घटनाक्रम क्या था?
लोग उस मौत की बावड़ी में जिंदगी की भीख मांगते रहे, लेकिन हमारा सरकारी सिस्टम न वक्त पर पहुंच पाया, न ही मदद कर पाया। जो लोग मदद के लिए पहुंचे उनके पास ऐसी व्यवस्था नहीं थी कि वे पीड़ितों को बाहर निकाल पाते। घंटे भर बाद बचाव कार्य शुरू हो पाया, लेकिन इसी बीच रस्सी टूट गई। फिर पता चला कि नीचे पानी भरा है, पहले उसे खाली करना पड़ेगा। पानी खाली करने के लिए मोटर बुलाई तो मोटर बंद हो गई।
3. क्या परिस्थितियां थीं, इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
पहला मंदिर ट्रस्ट। दूसरा नगर निगम। मंदिर ट्रस्ट ने बावड़ी पर कच्ची छत डलवा दी। उस पर टाइल्स लगा दिए। लोगों को पता ही नहीं चला कि जहां वे बैठे हैं, वहां नीचे मौत की बावड़ी है।
दूसरा वो नगर निगम जो मंदिर ट्रस्ट को अवैध निर्माण के लिए नोटिस तो जारी करता रहा, लेकिन एक्शन नहीं लिया। अप्रैल 2022 में निगम ने मंदिर ट्रस्ट को अवैध निर्माण का नोटिस जारी किया था, लेकिन कोई फॉलोअप नहीं लिया। जनवरी 2023 में भी रहवासियों की शिकायत पर मंदिर को नोटिस जारी किया। जवाब मिला यहां कोई गड़बड़ नहीं है, इस जवाब पर निगम संतुष्ट हो गया। निगम की बावड़ियों की लिस्ट में ये प्राचीन बावड़ी शामिल नहीं थी।
4. भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए सुझाव
कौन चाहेगा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति हो। यदि निगम के अफसर आंखें मूंदे नहीं रहते तो क्या एक बावड़ी पर मौत की कच्ची छत डाली जा सकती थी? सरकारी सिस्टम ऐसी घटनाएं होने पर ही अपनी लापरवाहियों को क्यों देखता है। यदि नोटिस के जवाब के बाद फिजिकल वेरिफिकेशन किया गया होता तो ऐसे हालात ही नहीं बनते।
5. जांच के दौरान कोई और पॉइंट आता है तो उसे भी देखा जाएगा
ये एक ऐसा बिंदु है, जिससे सरकारी अफसर अपने बचने के लिए इस्तेमाल करते हैं। 36 मौतों की जांच के लिए सही ढंग से सवाल भी नहीं बनाए गए। सिर्फ ये लिखकर काम खत्म कर लिया कि कोई और पाॅइंट आता है ताे उसे भी देखा जाएगा।
जिम्मेदारी तय करने के लिए जांच तो करनी पड़ेगी…
- रिटायर्ड जिला जज रेणु शर्मा कहती हैं कि यदि मैं जांच कर रही होती तो देखती कि इसे कौन मेंटेन कर रहा था? जिस जगह आयोजन था, वहां कितने लोगों की क्षमता थी और कितने लोग आए? ये किसने चेक किया? पुरानी बावड़ियों के मेंटनेंस का जिम्मा किसका था? उन्होंने कैसे मेंटेनेंस किया?
- मंदिर की सुरक्षा किसकी जिम्मेदारी थी? इतनी भीड़ आ गई, सुरक्षा के लिए क्या प्रबंध किए गए थे?
- जांच के नाम पर अक्सर हमारा सिस्टम खानापूर्ति करता है, वो नहीं होना चाहिए।
ऐसे कब्जे तो तभी होते हैं, जब सरकार और अफसर आंख बंद कर लें
रिटायर्ड जस्टिस एनके मोदी कहते हैं कि मजिस्ट्रियल जांच सही है। आखिर रिकॉर्ड पर ये तो रखना होगा कि हादसे के लिए कौन जिम्मेदार है? लेकिन इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए।
किसकी गलती है इसका जवाब ये है कि कहीं कब्जा तो तब होता है, जब सरकार आंखें बंद कर ले। बिना अफसरों की लापरवाही के कब्जा नहीं होता है। अफसरों ने अपना काम ठीक ढंग से किया होता तो ऐसे कब्जे नहीं होते। ये देखने की जरूरत है कि किन परिस्थितियों में किन लोगों की गलती से ये हुआ है?
रिपोर्ट में बताएं कि कौन लोग क्यों जिम्मेदार हैं
रिटायर्ड जस्टिस यूसी माहेश्वरी कहते हैं कि मैं महू में ही रहता हूं। जांच जरूर होनी चाहिए, तभी आप जवाबदेही तय कर पाते हैं। इसमें ये देखा जाना चाहिए कि किन लोगों की क्या जिम्मेदारी थी। उन्होंने कैसे अपनी जिम्मेदारी निभाई? माहेश्वरी ने कहा कि विषय से जुड़े तमाम तथ्यों की पड़ताल के बाद ये बताना चाहिए कि कौन-कौन लोग क्यों इस हादसे के जिम्मेदार हैं।
क्या बंद बावड़ी में बनी गैस से कमजोर हो गए सरिए?
मामले की पड़ताल में एक और सवाल दब गया है, वो ये कि क्या बंद बावड़ी में हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी कोई गैस बनी? क्या इसकी वजह से सरिए जल्दी कमजोर हुए? 40 घंटे बाद भी इस सवाल पर किसी का ध्यान नहीं है।