रायसेन में अवैध खदानों से 1 करोड़/महीने की कमाई …?
रायसेन में अवैध खदानों से 1 करोड़/महीने की कमाई …
केवल 13 खदानें वैध, 50 से ज्यादा अवैध; कलेक्टर बोले-रोकने का फुलप्रूफ सिस्टम नहीं
रायसेन में अवैध पत्थर खदानों की वजह से सरकार को सालाना 12 करोड़ रुपए से ज्यादा का राजस्व नुकसान हो रहा है। इसके बाद भी अवैध खदानों के कारोबार को रोकने में प्रशासन नाकाम ही नजर आता है। 6 जनवरी को वन विभाग की टीम पर हमले के बाद प्रशासन ने वन क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन को रोकने के लिए कार्रवाई जरूर की है, लेकिन कलेक्टर का कहना है कि अवैध खनन को रोकने के लिए प्रशासन के पास कोई फुलप्रूफ सिस्टम नहीं है।
वन अमले पर हुए हमले के बाद ……..ने रायसेन में पत्थर खदानों से हो रहे अवैध खनन की पड़ताल की। इसमें खुलासा हुआ कि प्रशासन ने केवल 13 खदानों को खनन की अनुमति दी है, लेकिन 50 से ज्यादा अवैध खदानें वन क्षेत्र में संचालित हो रही है।
खदान माफिया ने रायसेन के 500 हेक्टेयर जंगल पर अपना कब्जा जमाया हुआ है। साथ ही ये भी पता चला कि अवैध खनन के इस कारोबार में पत्थर माफिया के साथ नेता और अफसरों की मिलीभगत है। इसकी वजह से ये कारोबार फल-फूल रहा है।
क्या हुआ था 6 जनवरी को..
पुलिस थाने में जो एफआईआर वन विभाग ने दर्ज कराई है, उसके मुताबिक रायसेन जिले के हकीमखेड़ी वन क्षेत्र में हो रहे पत्थर के अवैध खनन को रोकने डिप्टी रेंजर लालसिंह पूर्वी, बीट गार्ड रूप सिंह यादव जेसीबी लेकर पहुंचे थे। वन अमला उन सभी रास्तों को बंद कर रहा था जहां से वाहनों की आवाजाही होती है। इसी दौरान हकीमखेड़ी के सरपंच का पति तौफीक 30 से 40 लोगों के साथ पहुंचा और डिप्टी रेंजर से बहस करने लगा।
कुछ देर बाद सभी लोग वापस चले गए। विवाद की स्थिति देख डिप्टी रेंजर की सूचना पर डिप्टी रेंजर जीवन सिंह पवार, वनपाल राधा सोलंकी व वनरक्षक मोतीसिंह जादव भी मौके पर पहुंच गए थे। कुछ देर बाद सरपंच पति तौफीक डंडे, हॉकी स्टिक और रॉड लिए 30 से 40 लोगों के साथ फिर लौटा, इस बार उन्होंने डिप्टी रेंजर लालसिंह समेत टीम पर हमला कर दिया। डिप्टी रेंजर का भोपाल एम्स में इलाज चल रहा है। इस पूरे हमले का एक वीडियो भी सामने आया था। जिसे बाइक सवार दो लोगों ने बनाया था। इसमें वन कर्मियों को पिटते हुए साफ देखा जा सकता है। वीडियो में गुस्साई भीड़ रास्ता खुलवाने की मांग करती नजर आ रही थी।
इस हमले के बाद प्रशासन ने क्या कार्रवाई की
फॉरेस्ट टीम पर हमले के बाद रायसेन जिला प्रशासन एक्शन में आया। खनन माफिया के खिलाफ राजस्व, खनिज, वन और पुलिस विभाग ने संयुक्त कार्रवाई की। हकीमखेड़ी-बाबलिया के फॉरेस्ट एरिया में मौजूद अवैध खदानों को भरने का काम किया गया। प्रशासन ने 12 जेसीबी मशीनों की मदद से खदानों से निकले फर्शी पत्थर को तोड़कर इन्हीं गड्ढों में भर दिया।
खदानों तक पहुंचने वाले रास्तों पर बड़े-बड़े बोल्डर और गड्ढे खोद दिए ताकि लोडिंग गाड़ियां यहां तक ना पहुंच सके। एसडीएम की देखरेख में पूरी कार्रवाई को अंजाम दिया गया। एसडीएम मुकेश सिंह ने कहा- इन खदानों को पूरी तरह से बंद करने के लिए ऐसा किया गया है ताकि माफिया फिर खनन करें तो इतनी जल्दी काम शुरू न हो सके।
भास्कर ने 5 सवालों के साथ पूरे मामले की पड़ताल की…
- खुलेआम हो रहा अवैध खनन प्रशासन को क्यों नहीं दिखता?
- क्या अफसरों की मिलीभगत है?
