चंबल…यहां जाति ही जीत का मंत्र !
चंबल…यहां जाति ही जीत का मंत्र
खामोशी के साथ अपना रुख तय कर रहा है चंबल का बेलाग पानी
चंबल बिना लाग-लपेट के बोलता है। जो सही लगा, पूरी ताकत से उसके साथ खड़े हो गए। और जो नहीं जमा, उसकी मुखालफत भी उतने ही दम से करते हैं। कहते हैं कि स्वभाव की ये तासीर चंबल के पानी का असर है। लेकिन, जब बात चुनाव की होती है तो यहां का सबसे बड़ा सत्य एक ही है- जाति। यही जीत का मंत्र है। राजनीतिक चर्चा कहीं भी छेड़ें, सबसे पहले जाति, फिर व्यक्ति, उसके बाद पार्टी और आखिरी में विकास की बात आती है। शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर बात करने के लिए कुरेदना पड़ता है। नेता यह नब्ज दशकों पहले ही पकड़ चुके हैं। तभी तो अंदरूनी इलाकों में सड़क, पानी, बिजली, अस्पताल और स्कूल-कॉलेज जैसी मूल सुविधाएं बदहाल हैं। चंबल क्षेत्र में अभी लहर जैसी कोई चीज महसूस नहीं हो रही। न सत्ता विरोध की और न कांग्रेस के समर्थन की। सबकी अपनी-अपनी समस्याएं और अपने-अपने विरोध हैं।
एक ही जिक्र… हमारा वोट तो 35 करोड़ में बिका
2018 के नतीजों जैसा एकतरफा रुख फिलहाल नहीं दिख रहा। इसकी बड़ी वजह शायद 2020 में हुआ दलबदल का ‘धोखा’ है। 400 किमी से ज्यादा सफर के दौरान मुरैना, सुमावली, बागचीनी, अंबाह, मेहगांव और भिंड में लोगों की बातचीत में यह जिक्र जरूर आया- ‘हमारा वोट तो 35 करोड़ में बिक गया था।’ चौखट्टा में बागचीनी चौराहे पर बस के इंतजार में खड़ी बीरमी देवी की बात एक तरह से पूरे अंचल का रुख साफ कर देती है। कहती हैं- ‘मुंह का वोट कभी नहीं होता है, पेट का वोट होता है। मुंह से तो अपन कुछ भी कह देंगे। वोट तो पेट की बात है और पेट ही के अंदर है।’ यानी वोट गोपनीय है। सबसे मुखर रहने वाला चंबल इस बार चुपचाप उम्मीदवारों को तौल रहा है। चंबल का बेलाग पानी खामोशी से अपना रुख तय कर रहा है।
जाति के दम पर ही 5 सीटों पर बागी मैदान में डटे
ये जाति और व्यक्ति को मिल रहे महत्व का ही दम है कि भिंड, अटेर, लहार, मुरैना और सुमावली में बागी दमखम से मैदान में डटे हैं। भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों का सिरदर्द बने हुए हैं। चंबल में आने वाले भिंड, मुरैना और श्योपुर में 13 विधानसभा सीटें हैं। 2018 के चुनाव में इनमें से 10 कांग्रेस के खाते में गई थीं, जबकि 2 सीटें भाजपा और 1 बसपा को मिली थी। 2020 में इन 13 सीटों में से 6 पर दलबदल हो गई। परिणामस्वरूप कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरी और भाजपा फिर सत्तारूढ़ हो गई। हालांकि, 2020 के उपचुनाव में 2 दलबदलू ही जीत पाए थे। इस बार चार दलबदलू टिकट गंवा बैठे हैं।
अंबाह-पोरसा रोड पर खेड़ा मेवदा में मिले मुरारीलाल से जब जातीय समीकरण और विकास पर चर्चा छेड़ी तो उन्होंने कहा, सब जाति देखकर ही वोट देंगे। हालांकि, साथ बैठे विनोद ने खाद का मुद्दा उठाया। कहा, नरेंद्र सिंह केंद्रीय मंत्री रहे। उनके कार्यकाल में किसानों को खाद नहीं मिली। अब मुख्यमंत्री बन जाएंगे तो क्या उम्मीद करें? चार किलोमीटर दूर बड़ा गांव से गेहूं पिसवाने पहुंचे विनोद दो घंटे से बिजली के इंतजार में चक्की पर बैठे थे। उन्होंने बताया गांव में नल लगे हैं, लेकिन आज तक पानी नहीं आया। वहीं, खुर्द में मिले राजू बघेल ने कहा, इस क्षेत्र में जनसंपर्क बड़ा कठिन है। वोटर की इच्छा रहती है कि नेता पैर छुए। नेता के सामने आते ही वह पैर आगे कर देता है। जो जितना बड़ा नेता होगा, उतनी ज्यादा दिक्कत आएगी। नरेंद्र सिंह को मुख्य चुनौती बसपा के बलबीर सिंह दंडौतिया से ही मिल रही है।
‘लाड़ली बहना’ का अंडरकरंट, बन सकती है गेमचेंजर
महिलाओं को हर महीने 1,250 रुपए देने वाली लाड़ली बहना योजना गेमचेंजर बन सकती है। इसका अंडर करंट काफी है। सुमावली में सुबह के वक्त ढोर-डंगर का काम कर रही महिलाओं से जब चुनाव पर बात करने रुके तो चर्चा सीधे लाड़ली बहना पर आ गई। कमलेश कहती हैं- ‘भैया से मिले इस पैसे से निजी जरूरत का सामान खरीदती हूं।’ साथ मौजूद मनीषा बताती हैं कि इससे हर महीने घरेलू सामान और बच्चों की कॉपी-किताब लाने में मदद मिलती है। अब जिसने हमारे बारे में सोचा, उसके बारे में तो हम भी सोचेंगे। भिंड में गोरमी के बाजार में त्योहार की खरीदारी कर रही महिलाओं ने भी ऐसी ही बातें कहीं।
हॉट सीट : दिमनी में कृषि मंत्री के सामने बड़ी चुनौती, खुद पीएम रैली के लिए आएंगे
दिमनी चंबल की सबसे हॉट सीट है। वजह है केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का मैदान में होना। यह सीट भाजपा के लिए कितनी अहम है, अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 8 नवंबर को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुरैना में रैली करने आ रहे हैं। तोमर अभी सांसद के तौर पर इस क्षेत्र के प्रतिनिधि हैं। उनके सामने हैं कांग्रेस के मौजूदा विधायक रवींद्र सिंह तोमर भिड़ोसा और बसपा के पूर्व विधायक बलवीर सिंह दंडोतिया। तोमर बनाम ब्राह्मण के जातीय समीकरण नरेंद्र सिंह के लिए बड़ी चुनौती हैं। तोमर वोट बंटे और ब्राह्मण एकजुट रहे तो दंडोतिया की राह आसान हो सकती है। वोट बिखराव से बचने के लिए नेता ये नैरेटिव लगातार चला रहे हैं। ये संभावनाएं भी गिनाई जा रही हैं कि नरेंद्र सिंह जीते तो सीएम पद की रेस में होंगे। जाति के अलावा मुद्दे देखें तो कृषि मंत्री के क्षेत्र में खाद की किल्लत बड़ा मुद्दा है। लावारिस गायों द्वारा लगातार फसलें बर्बाद किया जाना भी किसानों का बड़ा दर्द है। लेकिन, क्षेत्र में गोशालाओं की उपयुक्त व्यवस्था नहीं है।