भारत में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स ?
भारत में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स: सरकार बचाने और गिराने का ये सिस्टम कैसे करता है काम?
भारत में सरकार बचाने और गिराने के लिए रिसॉर्ट पॉलिटिक्स अक्सर चर्चा में रहती है. देश में सबसे ज्यादा रिसॉर्ट पॉलिटिक्स झारखंड में देखने को मिलती है.
झारखंड में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का खेल शुरू हुआ. कांग्रेस और JMM सरकार ने ऑपरेशन लोटस के कथित खतरे को देखते हुए अपने करीब 35 विधायकों को हैदराबाद शिफ्ट कर दिया था.
सभी विधायक तेलंगाना के मंत्री पूनम प्रभाकर और कांग्रेस महासचिव दीपा दासमुंशी की देखरेख में एक रिसॉर्ट में रुके.
झारखंड की मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने इस पर सवाल भी उठाए. हालांकि, भारतीय राजनीति में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का यह कोई पहला मामला नहीं है.
पहले भी सरकार बचाने और गिराने के लिए रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का इस्तेमाल होता रहा है. रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का सबसे ज्यादा उपयोग झारखंड में ही सरकार बचाने और गिराने के लिए किया गया.
इस स्पेशल स्टोरी में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स और उससे जुड़े सभी सवालों के बारे में विस्तार से जानते हैं…
भारत में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स की शुरुआत
बात है साल 1982 की जब भारत में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का पहला मामला सामने आया था. इस साल हुए हरियाणा के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था, जिसके बाद इनेलो के देवीलाल ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया.
इनेलो और बीजेपी गठबंधन के पास 90 में से 48 सीटें थी. इस बीच इनेलो को टूट का डर सताने लगा, जिसके बाद देवीलाल ने 48 विधायकों को दिल्ली के एक होटल में शिफ्ट कर दिया. हालांकि, होटल से विधायक के भाग जाने की वजह से देवीलाल मुख्यमंत्री नहीं बन पाए.
36 सीटों पर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस ने हरियाणा में सरकार बना ली. कांग्रेस के भजन लाल मुख्यमंत्री बनाए गए.
कैसे काम करता है रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का सिस्टम?
रिसॉर्ट का मतलब होता है- एक बड़ा होटल, जहां लोग छुट्टियां मनाने जाते हैं. अनुमान के मुताबिक भारत में कम से कम 15 हजार रिसॉर्ट हैं. अधिकांश रिसॉर्ट मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में स्थित हैं.
रिसॉर्ट पॉलिटिक्स और उसके सिस्टम के बारे में पहली बार मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने एक सम्मेलन में खुलकर बोला था.
जीतू पटवारी के मुताबिक रिसॉर्ट में सभी तरह की सुविधाएं होती है, जिसमें विधायकों को रखा जाता है. विधायकों को जब वहां लाया जाता है, तब उनसे मोबाइल फोन ले लिया जाता है. सभी विधायकों पर निगरानी रखने के लिए लोग तैनान किए जाते हैं.
जीतू पटवारी के मुताबिक विधायकों को सुरक्षित रखने के लिए दो लोवल पर घेराबंदी की जाती है. पहले स्तर पर राज्य की पुलिस सुरक्षा व्यवस्था देखती है और दूसरे स्तर पर निजी कर्मियों को लगाया जाता है. इसके लिए कई गिरोह काम करते हैं.
देश में कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का बड़ा सेंटर माना जाता है. सबसे ज्यादा रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का इस्तेमाल झारखंड में सरकार बचाने और गिराने के लिए ही हुआ है.
2005 से अब तक झारखंड में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का इस्तेमाल कम से कम 4 बार हुआ है.
(Photo- PTI)
रिसॉर्ट पॉलिटिक्स ने कब-कब बचाई सरकार?
पहली सरकार हेगड़े की बची- 1983 में कर्नाटक में जनता पार्टी ने जीत हासिल की और रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री बने, लेकिन जल्द ही उन्हें पार्टी के भीतर टूट का डर सताने लगा. 1983 में ही कांग्रेस नेताओं ने उनके 80 विधायकों पर डोरे डाल दिए.
इसी बीच राजभवन ने उन्हें बहुमत साबित का निर्देश दे दिया, जिससे बचने के लिए हेगड़े ने 80 विधायकों को बेंगुलुरु के रिसॉर्ट में शिफ्ट कर दिया. हेगड़े की यह तरकीब काम कर गई और उनकी सरकार बच गई.
NTR ने भास्कर राव को पटखनी दी- 1984 में आंध्र प्रदेश में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का खेल हुआ. यहां के मुख्यमंत्री एनटी रामाराव जब अमेरिका सर्जरी करवाने गए, तो उन्हीं के पार्टी के एन भास्कर राव ने सरकार गिरा दी.
भास्कर राव राज्यपाल की मदद से मुख्यमंत्री भी बन गए. इस बात की भनक जब एनटीआर को लगी, तो वे आंध्र लौटे. उन्होंने अपने वफादारों के साथ मीटिंग कर सभी विधायकों को दिल्ली शिफ्ट कर दिया.