- खनन माफिया को किसका संरक्षण है?
- अवैध खनन का कारोबार कैसे फल फूल रहा है?
- प्रशासन अवैध खनन रोकने में नाकाम क्यों है?
अब इन सवालों का जवाब
1. खुलेआम हो रहा अवैध खनन प्रशासन को क्यों नहीं दिखता?
इसका जवाब है कि अवैध खनन होता हुआ सभी को नजर आता है, लेकिन प्रभावी कार्रवाई नहीं है। रायसेन जिले में अवैध खनन के तीन इलाके हैं। कानपोहरा, हकीमखेड़ी और बावलिया का पठार। ये तीनों फॉरेस्ट एरिया में आते हैं। यहां पिछले कई सालों से अवैध खनन हो रहा है। इसके बारे में सभी को पता है। दैनिक भास्कर की टीम जब हकीमखेड़ी के पठार पर पहुंची तो यहां 30 से 40 फीट गहरे गड्ढे नजर आए। इन्हें देखकर ये साफ समझ आता है कि ये गड्ढे एक या दो दिन में तो नहीं बने हैं।
हकीमखेड़ी गांव के एक बुजुर्ग का कहना है कि खदानें तो सालों से चल रही हैं। गांव के ही लोग चला रहे हैं। वन विभाग के साथ पुलिस और खनिज विभाग के अफसर भी जानते हैं। फिर बोले- बड़े अफसरों के आने पर कभी-कभी एक्शन होता है। तब खदानों का काम कुछ दिनों के लिए बंद हो जाता है। जब सारा मामला ठंडा पड़ता है तब फिर से खुदाई का काम शुरू हो जाता है।
ग्रामीणों के इन आरोपों पर वन विभाग के रेंजर प्रवेश पाटीदार की सफाई है कि वन विभाग अपने बीट गार्ड के जरिए इलाकों की निगरानी करता है। समय-समय पर गश्त भी होती है। अवैध खनन की शिकायत मिलती है तो कार्रवाई भी की जाती है। भास्कर ने उनसे सीधा सवाल पूछा कि इतना सब करने के बाद भी तो जंगल में खनन हो ही रहा है। प्रवेश पाटीदार ने कहा- हम लोग पिछले दो से ढाई महीने से कार्रवाई कर रहे थे। अवैध कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया था। इसी वजह से अवैध खनन से जुड़े लोगों ने बौखलाकर वन अमले पर हमला किय
2. क्या अफसरों की मिलीभगत है?
इस सवाल का जवाब खनन से जुड़े लोग देते हैं। इनका कहना है कि इलाके के राजस्व, वन, खनिज और पुलिस अधिकारी-कर्मचारियों को हर महीने पैसा पहुंचता है। वन विभाग के एक कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा- अफसर चाहते तो ऐसी गतिविधियां कब की बंद हो चुकी होतीं।
इसी पठार से लगी सड़क पर मुलाकात होती है एक ग्रामीण से। बातचीत में कहता है कि खदानें पिछले 20-25 साल से ऐसे ही चल रही हैं। फॉरेस्ट वालों के साथ हुई मारपीट के बाद अभी तो काम ठप है। नहीं तो इन खदानों में हजारों मजदूर काम करते थे।
3. खनन माफिया को किसका संरक्षण है?
इस सवाल का जवाब भी खनन से जुड़े लोग देते हैं। हाल ही में हकीमखेड़ी में हुई कार्रवाई का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वन विभाग की टीम पर हमला करने वालों में हकीमखेड़ी की सरपंच का पति तौफीक भी शामिल था। तौफीक की खुद की दो से तीन अवैध खदानें हैं। पहले भी उसके ट्रक पकड़े जा चुके हैं।
तौफीक के एक रिश्तेदार ने कहा कि वह पहले भाजपा में था तब सब ठीक था। उसकी पत्नी सरपंच का चुनाव जीती थीं, लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले वह कांग्रेस में चला गया था। इस वजह से राजनीतिक दुश्मनी हो गई। पंचायत चुनाव में उसकी पत्नी ने जिसे हराया वह स्थानीय विधायक का समर्थक है। इस वजह से भी प्रशासन ने उसके खिलाफ कार्रवाई की।
खनन से जुड़े लोग ये भी बताते हैं कि पूरे कारोबार को स्थानीय नेताओं से लेकर राजनीतिक दिग्गजों का संरक्षण है। उन्होंने कई बड़े पदों पर बैठे हुए लोगों के नाम गिना दिए। उन्होंने बताया कि जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष, भाजपा के एक जिला स्तरीय पदाधिकारी, विधायक और सरकार से जुड़े बड़े नेताओं तक का खदान माफिया को संरक्षण मिला हुआ है।
एक खदान संचालक ने कहा, ‘यहां के जंगलों में जिसकी मशीनों ने सबसे ज्यादा खनन किया है वह जिला पंचायत का पूर्व अध्यक्ष है और सरकार से जुड़े बड़े नेता से उसके संबंध है। कोई उसका क्या बिगाड़ लेगा? उन्होंने बताया कि राजनीतिक कार्यक्रमों में भी अवैध खदान संचालकों की ओर से आर्थिक सहायता दी जाती है। इसकी वजह से प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करता।’
4. अवैध कारोबार कैसे फल-फूल रहा?
