ग्वालियर : केदारपुर की जमीन का मामला ?

केदारपुर की जमीन का मामला:भूमि स्वामी बोले-कुछ लोग अफवाह फैला रहे, हमारे पक्ष में है हाईकोर्ट का आदेश
  • इसी जमीन को लेकर कुछ लोगों ने भ्रामक प्रचार किया था। - Dainik Bhaskar
इसी जमीन को लेकर कुछ लोगों ने भ्रामक प्रचार किया था।
  • साल 2005 में क्रय की गई थी जमीन …

ग्वालियर के केदारपुर में सर्वे क्रमांक 482 की दस बीघा जमीन को लेकर उठे विवाद में जमीन मालिक एडवोकेट मनीष वर्मा की ओर से मीडिया के सामने आकर अपना पक्ष रखा है। उनका कहना है कि यह जमीन उन्होंने साल 2005 में खरीदी थी। जिस पर निर्माण के लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग, रैरा सहित अन्य विभागों से NOC लेकर काम किया जा रहा है। इसके बाद भी उनकी जमीन और मालिकाना हक को लेकर कुछ अफवाह उनको सुनाई पड़ी है जो बिल्कुल गलत है। उनकी जमीन पर उनका मालिकाना हक है। हाईकोर्ट का आदेश भी उनके पक्ष में है। न तो प्रशासन हमारे ऊपर कोई कार्रवाई कर रहा है न ही कोई पुरानी कार्रवाई पेंडिंग है।

जमीन मालिक के पुत्र एडवोकेट अभिमन्यु वर्मा अपनी बात रखते हुए
जमीन मालिक के पुत्र एडवोकेट अभिमन्यु वर्मा अपनी बात रखते हुए

भूमि स्वामी मनीष वर्मा के पुत्र एडवोकेट अभिमन्यु वर्मा ने पत्रकार वार्ता में बताया कि ग्वालियर के शिवपुरी लिंक रोड व कैंसर हिल्स के पास ग्राम केदारपुर के सर्वे क्रमांक 482 की 10 बीघा 10 विस्वा जमीन उनके पिता एडवोकेट मनीष वर्मा ने साल 2005 में तब जमीन मालिक जर्नादन की पत्नी सावित्री से खरीदी थी। पर इसके बाद कुछ लोगों ने जमीन के मालिकाना हक और सन 1992 में एक डिक्री को फर्जी कहते हुए जमीन के स्वामित्व पर सवाल खड़े किए थे। जिस पर जमीन मालिक मनीष वर्मा ने हाईकोर्ट की शरण ली थी। जिसमें हाईकोर्ट ने माना था कि सर्वे क्रमांक 482 निजी भूमि थी। इसमे तहसीलदार के प्रकरण क्रमांक क्यू/रीडर-3/2007 ग्वालियर 17 दिसंबर 2007 में बिन्दु क्रमांक 3 “ संवत 2026 का रोस्टर तैयार करते समय सर्वे न. 482 भूमि स्वामित्व का था उसको रिकॉर्ड मे शासकीय चरनोई दर्ज कर दिया गया तथा सर्वे न. 483 जो कि शासकीय था पर चीमा पुत्र भवरसिंह को मिसिल न. 669/61×162 से भूमि स्वामी दर्ज कर दिया गया। इतना ही नहीं 482 पर अंकित अन्य इंदराज को स्याही से घेर दिया गया। इस पर कोर्ट ने आदेश दिए थे कि यह जमीन निजी स्वामित्व की थी। जिस पर ग्वालियर प्रशासन की ओर से हाईकोर्ट में आदेश काे चुनौती दी गई थी। जिसे कोर्ट ने अस्वीकार करते हुए अपने आदेश को यथावत रखा था।
सन 1992 की डिक्री से हमारा कोई संबंध नहीं है
भूमि स्वामी वर्मा का कहना है कि जिस न्यायलीय डिक्री के आदेश 11 फरवरी 1992 का जो रिकॉर्ड न मिलने के कारण कुछ लोग मेरी जमीन को लेकर अफवाह फैला रहे हैं उससे हमारा कोई संबंध नहीं है। इस जमीन पर हमारी एन्ट्री साल 2005 में हुई है। इसलिए उससे हमारा कोई संबंध नहीं है।
कुछ लोग हमारी छवि खराब करना चाहते हैं
भूमि स्वामी पुत्र एडवोकेट अभिमन्यु वर्मा का कहना है कि यह जमीन हमारी है और पूरी तरह हमारा जमीन पर स्वामित्व है। इसके बाद भी कुछ लोग हमें बदनाम करने व हमारी छवि को खराब करन के लिए अफवाह फैला रहे हैं। जिसे हम सहन नहीं करेंगे।

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