घर में ही टूट रहा अंग्रेजी का वर्चस्व !

घर में ही टूट रहा अंग्रेजी का वर्चस्व …. यूरोपीय देशों ने लोकल भाषा को बचाने के लिए अंग्रेजी को शिक्षण संस्थानों से हटाना शुरू किया

नीदरलैंड्स, नॉर्वे या फिर स्वीडन, कई यूरोपीय देशों के नागरिक अंग्रेजी बोलने में पारंगत हैं। इस भाषा पर पकड़ से सैलानियों को आसानी से इंप्रेस कर लेते हैं। हालांकि, इस खासियत ने अब विवाद की स्थिति पैदा कर दी है। इन देशों की यूनिवर्सिटीज भी उत्कृष्ट होती गईं और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कोर्स पढ़ाने लगी हैं, लेकिन ज्यादातर कोर्स अभी अंग्रेजी में ही हैं। एक्सपर्ट इसे यूरोपीय देशों की लग्जरी समस्या कहते हैं।

नीदरलैंड्स और नॉर्डिक देशों के कुछ लोग हैरानी जताते हुए और तर्क देते हैं कि उनकी प्रमुख यूनिवर्सिटी अपनी भाषा में पढ़ाई नहीं कराएंगी तो उनकी राष्ट्रीय भाषाओं के लिए कहां जगह बचेगी? भाषाविद् इसे ‘डोमेन लॉस’ कहते हैं। उनका मानना है भाषा खत्म नहीं होती है, क्योंकि बच्चों की नई पीढ़ियां इसके साथ बढ़ती रहती हैं, पर बोलने वाले इसका उपयोग शैक्षणिक संदर्भों में कम करते हैं।

ग्रेजुएशन कोर्स दो-तिहाई कोर्स डच भाषा में हों
जून में नीदरलैंड्स के शिक्षा मंत्री रॉबर्ट डिज्कग्राफ ने घोषणा की कि अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम में कम से कम दो-तिहाई कोर्स डच भाषा में होना चाहिए। यूनिवर्सिटी के नीति निर्माताओं ने इसे सही नहीं माना। उदाहरण के तौर पर आइंडहोवन टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के प्रमुख ने AI का हवाला देते हुए कहा कि कई कोर्सेस के लिए हमें ऐसे प्रोफेसर भी नहीं मिल रहे हैं जो डच बोल सकें। (कुछ ही दिन बाद डच सरकार गिर गई, जिससे नीति अधर में लटक गई)।

उधर, ओस्लो यूनिवर्सिटी नॉर्वेजियन शिक्षा को अहमियत देती है। स्पष्ट है कि अंग्रेजी का इस्तेमाल जरूरत होने पर ही होगा। सभी छात्रों को नॉर्वेजियन सीखने के लिए स्पेशल क्लासेस दी जानी चाहिए। किताबें दोनों भाषा में होनी चाहिए।

बेलफास्ट की अल्स्टर यूनिवर्सिटी की मिशेल गज़ोला कहती हैं, ‘यूनिवर्सिटी की वैश्विक रैंकिंग में उनके मूल्यांकन के हिस्से के रूप में अंतरराष्ट्रीय छात्रों और शिक्षकों की संख्या को देखा जाता है। यह यूनिवर्सिटी की रैंकिंग में ऊपर उठने के लिए और अंग्रेजी में ज्यादा से ज्यादा पढ़ाई के लिए प्रेरित करता है। इससे उन पर दबाव बढ़ता है कि क्लासेस भी बड़ी संख्या में अंग्रेजी में ही लगाई जाएं।’

डेनमार्क में भी इसी तरह विवाद शुरू हुआ, पर सरकार बैकफुट पर आ गई

नीदरलैंड्स की तरह डेनमार्क में भी 2021 में यह विवाद जन्मा था। डेनिश भाषा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अंग्रेजी में पढ़ाए जाने वाले कोर्सेस में सीट्स सीमित कर दी थीं। अब वो बैकफुट पर आ गई है। अंग्रेजी भाषा के मास्टर्स कोर्स में सीट्स की संख्या बढ़ी हैं। कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के जानूस मोर्टेसन कहते हैं कि नई नीति में शिक्षण संस्थानों को निर्देशित किया गया है कि वे आगामी छह वर्षों में डेनिश पढ़ाने में योगदान देंगे, लेकिन यूनिवर्सिटीज को समय पर क्लासेस लगानी है, कोर्स पूरे करवाने हैं। ऐसे में अपनी भाषा में पढ़ाई का वक्त कैसे मिलेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

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