12 सीटों पर भाजपा और 8 पर कांग्रेस के प्रत्याशी फंसे ?

त्रिकोणीय मुकाबले वाली सीटों का हाल …
12 सीटों पर भाजपा और 8 पर कांग्रेस के प्रत्याशी फंसे; बागियों के अलावा सपा-बसपा ने बिगाड़ा खेल

मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 सीटों पर चुनाव के लिए वोटिंग हो गई। अब 3 दिसंबर को नतीजों का इंतजार है। इस बार 21 सीटें ऐसी रहीं, जहां त्रिकोणीय मुकाबला हुआ। इनमें से 12 सीटों पर भाजपा और 8 पर कांग्रेस उम्मीदवार फंस गए। भाजपा-कांग्रेस के बागी मैदान में डटे रहे। सपा, बसपा और आप ने भी टक्कर दी। एक सीट इन्हीं को जाती दिख रही है।

त्रिकोणीय मुकाबले की वजह से कहीं भाजपा को तो कहीं कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। वो कौन से समीकरण हैं, जिसकी वजह से इन सीटों पर भाजपा-कांग्रेस को चुनौती मिली,

परसवाड़ा : गोंगपा के कंकर ने रोका भाजपा-कांग्रेस का रास्ता

यहां गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की मजबूत मौजूदगी की वजह से कांग्रेस और भाजपा दोनों के समीकरण बिगड़ गए।

सीधी : पेशाब कांड के कारण चर्चित, ब्राह्मण वोटों का ध्रुवीकरण

इस सीट पर भाजपा की रीति पाठक, कांग्रेस के ज्ञान सिंह और बीजेपी से बागी होकर निर्दलीय मैदान में उतरे विधायक केदारनाथ शुक्ला के बीच मुकाबला हुआ। सीधी में ब्राह्मण, आदिवासी, ओबीसी और ठाकुर वोटर निर्णायक है। केदारनाथ शुक्ला ने ब्राह्मण वोटरों में सेंध लगाने की कोशिश की। कांग्रेस प्रत्याशी ने ओबीसी और ठाकुर वोटरों को साधा। समाजों के वोट बंटने से बीजेपी को नुकसान होता दिख रहा है। पेशाब कांड की वजह से शुक्ला का टिकट कटा था।

सिरमौर : हल-महल के बीच हाथी

रीवा जिले की इस सीट पर महाराजा और आदिवासी के बीच मुकाबला हुआ। रीवा राजघराने के वारिस और भाजपा विधायक दिव्यराज सिंह के सामने कांग्रेस प्रत्याशी रामगरीब कोल ने चुनाव लड़ा। सिरमौर में 35% ब्राह्मण, 10% ठाकुर, 20% ओबीसी, 17% एससी और 18 फीसदी एसटी वोटर विधायक चुनते हैं। बसपा ने ब्राह्मण वर्ग से आने वाले वीडी पांडे को टिकट देकर दोनों पार्टियों की मुश्किलें बढ़ा दीं।

महू : बागी दरबार ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किल

महू में कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़े पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार को मनाने की खूब कोशिश हुई लेकिन नहीं माने। उनकी वजह से इस सीट के समीकरण ही बदल गए। अब यहां रिजल्ट को लेकर यह उत्सुकता है कि नंबर दो और तीन पर कौन रहेगा?

सतना : बसपा की मौजूदगी, जातियों के जाल में फंसी सीट

यहां से कांग्रेस के विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा, बीजेपी के सांसद गणेश सिंह और बसपा के शिवा रत्नाकर चतुर्वेदी के बीच मुकाबले की टक्कर है। सतना में ब्राह्मण वोटर्स की संख्या 30% से अधिक है। 12% राजपूत-वैश्य वोटर भी हैं। कांग्रेस-भाजपा के दोनों उम्मीदवार ओबीसी से हैं तो बसपा उम्मीदवार ब्राह्मण वर्ग से। इसकी वजह से कांग्रेस और बीजेपी दोनों को ही नुकसान होता दिख रहा है।

रैगांव : ब्राह्मण-ठाकुर ध्रुवीकरण से भाजपा को फायदा

इस सीट पर भाजपा से प्रतिमा बागरी और कांग्रेस से सीटिंग विधायक कल्पना वर्मा के बीच मुकाबला है। बसपा के देवराज अहिरवार ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया। यहां 60 फीसदी से ज्यादा वोट ब्राह्मण और ठाकुरों के हैं। उसके बाद चौधरी, कुशवाहा, कोल, बागरी और दूसरी जातियां हैं। सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है इसलिए बसपा का प्रभाव है। ब्राह्मण-ठाकुर वोटों के ध्रुवीकरण से भाजपा को फायदा होता दिख रहा है।