‘हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा… यानी कम खर्च में अच्छा काम। इस कारोबार के बढ़ने की वजह इससे होने वाली कमाई है। एक वैध खदान के ठेकेदार ने इसका हिसाब-किताब बताया। इस ठेकेदार के मुताबिक एक हेक्टेयर की खदान में वे तीन-चार दिन में एक ट्रक माल तैयार कर पाते हैं। यह 60 से 70 हजार रुपए का होता है। रॉयल्टी, मजदूरी, मशीन और ट्रांसपोर्ट का खर्च निकालने के बाद उन्हें प्रत्येक ट्रक के पीछे शुद्ध रूप से 10 से 15 हजार रुपए की बचत होती है।
वैध खदानों के परमिट पर अवैध खदानों के माल की ढुलाई
किसी खनिज को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए ट्रांजिट परमिट की जरूरत होती है। पहले यह जिला खनिज अधिकारी के कार्यालय से मिलती थी। अब इसे ऑनलाइन कर दिया गया है। पड़ताल में सामने आया कि वैध खदानों के ट्रांजिट परमिट का इस्तेमाल अवैध खदानों का माल खपाने में होता है।
रायसेन के जिला खनिज अधिकारी आर के कैथल का कहना है कि उन्हें अभी तक बिना ट्रांजिट परमिट के परिवहन का कोई मामला नहीं मिला है। लेकिन वन विभाग के एक रेंजर ने बताया कि पिछले साल उन लोगों ने एक ट्रक पकड़ा था जिस पर परमिट से दोगुना माल लदा हुआ था। जुर्माना लगाकर इसे नष्ट किया गया था।
रायसेन के पत्थर की राजस्थान तक सप्लाई
रायसेन की खदानों से निकली फर्शियां स्थानीय बाजारों के अलावा भोपाल, सीहोर, नर्मदापुरम, भोपाल, इंदौर और राजस्थान तक भेजी जाती हैं। स्थानीय कारीगर अवैध खदानों से धीरे-धीरे पत्थर निकालकर अपनी जरूरत के ईंट-फर्शी-खंभा बना लेते हैं। यहां के गांवों में करीब 60% घरों में इसी तरह की सामग्री का उपयोग दिखता है।
बाजार में भी पत्थर की ईंट जिसे यहां चारखाना कहते हैं वह चार से पांच रुपए में मिल जाता है। यह मिट्टी की लाल ईंट से सस्ता है। ऐसे में इसका उपयोग लाल ईंट से ज्यादा होता है। बड़े निर्माण में भी लोग नींव के लिए फर्शी पत्थर के ईंटों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं।
5. प्रशासन अवैध खनन रोकने में नाकाम क्यों है?
फर्शी पत्थर गौण खनिज की कैटेगरी में आता है। इसका नियंत्रण राज्य सरकार के हाथ में होता है। खदान को परमिशन खनिज विभाग देता है। 10 साल के लिए किसी भी खदान की लीज दी जाती है। इससे सरकार को डेढ़ लाख रु. प्रति हेक्टेयर रॉयल्टी मिलती है। अब रायसेन में केवल 13 खदानों को खनिज विभाग ने स्वीकृति दी है। खनिज विभाग में एक जिला खनिज अधिकारी के अलावा दो निरीक्षक है। जिनके जिम्मे 13 खदान है। नियम के मुताबिक किसी की लीज खत्म होती है तो वहां से खनन नहीं हो सकता लेकिन खनिज विभाग की मॉनिटरिंग नहीं है।
पिछले साल अगस्त में प्रशासन ने कानपोहरा की एक खदान पर कार्रवाई की थी। इस खदान की लीज खत्म हो चुकी थी। इसके बाद भी यहां से अवैध तरीके से खनन हो रहा था। जब जांच हुई तो पता चला कि 10 करोड़ का अवैध खनन हो चुका है। प्रशासन ने खदान संचालक आफताब मियां पर 28 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। जो अभी तक जमा नहीं किया गया है।
दूसरी तरफ वन क्षेत्र से होने वाले अवैध खनन को रोकने की जिम्मेदारी वन अमले की है। कलेक्टर अरविंद दुबे का कहना है कि वन क्षेत्रों में इस तरह की गतिविधियां लंबे समय से हो रही हैं। वन अमला कार्रवाई भी करता है लेकिन ये इतनी प्रभावी नहीं होती।