कांटे की टक्कर के बीच असंतोष के स्वर, कमान केंद्रीय नेतृत्व के हाथ में

कांटे की टक्कर के बीच असंतोष के स्वर, कमान केंद्रीय नेतृत्व के हाथ में
राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए किस कदर प्रतिष्ठा का सवाल बन गए हैं, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इन राज्यों के चुनावों की कमान दोनों ही दलों के केंद्रीय नेतृत्व ने एक तरह से अपने ही हाथ में ले ली है। प्रत्याशी चयन से लेकर सूची जारी होने के बाद उठने वाले विरोध के सुरों पर छींटे देने का काम तक केंद्रीय नेतृत्व कर रहा है।

प्रत्याशी घोषित करने के मामले में भाजपा कांग्रेस से दो कदम आगे रही है और उसने राजस्थान में 41, मध्यप्रदेश की चार सूचियों में 136 व छत्तीसगढ़ में 86 प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। इसी तरह कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में 144 व छत्तीसगढ़ में 83 प्रत्याशी घोषित किए हैं। सूचियां जारी होने के बाद तीनों ही प्रदेशों में अन्य दावेदारों का असंतोष सामने आया है। भाजपा असंतोष खत्म करने के मामले में बहुत गंभीर नजर आ रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद असंतोष को शांत करने में लगे हैं। नड्डा राजस्थान का लगातार दौरा कर असंतोष को खत्म करने में जुट हुए हैं। अमित शाह की नजर मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ पर है। कांग्रेस में हालत यह है कि राजस्थान जैसे प्रदेश की सूची आने से पहले टिकट चाहने वालों की बजाय संभावित प्रत्याशियों का विरोध करने वालों की भीड़ दिल्ली में ज्यादा दिख रही है। राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए अब तक एक स्थापित परिपाटी यह रही है कि प्रदेश इकाइयों व पर्यवेक्षकों की ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर प्रत्याशियों की सूचियां तैयार होती हैं। इस पर केंद्रीय चुनाव समिति मुहर लगाती है। इसमें इस बार बदलाव दिख रहा है। प्रदेश इकाइयों ने पैनल बनाए हैं, लेकिन अंतिम तौर पर नाम केंद्रीय नेतृत्व की ओर से करवाए गए गुप्त सर्वे और ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर फाइनल हो रहे हैं। नेताओं की सिफारिश चलने की बात कम ही सामने आई है। राजस्थान में भाजपा की पहली सूची में 41 प्रत्याशी घोषित होने से पहले केंद्रीय चुनाव समिति ने प्रदेश से लाई गई सूची को कथित रूप से खारिज कर दिया था और यही कारण रहा कि सूची तत्काल घोषित नहीं हो सकी। इसके अलावा सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारे जाने में भी केंद्रीय नेतृत्व का दखल परिलक्षित हुआ। कांग्रेस में भी कमोबेश यही हालात है।

दरअसल, ये चुनाव अगले साल होने वाले आम चुनाव पर निश्चित रूप से मनोवैज्ञानिक असर डालेंगे। इधर विधानसभा चुनावों में सभी प्रत्याशी तय होने से पहले ही मुकाबला ‘नेक टू नेक ’ नजर आ रहा है। ऐसी हालत में केंद्रीय नेतृत्व का दखल ज्यादा बढ़ा है। राजस्थान में हर पांच साल बाद सत्ता बदलने की परम्परा के चलते भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती तो कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में बैकडोर से सरकार गिराए जाने का बदला लेने के लिए कमर कसी हुई है। छत्तीसगढ़ में सत्ता बरकरार रखना कांग्रेस की चुनौती है तो भाजपा पंद्रह साल से जमी सत्ता छिन जाने के सदमे से उबरना चाहती है।

मध्यप्रदेश में…..
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की पहली सूची जारी होने पर विरोध के सुर बढ़े हैं। इनमें एक ऐसे विधायक का टिकट कटने की खासी चर्चा है, जो भाजपा छोड़कर कांग्रेस में टिकट मिलने की आस लेकर आए थे। जब सूची आई तो उनकी जगह किसी और को टिकट दे दिया गया। इसके बाद कुछ कांग्रेसी कमलनाथ से भी मिले। टिकट न मिलने पर इन्होंने विरोध दर्ज कराया। अब राजस्थान में भी यह चर्चा है कि पार्टी बदलने पर भी टिकट की गारंटी नहीं है।

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