नर्मदापुरम : दोनों भाइयों को निर्दलीय की चुनौती

नागौद : कांग्रेस के बागी की बसपा से चुनौती, दो ठाकुरों में बंटे वोट

यहां बीजेपी के सीटिंग विधायक नागेंद्र सिंह, कांग्रेस की डॉ. रश्मि पटेल और बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे कांग्रेस के बागी यादवेंद्र सिंह के बीच टक्कर हुई। नागौद में ठाकुर और ब्राह्मण वोट बंटे हुए हैं। एससी वोटर्स बीएसपी का साथ देता है। ऐसे में कुर्मी समाज के साथ दूसरी जातियों की एकजुटता कांग्रेस को फायदा पहुंचा सकती है।

देवतालाब : चाचा-भतीजे की लड़ाई में सपा बिगाड़ेगी खेल

यहां से विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम और उनके भतीजे पद्मेश गौतम आमने-सामने थे। बसपा से सपा में आईं सीमा जयवीर सिंह सेंगर ने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया। यहां 22% ब्राह्मण और 11% राजपूत मतदाता हैं। ओबीसी मतदाताओं की संख्या 34% के करीब है। अनुसूचित जाति के 18% और जनजाति के 10% मतदाता इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यहां बसपा का अच्छा होल्ड है। हालांकि, पिछले 5 चुनावों से बीजेपी का कब्जा है। सपा की सीमा 2018 में 1080 वोटों के अंतर से हारी थीं। इस बार उन्हीं की वजह से यहां खेल बनेगा-बिगड़ेगा।

सुमावली : कुलदीप ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किल

यहां लड़ाई जातियों में बंट गई। भाजपा-कांग्रेस के बीच बसपा के कुलदीप सिकरवार ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया।

सिंगरौली : आप की उम्मीदों की सीट

इस सीट पर चतुष्कोणीय मुकाबला हुआ। बीजेपी के रामनिवास शाह, कांग्रेस की रेणु शाह, आम आदमी पार्टी की रानी अग्रवाल और बसपा से चंद्रप्रकाश विश्वकर्मा मैदान में हैं। ब्राह्मण वोटर्स इस सीट के समीकरण तय करते हैं। तीन ओबीसी ( बीजेपी, कांग्रेस, बसपा) और एक सामान्य वर्ग ( आप) की उम्मीदवार के बीच मुकाबला होने से ब्राह्मण वोटर निर्णायक है। ब्राह्मण वोटर सामान्य वर्ग को चुनेगा तो आप को फायदा हो सकता है।

मैहर : नए जिले के नाम पर बंटे मतदाता

मैहर को चुनाव से ठीक पहले सतना से अलग कर नया जिला बनाया गया। बीजेपी ने इसी मुद्दे पर चुनाव लड़ा। नारायण त्रिपाठी ने अलग विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर अपनी पार्टी विंध्य जनता पार्टी से चुनाव लड़ा। कांग्रेस प्रत्याशी धर्मेश घई की कोई जातीय पृष्ठभूमि नहीं है। ऐसे में यहां बीजेपी को फायदा होता दिख रहा है।

लहार : रसाल सिंह ने गोविंद सिंह के लिए मुश्किल खड़ी की

नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह अपनी परंपरागत सीट पर हमेशा सेफ रहे। इस बार बसपा की वजह से उन्हें चुनौती मिली है।

बुरहानपुर : नाम-निशान और पहचान में फंसी सीट

भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद नंद कुमार चौहान (नंदू भैया) के बेटे हर्षवर्धन की वजह से इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला हुआ। बीजेपी की अर्चना चिटनीस और कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह शेरा ने अपने-अपने काम गिनाए। हर्ष गेहलोत की वजह से यहां बीजेपी को नुकसान होता दिख रहा है।

दिमनी : जातीय टकराव का नया अखाड़ा

वोटिंग के दौरान दिमनी में भाजपा-कांग्रेस समर्थकों के बीच जमकर झड़प हुई। यहां 65 हजार से ज्यादा तोमर और करीब 22 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं। 25 हजार से अधिक अनुसूचित जाति के लोग और 12 हजार से अधिक गुर्जर हैं। बीजेपी के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, कांग्रेस के रविंद्र सिंह राजपूत, बसपा से बलवीर दंडोदिया के बीच मुकाबला हुआ। आम आदमी पार्टी ने भी तोमर कैंडिडेट को टिकट दिया। जिससे तोमर वोट बंट सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *