जानिए सरकार ने संसद में क्या दी है जानकारी?

जलवायु परिवर्तन: भारत में चावल गेहूं और दूसरी कौन सी फसलों पर असर, जानिए सरकार ने संसद में क्या दी है जानकारी?

जलवायु परिवर्तन से गेहूं की पैदावार 2050 में 8.4 से 19.3 प्रतिशत कम हो जाएगी …

जलवायु परिवर्तन का असर अब फसलों पर भी देखा जाने लगा है. जो आने वाले समय में और खतरनाक स्थिति की ओर बढ़ रहा है. इसी परिवर्तन के चलते 2080 तक गेहूं, चावल और खरीफ फसलों में भारी गिरावट हो सकती है.
दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या बनकर उभरता जा रहा है, जिसका असर अब फसलों पर भी देखने को मिलने लगा है. हाल ही में जलवायु परिवर्तन से फसलों पर होने वाले प्रभाव का मुद्दा संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान उठा. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने लोकसभा में बताया कि चावल, गेहूं और मक्का कुछ ऐसी फसलें हैं जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं. 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन प्रभाव को लेकर रिसर्च की है. अश्विनी चौबे ने कहा कि रिसर्च में मानसून पैटर्न में बदलाव और कृषि क्षेत्र पर उनके प्रभाव को देखा गया. ये विश्लेषण नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (एनआईसीआरए) परियोजना के तहत किया गया था.

इस रिसर्च में ये सामने आया है कि यदि जलवायु परिवर्तन को लेकर सही उपाय नहीं किए गए तो 2050 तक वर्षा पर आधारित चावल की पैदावार में 2 से 20 प्रतिशत की कमी आ जाएगी. वहीं 2080 तक स्थिति और गंभीर हो जाएगी और वर्षा आधारित चावल की पैदावार में 10 से 47 प्रतिशत तक की कमी आ जाएगी.

वहीं जलवायु परिवर्तन से गेहूं की पैदावार 2050 में 8.4 से 19.3 प्रतिशत और 2080 तक 18.9-41 प्रतिशत कम हो जाएगी. इसके अलावा खरीफ मक्का की पैदावार में 2050 में 10-19 प्रतिशत और 2080 तक 20 प्रतिशत से अधिक कम दर्ज की जा सकती है.

जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभाव
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के चलते देश के विभिन्न हिस्सों में मौसम तेजी से बदल रहा है. इसके अलावा गर्म होते पर्यावरण और मानव द्वारा पर्यावरण के खिलाफ किए जा रहे कार्यों के चलते कुछ जगहों पर भारी बारिश तो वहीं कुछ जगहों पर सूखा तो कहीं उष्णकटिबंधीय चक्रवातों जैसी प्राकृतिक चीजों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है.

इस रिसर्च में ये भी पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते तमिलनाडु सहित पूरे देश में अत्यधिक बारिश देखी गई है. बदलते मानसून पैटर्न ने पूरे देश को प्रभावित किया है. वहीं जिन जगहों पर जलवायु परिवर्तन से मौसम संबंधित समस्याओं का खतरा सबसे ज्यादा है उनमें मध्य भारत, उत्तर भारतीय क्षेत्र और पश्चिमी हिमालयी इलाके शामिल हैं. जहां अत्यधिक बारिश की घटनाएं, उत्तर, उत्तर-पश्चिम भारत और निकटवर्ती मध्य भारत में मध्यम सूखा और अर्धशुष्क क्षेत्रों में विस्तार तथा तटीय राज्यों में चक्रवात और लू की घटनाएं देखने को मिल रही हैं.

ग्लोबल वॉर्मिंग से प्रभावित देशों में भारत कहां है?
ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2021 के अनुसार, भारत जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित दस देशों में शामिल है. जलवायु की बदलती परिस्थितियों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में कृषि पहले नंबर पर है, क्योंकि कृषि गर्मी, बारिश और सर्दियों के आधार पर की जाती है. ऐसे में यदि जलवायु परिवर्तन से बारिश, गर्मी और ठंड ही ठीक से नहीं रहेंगी तो किसानों के लिए बहुत मुश्किल खड़ी हो जाएगी.

