दर्द बढ़ा रही एंबुलेंस सेवाओं में मनमानी
हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा।
ऐसा खेल करने वालों को न तो मरीजों के दर्द की परवाह होती है और न ही सरकारी कानून-कायदों की। राजस्थान में प्रमुख शहरों में एक साथ किए गए स्टिंग ऑपरेशन में अस्पतालों के बाहर प्राइवेट एंबुलेंस संचालकों की मनमानी व लूटपाट उजागर हुई है। यह स्टिंग भले ही राजस्थान का हो लेकिन देश के तमाम दूसरे बड़े शहरों में भी अस्पतालों के बाहर मरीजों को अस्पताल से घर और घर से अस्पताल लाने-ले जाने में मनमर्जी का किराया वसूला जाता है। सरकारों की ओर से बाकायदा एंबुलेंस सेवाओं के लिए प्रति किलोमीटर के हिसाब से भाड़ा भी तय किया जाता है लेकिन यह दिखावटी ही होता है। अचरज इस बात का है कि मुफ्त इलाज और मुफ्त दवा योजनाओं का जोर-शोर से प्रचार करने वाली सरकारों के पास बेलगाम निजी एंबुलेंस संचालकों के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई तंत्र नहीं है। यदि कोई सिस्टम होगा तो भी इस मनमानी के आगे लाचार नजर आता है। ऐसा भी नहीं है कि एंबुलेंस सेवा के लिए मनमाना किराया वसूलने की खबरें कोई पहली बार सामने आई हों। ऐसी खबरें भी सामने आई हैं जब लोगों को अस्पताल से अपने परिजन के शव ठेला या साइकिल तक पर ले जाने को मजबूर होना पड़ा। यह तो तब है जब कमोबेश सभी स्थानों पर सरकारों ने दूरी के हिसाब से एम्बुलेंस का किराया तय कर रखा है। लेकिन निगरानी कहीं है ही नहीं।
पहले से ही हैरान-परेशान लोग शिकायत करते भी हैं तो कार्रवाई नहीं होती। एंबुलेंस सेवाओं को अत्यावश्यक सेवाओं में गिना जाता है। तमाम सरकारों से यह तो उम्मीद की ही जानी चाहिए कि वे सेवा के नाम पर लूट मचाने वालों पर सख्त कार्रवाई करें। यदि ऐसा नहीं होता तो मुफ्त इलाज जैसी योजनाओं पर भी पानी फिरता ही दिखता है।