चुनाव लड़ने के लिए चंदा क्यों जरूरी ?
चुनाव लड़ने के लिए चंदा क्यों जरूरी, बीजेपी-कांग्रेस को कौन देता है पैसा; यहां जानिए ऐसे ही 5 सवालों के जवाब
कांग्रेस के रिजर्व फंड और हाल के सालों में मिले चुनावी दान की बात करें तो यह पार्टी भारतीय जनता पार्टी से काफी पीछे खड़ी नजर आती है.
इस अभियान की शुरुआत करते हुए पार्टी ने देश की जनता से निवेदन करते हुए कहा कि अगर आप एक बेहतर भारत बनाने की कल्पना करते हैं तो आगे आएं और देश की सबसे पुरानी पार्टी को आर्थिक मदद दें.
दरअसल लोकसभा चुनाव में अब बहुत कम समय बचा है और कांग्रेस पार्टी ये बखूबी जानती है कि चुनाव लड़ने के लिए अभी भी उन्हें बड़े पैमाने पर संसाधन और पैसे की जरूरत पड़ेगी. कांग्रेस के रिजर्व फंड और हाल के सालों में मिले चुनावी दान की बात करें तो कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी से काफी पीछे खड़ी नजर आती है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते है कि किसी भी पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए चंदा क्यों जरूरी है, या बीजेपी-कांग्रेस को पैसे कहां से मिलते हैं.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और केसी वेणुगोपाल
कब और कैसे हुई अभियान की शुरुआत
कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय में कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल और कोषाध्यक्ष अजय माकन ने 18 दिसंबर को ‘डोनेट फॉर देश’ नाम से अभियान की शुरुआत की. इस अभियान के तहत 18 साल की उम्र से ऊपर का कोई भी भारतीय नागरिक कांग्रेस पार्टी को कम से कम 138 रुपये और अधिकतम 138 रुपये के गुणा में जितने पैसे होते हैं उतना डोनेट कर सकते हैं.
चंदा लेने के क्या हैं नियम
साल 2017 में पीएम मोदी ने चंदा लेने के नगद प्रारूप को खत्म करते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड पॉलिसी की शुरुआत की थी. यानी वर्तमान में चुनाव से फंड जुटाने के लिए किसी भी पार्टी के पास दो ही विकल्प है.
1. क्राउडफंडिंग
2. इलेक्टोरल बॉन्ड पॉलिसी
राजनीतिक दलों को एक वित्त वर्ष में 20 हजार रुपये से ज्यादा का दान करने वाले दानकर्ता का डिटेल हर साल निर्वाचन आयोग के समक्ष दाखिल करना होता है.
क्राउडफंडिंग- किसी भी खास प्रोजेक्ट, बिजनेस वेंचर या सामाजिक कल्याण के लिए आम जनता से छोटी-छोटी रकम जुटाने की प्रक्रिया को क्राउडफंडिंग कहा जाता है. क्राउड फंडिंग के लिए किसी भी वेबसाइट, एप या वेब आधारित प्लेटफॉर्म की मदद ली जाती है. आम जनता से छोटे-छोटे रकम के जरिए फंड जुटाने वाला व्यक्ति या संस्था संभावित दानदाताओं या निवेशकों को फंड जुटाने की वजह बताता है और उस मुहिम में आम जनता कैसे योगदान कर सकती हैं. उसका भी पूरा ब्योरा दिया जाता है.
इलेक्टोरल बॉन्ड पॉलिसी- ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है, जिसे बैंक नोट भी कह सकते हैं. इस बैंक नोट को कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है. बैंक नोट या इलेक्टोरल बॉन्ड केवल अधिकृत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के ब्रांच में मिलता है, जो सिर्फ 15 दिनों तक वैलिड रहता है.
खास बात ये है कि किसी पार्टी को चंदा देने के लिए जब कोई व्यक्ति या कंपनी यह बॉन्ड खरीदते हैं तो उस नागरिक या कंपनी को अपनी पूरी डिटेल बैंक को देनी होगी. यानी बॉन्ड के लिए बैंक में केवाईसी डिटेल देना अनिवार्य है. अब इस बॉन्ड या बैंक नोट को खरीदने वाला व्यक्ति अपनी पसंदीदा पार्टी को पैसे डोनेट कर सकता है.
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि जब से इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत हुई तब से सत्ताधारी दल को अन्य पार्टियों के मुकाबले ज्यादा फंडिंग मिल रही है. इसका एक कारण ये भी माना जाता है कि इलेक्टोरल बॉन्ड एक स्कीम है जिसे सिर्फ सत्ताधारी पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी ही जान सकती है कि इसके जरिये किस पार्टी को चुनावी फंड दिया जा रहा है. इस नियम के कारण दूसरे दलों को चंदा देने वाली कंपनी या व्यक्ति मुश्किल में पड़ जाते हैं.
किसी भी चुनाव में एक पार्टी का कितना खर्च होता है
संस्था सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 का लोकसभा चुनाव अब तक का देश का सबसे महंगा चुनाव रहा. इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2019 के चुनाव में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों ने कम से कम 50 हजार करोड़ रुपये से लेकर 60 हजार करोड़ रुपये के बीच पैसे खर्च किए. इतने पैसे साल 2016 के हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भी खर्च नहीं किए गए थे.
वहीं इस खर्च की तुलना साल 2014 के लोकसभा चुनाव से करें तो 2014 के मुकाबले 2019 के चुनाव में दोगुना खर्च किया गया था. रिपोर्ट की मानें तो भारत के एक वोटर के ऊपर औसतन 700 रुपये खर्च हुए जबकि एक संसदीय सीट पर 100-100 करोड़ रुपये तक फूंक दिए गए.
बीजेपी और कांग्रेस को मिलने वाले चंदे में कितना फर्क है
कांग्रेस की तरह नवंबर में दाखिल किए गए रिपोर्ट के अनुसार देश की सबसे पुरानी पार्टी यानी कांग्रेस ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में चंदे के रूप में कंपनियों, पार्टी नेताओं, लोगों और चुनावी संस्थाओं से लगभग 80 करोड़ रुपये प्राप्त किए.
निर्वाचन आयोग के अनुसार कांग्रेस को चंदे के रूप में 79.92 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे और कोलकाता के ‘समाज इलेक्टोरल ट्रस्ट’ ने 50 लाख रुपये दिए. वहीं बीजेपी की बात करें तो वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान इस पार्टी के सांसदों और विधायकों से चंदे के रूप में 720 करोड़ रुपये प्राप्त हुए.
इससे पहले साल 2021-22 में बीजेपी को 614 करोड़ रुपये चंदा के तौर पर मिला था , जबकि कांग्रेस को 95 करोड़ रुपये चंदा प्राप्त हुआ था.
किस पार्टी के पास कितना पैसा
राजनीतिक पार्टियों और उनके कामकाज पर नजर रखने वाले संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी. यह रिपोर्ट राजनीतिक दलों की इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग के आधार पर तैयार की गई थी, जिसमें बताया गया कि साल 2020-21 में राष्ट्रीय पार्टियों में सबसे ज्यादा संपत्ति बीजेपी के पास थी.
साल 2015-16 में भारतीय जनता पार्टी के पास 893 करोड़ रुपये की संपत्ति थी. यही संपत्ति साल 2020-21 में ये बढ़ कर 6047 करोड़ रुपये पर पहुंच गई.
कांग्रेस के पास साल 2013-14 में कांग्रेस में 767 करोड़ रुपये की संपत्ति थी. 5 साल में यानी 2019-20 में ये संपत्ति बढ़कर 929 करोड़ रुपये हो गई थी. हालांकि साल 2021-22 में कांग्रेस की संपत्ति घटी और 806 करोड़ रुपये पर पहुंच गई.
किसकी संपत्ति कितनी बढ़ी
- साल 2014 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के पास 464 करोड़ रुपये की संपत्ति थी. लेकिन ये लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक लगभग आठ गुना बढ़ चुकी है.
- दूसरी तरफ कांग्रेस के पास साल 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले 586 करोड़ की संपत्ति थी और वर्तमान में 806 करोड़ रुपये पर पहुंच गई.
इस क्राउड फंडिंग के अभियान का कांग्रेस को क्या फायदा?
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार स्मिता गुप्ता कहती हैं, ”कांग्रेस के पास वर्तमान में सिर्फ तीन राज्य है (कर्नाटक, हिमाचल और तेलंगाना) और पूरी पार्टी इन्हीं मुख्यमंत्री और सांसदों-विधायकों की क्षमता पर निर्भर है. वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश ये तीन ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस भले ही चुनाव हार गई हो लेकिन अभी भी इस पार्टी का जनाधार बचा हुआ है.
वरिष्ठ पत्रकार आगे कहती हैं कि इस बात में कोई दोराय नहीं है कि कोई भी पार्टी पैसे के बिना चुनाव लड़ ही नहीं सकती. इसलिए तो उन्हें फंड इकट्ठा करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि क्राउडफंडिंग के इस अभियान से कांग्रेस को दो फायदे होंगे पहला तो ये कि डोनेशन फॉर देश का ये अभियान एक राजनीतिक अभियान की तरह चलेगा. कांग्रेस पार्टी इसके जरिए एक तरह की कैंपेनिंग करेगी और आम जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता का सबूत बताएगी. इसके अलावा इस अभियान के जरिए अगर कांग्रेस बड़ी रकम हासिल करने में कामयाब हो जाती है तो, चुनाव में तो उन्हें मदद मिलेगी ही बल्कि ऐसे में पार्टी लोगों के बीच कह पाएगी की देखिये हमें अभी भी जनता का कितना समर्थन मिल रहा है.’
उन्होंने एमपी के समाजवादी नेता डॉ. सुनीलम का उदाहरण देते हुए कहा कि किसानों के लिए काम करने वाले डॉ. सुनीलम ने भी क्राउड फंडिंग के जरिये ही पैसे जमा किए थे. उन्होंने अपने दम पर न सिर्फ चुनाव लड़ा बल्कि चुनाव जीता भी.
वहीं एबीपी से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं,’ कांग्रेस भले ही विधानसभा चुनाव हार गई हो लेकिन इस पार्टी का देश में अब भी बड़ा जनाधार है. क्राउड फंडिंग के फैसले से न सिर्फ कांग्रेस को अपनी आर्थिक स्थित को बेहतर करने का एक मौका मिलेगा बल्कि पार्टी जनता के बीच ये भी बता पाएगी की देखिये बीजेपी को रुपये-पैसे की कोई चिंता ही नहीं है.
इस अभियान के जरिए कांग्रेस दुनिया को एक राजनीतिक संदेश भी देगी और क्राउड फंडिंग से जो रकम इकट्ठा होंगे उसे वो अपनी राजनीतिक उपलब्धि भी बताएगी. अगर कांग्रेस क्राउडफंडिंग से 100 करोड़ रुपये जमा कर लेती है तो वह प्रचार के दौरान खुल कर कह सकती है उनके साथ खुद देश की जनता है. अब क्योंकि क्राउड फंडिंग के जरिये लोग छोटी रकम देते हैं. तो जब इस छोटी- छोटी रकम से पार्टी के पास बड़ी रकम इकट्ठा हो जाएगी तो कांग्रेस इसे अपनी विश्वसनीयता करार देगी.