करोड़ों भारतीयों की प्रार्थना और इसरो के विज्ञानियों की मेधा एवं उनके अथक प्रयासों से चंद्रयान-3 अंततः चांद पर पहुंच ही गया। इस महत्वाकांक्षी अभियान ने भारत के लोगों का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया और पूरे देश में एक सुखद अनुभूति एवं ऊर्जा की लहर दौड़ा दी। इस महा अभियान के सफल होने से भारतवासियों के अंदर यह एक आत्मविश्वास जगा है कि अब हम किसी भी जटिल से जटिल कार्य को पूर्ण कर सकते हैं और विश्व में ऐसा कोई काम नहीं, जो हम नहीं कर सकते।

इसरो एक अर्से से सफलता की गाथा लिख रहा है। उसने अपने को विश्व भर में प्रतिष्ठित कर लिया है। सेटेलाइट भेजने में इसरो ने अपनी जो महारत हासिल की, वह तो अपनी जगह है ही, लेकिन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर विक्रम की साफ्ट लैंडिंग कराकर उसने विश्व के सभी उन्नत देशों को कहीं पीछे छोड़ दिया।

भारत ने वह कर दिखाया, जो दुनिया का कोई देश नहीं कर सका। यही कारण है कि विश्व समुदाय अब भारत को और अधिक तेजी से उभरती हुई महाशक्ति के रूप में देख रहा है। इसरो ने अपने चंद्रयान-3 अभियान को न केवल बहुत कम कीमत में पूरा किया, बल्कि एक तरह से अपने बलबूते ही किया। इसी कारण दुनिया इसरो के साथ भारत का भी गुणगान कर रही है।

प्रधानमंत्री मोदी ने चंद्रयान-3 अभियान के सफल होने पर बधाई देते हुए यह सही कहा कि यह विकसित भारत का शंखनाद है और नए भारत का जयघोष है तथा इसरो की यह सफलता 140 करोड़ देशवासियों को उत्साह एवं उमंग प्रदान करने वाली है। प्रधानमंत्री ने यह भी ठीक ही कहा कि भारत की यह उड़ान चंद्रयान से भी आगे जाएगी और जल्द ही सूर्य के विस्तृत अध्ययन के लिए इसरो आदित्य एल-1 मिशन भी लांच करेगा। इसके बाद सौरमंडल को परखने के लिए दूसरे अभियान भी शुरू किए जाएंगे।

वास्तव में उस क्षण ने भारत में नई ऊर्जा, नए विश्वास और नई चेतना का संचार किया, जिस क्षण चंद्रयान का लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरा। इसे प्रधानमंत्री ने यह कहकर अच्छे से रेखांकित किया कि जब हम अपनी आंखों के सामने इतिहास बनते हुए देखते हैं तो जीवन धन्य हो जाता है और ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं जीवन में चिरंजीव चेतना बन जाती हैं।

चंद्रयान-3 अभियान की सफलता से भारतीय विज्ञानियों में जो नई ऊर्जा का संचार हुआ है, उससे अन्य अनेक लोगों और विशेष रूप से तकनीकी विशेषज्ञों और इंजीनियरों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारत के सामने कई ऐसी चुनौतियां हैं, जो निम्न स्तरीय इंजीनियरिंग के कारण समस्याएं पैदा कर रही हैं। इन समस्याओं से पार पाने की आवश्यकता है।

बाते चाहे आधारभूत ढांचे के निर्माण की हो या शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में किए जाने वाले विकास के कार्यों की, हर जगह सुधार जरूरी है। इसरो ने चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने के लिए जिस दक्षता का परिचय दिया, वह पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है। इस अभियान की बारीकियों में जाकर उसे सफल बनाने का जैसा काम किया गया, वैसा अन्य क्षेत्रों में भी इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि कई बार निर्माण कार्यों की गुणवत्ता या फिर उनकी डिजाइन दोयम दर्जे की रहती है।

चंद्रयान-3 की सफलता के पीछे चंद्रयान-2 की असफलता से लिए गए सबक भी हैं। 2019 में जब चंद्रयान-2 अपना अभियान पूरा नहीं कर पाया था, तब देशवासियों को निराशा हुई थी। कुछ देशों के लोगों ने तो इसरो का मजाक उड़ाते हुए यहां तक कहा था कि भारत एक गरीब देश है और उसे पहले अपनी बुनियादी समस्याओं को दूर करना चाहिए। यह भी कहा गया था कि आखिर भारत चांद पर जाने का सपना ही क्यों देख रहा है?

इसरो ने इन सभी आलोचकों के मुंह बंद कर दिए। इन आलोचकों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि भारत एक ओर जहां गरीबी से पार पाने की हर संभव कोशिश कर रहा है, वहीं विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में भी अपने कदम तेजी से बढ़ा रहा है। वास्तव में यही वह उपाय है, जिससे वह आत्मनिर्भर बन सकता है। मोदी सरकार ने वर्तमान कालखंड को अमृतकाल का नाम दिया है और यह संकल्प लिया है कि 2047 तक भारत को विकसित देश बनाना है।

कुछ लोग यह सवाल कर सकते हैं कि आखिर चांद के दक्षिणी छोर पर पहुंचकर भारत ने क्या पाया? ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि आने वाले समय में चांद को लेकर की जानी वाली खोज मानवता की भलाई में सहायक होगी। चांद में ऐसे अनेक खनिज और रसायन हो सकते हैं, जिनका दोहन करके समृद्धि की ओर बढ़ा जा सकता है। चांद को लेकर किए जाने वाले शोध यह बताने में भी सहायक होंगे कि सौरमंडल कैसे बना और विकसित हुआ? इसके अतिरिक्त इसका भी आकलन हो सकता है कि वहां इंसानों को बसाया जा सकता है या नहीं? यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री ने चंद्रयान की सफलता को समस्त मानवता की कामयाबी करार दिया।

इस समय जहां इसरो की सफलता का डंका बज रहा है, वहीं भारत के रक्षा उद्योग के साथ सूचना एवं संचार तकनीक क्षेत्र भी आगे बढ़ रहे हैं। इसी तरह फार्मा क्षेत्र भी दुनिया में अपना नाम कमा रहा है। अब कोशिश यह होनी चाहिए कि भारत के सभी शोध-अनुसंधान एवं निर्माण संस्थान अपने कार्यों में वैसी ही उत्कृष्टता हासिल करें, जैसी इसरो ने अंतरिक्ष विज्ञान में प्राप्त कर ली है। चूंकि कोई भी देश अपने संस्थानों के माध्यम से ही विकसित बनने के साथ ही समृद्धि हासिल करता है, इसलिए सरकार को विभिन्न संस्थाओं को उत्कृष्ट शोध एवं अनुसंधान के लिए प्रेरित करना चाहिए और उन्हें पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए।

यह ठीक है कि मोदी सरकार इस दिशा में सक्रिय है, लेकिन देश के विभिन्न संस्थानों को विश्व स्तरीय तभी बनाया जा सकता है, जब उन्हें धन के अभाव का सामना न करना पड़े। भारत को एक विकसित देश बनने के लिए अभी एक लंबा सफर तय करना है। इस सफर को तभी आसान बनाकर नए भारत की नई कहानी लिखी जा सकती है, जब हर क्षेत्र सफलता की वैसी ही गाथा लिखेगा, जैसी इसरो ने लिखी और देश के साथ दुनिया को भी चमत्कृत कर दिया।