डाटा प्रोटेक्शन एक्ट की आड़ में सूचनाओं पर ताला !
पॉलिटिक्स का नया आइकॉन बनना चाहते हैं उदयनिधि,
डाटा प्रोटेक्शन एक्ट की आड़ में सूचनाओं पर ताला
जो जानकारी सरकार छिपाना चाहती है, उसे गोपनीय बताकर रोकने की आशंका बढ़ी
राज्यपाल से कानून का दुरुपयोग रोकने का आग्रह
भोपाल. सूचनाएं पाने के लिए आम आदमी के पास सूचना का अधिकार (आरटीआइ) सबसे सशक्त कानून है। इस अधिकार के तहत आमजन फाइलों में दबी सूचनाएं पा सकते हैं, लेकिन अब डाटा प्रोटेक्शन एक्ट की आड़ में सूचनाओं पर ताला लगने की आशंका बढ़ गई है। इस कानून की आड़ में सूचनाएं देने से रोके जाने के प्रयास शुरू हो गए हैं।
राज्य सूचना आयोग ने ऐसा ही एक पत्र राज्य सरकार को लिखा है, जिसमें इस कानून का पालन कराए जाने को कहा है। असल में डाटा प्रोटेक्शन एक्ट के तहत आमजन के डाटा को सुरक्षित रखने का प्रावधान है। डिजिटल युग में डाटा की सबसे बड़ी ताकत है। यही कारण है कि इसके चोरी होने की आशंकाएं भी बढ़ी हैं, इसलिए इसकी सुरक्षा के लिए कानून लाया गया। इसका उल्लंघन होने पर सजा का प्रावधान है, लेकिन अफसर इसकी आड़ में सूचनाएं रोकने लगे हैं। राज्य सूचना आयोग में हाल ही में कुछ ऐसे ही मामले सामने आए, जिसमें जानकारी देने के बजाए डाटा प्रोटेक्शन एक्ट का हवाला देकर निजी जानकारी बताकर इसे देने से इंकार किया गया।
डा टा प्रोटेक्शन एक्ट की आड़ में सूचनाओं को रोकने का मामला राजभवन पहुंचा है। आरटीआइ एक्टिविस्ट अजय दुबे ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त एके शुक्ला ने कानून की गलत व्याख्या करते हुए नियमों के विपरीत सूचनाओं को रोकने का काम किया है। देश में डाटा प्रोक्टेशन एक्ट लागू नहीं हुआ है, लेकिन इन्होंने इसका पालन करवाने के लिए राज्य सरकार को कहा है। दुबे ने मुख्य सूचना आयुक्त शुक्ला को बर्खास्त करने का आग्रह भी राज्यपाल से किया है। साथ ही इस कानून के दुरुपयोग को रोकने का आग्रह भी किया है।
आरटीआइ अधिनियम की धारा 8(1)(जे) के तहत व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा न करने का प्रावधान पहले से है। इसके तहत सूचना देने का निर्णय लिया जा सकता है। यदि उसे लगता है कि इस जानकारी को देने से जनहित है तो वह उसे दे सकता है, लेकिन यदि कोई जनहित नहीं है तो देने से इंकार किया जा सकता है।