राजनीतिक दलों की चुनावी फंडिंग का मामला !
राजनीतिक दलों की चुनावी फंडिंग का मामला !
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी याचिका संविधान पीठ को भेजी, 30 अक्टूबर को सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों की चुनावी फंडिंग से जुड़ी इलेक्टोरेल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाली याचिकाएं संविधान पीठ को भेज दी हैं। इस पर अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सोमवार 16 अक्टूबर को इस पर सुनवाई की।
तीन जजों की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा- इस याचिका की अहमियत को समझते हुए इस मामले को कम से कम पांच जजों की बेंच के सामने रखा जाना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को 5 जजों की संविधान बेंच करेगी।
इससे पहले सुनवाई कर रही बेंच ने कहा था कि वे इस याचिका पर विचार करेंगे कि क्या इसे पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। इसके लिए 10 अक्टूबर को सुनवाई करते हुए बेंच ने 31 अक्टूबर की तारीख तय की थी।
याचिकाकर्ताओं के वकील की मांग
ADR की ओर से पेश हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी कि इस प्रकार की चुनावी फंडिंग भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगी। कुछ कंपनियां उन पार्टियों की अज्ञात तरीकों से फंडिंग करेंगी, जिन पार्टियों की सरकार से उन्हें फायदा होता है।
पहले भी एडवोकेट भूषण ने SC को बताया था कि 2024 के आम चुनावों के लिए चुनावी बॉन्ड योजना शुरू होने से पहले इस मामले पर फैसला किया जाना जरूरी है, जिसके बाद कोर्ट ने इसे अंतिम सुनवाई के लिए तय करने का फैसला किया था।
इस मामले पर चार जनहित याचिकाएं लंबित हैं। इनमें से एक याचिकाकर्ता ने मार्च में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि चुनावी बॉन्ड से पार्टियों को अब तक 12 हजार करोड़ की फंडिंग हुई है और इसका दो-तिहाई हिस्सा एक खास पार्टी को मिला है।
क्या है पूरा मामला
इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।
बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
इस पर सुनवाई के दौरान पूर्व CJI एसए बोबडे ने कहा कि मामले की सुनवाई जनवरी 2020 में होगी। चुनाव आयोग की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए सुनवाई को फिर से स्थगित कर दिया गया। इसके बाद से अभी तक इस मामले को कोई सुनवाई नहीं हुई है।
चुनावी बॉन्ड क्या है?
2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है। जिसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।
अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए।
जिस पार्टी को डोनेट कर रहे हैं वो एलिजिबल है, ये कैसे पता चलेगा?
बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता है। खरीदने वाले को बैंक को अपनी पूरी KYC डीटेल में देनी होती है। खरीदने वाला जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट करना चाहता है, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिला होना चाहिए। डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर इसे उस पार्टी को चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है।
इस पर विवाद क्यों…
2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। दूसरी ओर इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।
कुछ लोगों का आरोप है कि इस स्कीम को बड़े कॉर्पोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लाया गया है। इससे ये घराने बिना पहचान उजागर हुए जितना मर्जी उतना चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकते हैं।
चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी…
- कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता है।
- बैंक को KYC डीटेल देकर 1 हजार से 1 करोड़ रुपए तक के बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं।
- बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है।
- इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलती है।
- ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए होने वाले कमाई का सच पर्दे में
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक हर पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए मिलने वाले दान का ब्योरा चुनाव आयोग को सौंपता है। मगर ये ब्योरा सीलबंद लिफाफे में होता है। राष्ट्रीय दलों और स्टेट पार्टियों को अपनी वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट भी चुनाव आयोग को देनी होती है।
इस रिपोर्ट में भी इलेक्टोरल बॉन्ड्स से मिलने वाले दान का जिक्र होता है। लेकिन रजिस्टर्ड अनरिकग्नाइज्ड दलों को ऑडिट रिपोर्ट नहीं देनी होती और इलेक्टोरल बॉन्ड का ब्योरा सीलबंद लिफाफे में होता है। 2019 में चुनाव आयोग को जिन 69 रजिस्टर्ड अनरिकग्नाइज्ड दलों ने अपना ब्योरा सौंपा। ADR ने उनके नाम के आधार पर एक एनालिसिस किया।
ADR के मुताबिक इन 69 दलों में 43 दल तो ऐसे हैं, जिनके वोट शेयर का कोई आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है। जिनके वोट शेयर का आंकड़ा उपलब्ध है, उनमें से सिर्फ 1 दल ही इलेक्टोरल बॉन्ड से दान लेने के लिए एलिजिबलिटी क्राइटेरिया पूरा करता है। यानी बाकी 68 रजिस्टर्ड अनरिकग्नाइज्ड दल अवैध रूप से इलेक्टोरल बॉन्ड भुना रहे हैं।