एनटीआर का रिसॉर्ट पॉलिटिक्स वाला दांव सफल रहा और आखिर में भास्कर राव को इस्तीफा देना पड़ा.
कल्याण सिंह ने बचाई सरकार- 1998 में रात के अंधेरे में कल्याण सिंह की सरकार को भंग करके यूपी के राज्यपाल ने जगंदबिका पाल को मुख्यमंत्री बना दिया. बीजेपी इस फैसले के खिलाफ कोर्ट चली गई. पार्टी ने कानूनी लड़ाई के साथ-साथ अपने विधायकों को बचाने में भी जुट गई.
बीजेपी ने अपने सभी विधायकों को एक रिसॉर्ट में शिफ्ट कर दिया. यह रिसॉर्ट कहां पर था, इसकी भनक किसी को नहीं लग पाई.
बीजेपी विधायकों के गायब होने की वजह से जगदंबिका पाल तोड़फोड़ नहीं कर पाए और उन्हें पद से हटना पड़ा. कल्याण सिंह फिर से मुख्यमंत्री बनाए गए.
विलासराव ने विधायकों को इंदौर भेज दिया- 2002 में महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार थी, लेकिन दोनों गठबंधन में टूट की खबरें फैल गई. उस वक्त कांग्रेस और एनसीपी ने आरोप लगाया था कि यह तोड़फोड़ बीजेपी के इशारे पर किया जा रहा है.
इस आरोप को बल तब और ज्यादा मिला, जब महाराष्ट्र के विधायकों को इंदौर में बीजेपी कार्यकर्ताओं का विरोध झेलना पड़ा.
तोड़फोड़ की आशंका को देखते हुए विलासराव ने अपने विधायकों को पहले इंदौर और फिर मैसूर भेज दिया. राव का यह दांव काम कर गया और कांग्रेस महाराष्ट्र में सरकार बचाने में कामयाब हो गई.
गहलोत की बाड़ेबंदी कर कुर्सी बचाई- 2020 में अपने ही सहयोगी सचिन पायलट के बगावत के वक्त अशोक गहलोत ने अपने 101 विधायकों को उदयपुर के एक रिसॉर्ट में बंद करवा दिया. इसे कांग्रेस की बाड़ेबंदी नाम से जाना जाता है.
अशोक गहलोत का यह दांव काम कर गया और सचिन पायलट बैकफुट पर चले गए. विधायकों की बाड़ेबंदी की वजह से सरकार भी बच गई और गहलोत भी सीएम बने रहे.
विधायकों को रायपुर भेज हेमंत ने बचाई सरकार- 2022 में झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार गिरने की सुगबुगाहट तेज हो गई. कांग्रेस और जेएमएम ने संकट से लड़ने के लिए तुरंत सभी विधायकों को रायपुर भेजने का प्लान बनाया.
हेमंत सोरेन के साथ महागठबंधन के सभी रायपुर के एक रिसॉर्ट में रुके. हालत स्थिर होने के बाद हेमंत ने सभी विधायकों को रांची बुलाया और विश्वासमत पेश कर दिया. विश्वासमत हेमंत सोरेन की सरकार बच गई.
(Photo- PTI)
वो मौके, जब रिसॉर्ट पॉलिटिक्स से सरकार गिर गई
1995 में आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू ने रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का इस्तेमाल कर एनटीआर की सरकार गिरा दी. उस वक्त छपी रिपोर्ट के मुताबिक नायडू ने टीडीपी के सभी विधायकों को पहले एकजुट किया और उसे एक होटल में ठहराया.
इधर, जैसे ही विधायक दल की मीटिंग के लिए एनटीआर आए, वैसे ही नायडू ने बगावत कर दी. समर्थन न देख एनटीआर बैकफुट पर चले गए और नायडू ने सरकार बना ली. नायडू एनटीआर के दामाद थे.
2019 में कुमारस्वामी की सरकार गिराने में भी रिसॉर्ट पॉलिटिक्स ने बड़ी भूमिका अदा की थी. 2019 में कांग्रेस विधायक रमेश जर्किहोली के नेतृत्व में 18 कांग्रेस के विधायकों ने बगावत का बिगुल फूंकते हुए महाराष्ट्र के एक होटल में आ गए.
होटल में आते ही इन विधायकों को महाराष्ट्र पुलिस ने सुरक्षा प्रदान कर दी. विधायकों की बगावत की वजह से कुमारस्वामी की सरकार गिर गई.
2020 में इसी तरह मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार गिर गई. कमलनाथ सरकार के खिलाफ ज्योतिरादित्य के समर्थन में 27 विधायक बेंगलुरु के एक रिसॉर्ट में चले गए. विधायकों के रिसॉर्ट में जाने की वजह से सरकार अल्पमत में आ गई, जिसके बाद कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया.
2022 में उद्धव ठाकरे की सरकार भी रिसॉर्ट पॉलिटिक्स की भेंट चढ़ गई. जून 2022 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के 30 विधायक पहले गुजरात और फिर गुवाहाटी के एक रिसॉर्ट में चले गए. विधायकों की जाने की वजह से सरकार अल्पमत में आ गई.