जैसा कि कुछ समय से हम देख रहे हैं सर्दियों में बारिश हो जाना या बारिश के मौसम में कम वर्षा होने से फसलें खराब हो जाती हैं. वहीं गर्मी के मौसम में कुछ जगहों पर भीषण बारिश हो जाती है तो वहीं कुछ जगहों पर सूखे के चलते फसलें प्रभावित होती हैं. जिससे काफी फसलें खराब हो जाती हैं और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. अंतर सरकारी पैनल (IPCC) के अनुसार जलवायु परिवर्तन का कुछ फसलों पर अच्छा प्रभाव भी देखने को मिलेगा लेकिन ज्यादातर फसलों को इससे नुकसान ही होने वाला है. एक रिसर्च के अनुसार औसत तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो इससे गेहूं का उत्पादन 17 प्रतिशत तक कम हो सकता है. इसी तरह 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से धान का उत्पादन भी 0.75 टन प्रति हेक्टेयर कम होने की संभावना है.

नदियों में रासायनिक अपशिष्ट
सदन में सवालों का जवाब देते हुए राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने बताया कि सरकार ने नदियों के पास स्थित उद्योगों और रंगाई करने वाली इकाइयों के द्वारा देश की प्रमुख नदियों में डाला जाने वाला रासायनिक कचरा कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी) तथा प्रदूषण नियंत्रण समितियों की सहायता से राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एनडब्ल्यूएमपी) चलाया गया, जिसके जरिए नदियों पर 2,155 निगरानी स्थानों और 4,703 स्थानों पर जलीय संसाधनों से जल की गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है.

जैव ईंधन को लेकर क्या किया जा रहा
सदन में पूछे गए एक सवाल के जवाब में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय में राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने राज्यसभा में जबाव दिया कि भारत में एथेनॉल की मिलावट के लिए तैयार किए गए रोडमैप 2020-25 के मुताबिक, एथेनॉल आपूर्ति साल 2025-26 में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण की अनुमानित जरूरत के लिए लगभग 1,016 करोड़ लीटर है और पेट्रोल की इस मात्रा को एथेनॉल के द्वारा बदल दिया जाएगा. रोडमैप के मुताबिक, एक सफल ई-20 कार्यक्रम से देश में हर साल लगभग 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर बचाए जा सकते हैं.

इसके अलावा केंद्रीय इस्पात मंत्रालय में राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने राज्यसभा में बताया कि स्टील उत्पादन के दौरान स्टील स्लैग ठोस अपशिष्ट के रूप में उत्पन्न होता है. ऐसे में प्रत्येक स्टील उत्पादन के लिए जो संयंत्र इकट्ठे किए जाते हैं उनमें लगभग 180 से 200 किलोग्राम स्टील स्लैग पैदा होता है जो लगभग 15 मिलियन स्टील स्लैग के बराबर होता है.

शहरों के लिए प्लान
इसके अलावा सदन में पूछे गए एक सवाल के जवाब में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री कौशल किशोर ने शहरी नियोजन को लेकर राज्यसभा में कहा, 500 शहरों के लिए जीआईएस पर आधारित एक मास्टर प्लान तैयार किया गया है. जिसकी एक छोटी योजना ये है कि 443 शहरों के लिए अंतिम जीआईएस डेटाबेस तैयार किया गया है, इसके अलावा 330 शहरों के लिए जीआईएस आधारित मास्टर प्लान का मसौदा बनाया गया है और 180 शहरों के लिए अंतिम जीआईएस आधारित मास्टर प्लान नोटिफाई किया गया है.

इसके अलावा अमृत 2.0 के तहत 50,000 से 99,999 की आबादी वाले क्लास-2 शहरों के लिए जीआईएस पर आधारित मास्टर प्लान तैयार करने की योजना बनाई गई है. जिसपर लगभग 631.13 करोड़ रुपए तक का खर्च आएगा. इस योजना पर कार्य भी शुरू कर दिया गया है.

हालांकि इन सब के इतर सवाल ये उठता है कि जल्द से जल्द जलवायु परिवर्तन को लेकर कुछ ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में फसलों पर इसका भारी प्रभाव देखने को मिलेगा, जिससे लोगों को खाने-पीने की बड़ी समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *