भारत को दुनिया देख रही है मोदी जी !

भारत को दुनिया देख रही है मोदी जी !

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के बिना कम से कम मेरा काम तो नहीं चलता । विश्व उन्हें गुरु जब मानेगा ,तब मानेगा लेकिन मैंने उन्हें महागुरु मान लिया है, क्योंकि वे जिस ढंग से ज्वलंत से ज्वलंत मुद्दों की अनदेखी कर देते हैं वैसा दुनिया का कोई नेता नहीं कर पाता । न जिन पी शिंग और न जो बाइडेन। पुतिन-सुतिन तो लगते ही कहाँ हैं ? माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया उनके देश में किसानों के स्वागत में राजधानी के बाहर बिछे कील-कांटें देख रही है । उन्हें फर्क नहीं पड़ता की दुनिया जलता-सुलगता मणिपुर भी देख रही है।
मुद्दों की अनदेखी कर सीना चौडाते हुए अपनी यात्रा को जारी रखना दुनिया को यदि सीखना है तो वो मोदी जी से सीखे। मोदी जी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की एक केंद्र शासित क्षेत्र चंडीगढ़ के महपौर चुनाव में उनकी सरकार और पार्टी की धांधली पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया ? उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की वे पांच साल पहले जिस जम्मू-कश्मीर को तोड़कर वहां यथाशीघ्र लोकतंत्र बहाली का वादा करके आये थे वो आजतक पूरा नहीं हुआ। वे बीएस अपनी राह पर बढ़ते जा रहे हैं।

हमारे प्रधानमंत्री के कर ही नहीं चरण भी कमल है। वे जिस जगह पड़ते हैं वो भूखंड पुण्य भूमि में तब्दील हो जाता है। वे जिस समय कश्मीर के स्वर्ग [जो अब सिर्फ जुमलों में है ] में इलेक्ट्रिक ट्रेन दौड़ा रहे थे । कह रहे थे कि जम्मू-कश्मीर के सपनों को मोदी ही पूरा करेगा। काश कि मोदी जी ऐसा करते । जम्मू-कश्मीर का पहला सपना तो अपना पूर्ण राज्य का छीना हुआ दर्जा वापस करने का है जो अभी तक पूरा नहीं किया गया। इस राज्य के पास अपनी विधानसभा नहीं है। इसके तीन टुकड़े किये जा चुके हैं। और टुकड़ा-टुकड़ा गैंग कहा किसी और को जाता है ,लेकिन समरथ को नहीं दोष गुसाईं।
जब आप ये आलेख पढ़ रहे होंगे तब 21 फरवरी 2024 को देश के किसान दिल्ली कूच की कोशिश करते हुए पुलिस और अर्द्ध सैनिक बलों की लाठियां और गोलियां खा रहे होंगे । उनके ऊपर आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे होंगे ताकि किसान रोने लगें। उनके आंसू बहने लगें। हमारी यानि हमारे मोदी जी की सरकार किसानों को खुश करने के बजाय रुलाने के लिए कृतसंकल्प है । आज से नहीं बल्कि जब से बनी है तब से । सरकार ने तीन साल पहले 700 किसानों की बलि ले ली किन्तु जो कहा उसे पूरा नहीं किया । किया तो विवादित कानूनों को वापस लेने का नाटक। और आज जब किसान दूसरी बार सरकार की वादाखिलाफी के खिलाफ फिर दिल्ली की और बढ़ रहे हैं तो उनके साथ निर्मम व्यवहार किया जा रहा है।
आप मानें या न मानें लेकिन मै अपने मोदी जी की सरकार के युद्ध कौशल और तोड़फोड़ कीक्षमता का पिछले दस साल से कायल हूँ । उन्होंने पहले जम्मो-कश्मीर तोड़ा,फिर विपक्षी गठबंधन को तोड़ा । अपनी अनन्य सहयोगी शिवसेना को तोड़ा । एनसीपी को तोड़ा। किसानों से और आम जनता से किये वादे तो न जाने कितनी बार तोड़े। लेकिन सरकार को एक बार भी लज्जा नहीं आई। आ भी नहीं सकती थी क्योंकि हमारी सरकार और हमारे मोदी जी लोक-लाज तो संतन संग बैठकर बहुत पहले ही खो चुके हैं । अभी हाल ही में उन्होंने कांग्रेस से बाहर किये गए संत प्रमोद कृष्णम के साथ सत्संग किया । इससे पहले यूएई में स्वामी नारायण सम्प्रदाय के संतों के साथ थे वे’ और 22 जनवरी 2024 को तो अयोध्या में वे देशभर से जुटाए गए संतों के साथ सत्संग कर चुके हैं।

संतों के साथ बैठने या सत्सांग करने से लोकलाज खो ही जाती है । मोदी जी तो छोड़िये मीरा बाई तक से ये गलती हुई । वे भी संतन संग बैठ-बैठ लोकलाज खो चुकी थीं,लेकिन उन्हें इसका फायदा ये हुआ कि उनके मन में प्रेम की बेल फैली । यहां उलटा हो तरह है । प्रेम की बेल सूख रही है ,कुम्हला रही है। मजबूरन कांग्रेस के राहुल गांधी को प्रेम की दूकान खोलना पड़ी है । ये बात और है कि उनकी इस दूकान पर अभी तक अपेक्षित संख्या में ग्राहक नहीं पहुँच पा रहे है। मोदी जी कर्मयोगी है। उन्हें न घर-बार से प्रेम है और न सत्ता से। वे तो बस चौकीदारी करने में ही मगन हैं। ऐसा मस्त-मौला प्रधानमंत्री किसी भी देश को सौभाग्य से मिलता है।मै तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ की मोदी जी जैसा कर्मयोगी प्रधानमंत्री दुश्मनों को भी दे।

देश के किसानों के स्वागत में मोदी जी की सरकार कांटें बिछाए या कीलें । उनके ऊपर लाठियां चलवाये या गोलियां ,इससे पूरी दुनिया को क्या ? ये हमारा अंदरूनी मामला है । हम अपने अंदरूनी मामलों में किसी को भी दखल देने की इजाजत नहीं दे सकते । क्या हमें कोई ऐसी इजाजत देता है भला ? मोदी जी जो कर रहे हैं उसे हरि- इच्छा मानकर स्वीकार करना ही राष्ट्रप्रेम है। जो लोग देश से प्रेम करते हैं उन्हें मोदी जी से भी प्रेम करना चाहिए। मोदी जी कल्कि अवतार है। और अवतार तब-तब ही अवतरित होते हैं जब-जब होय धर्म की हानि। यानि यदा-यदा ही धर्मस्य ,,,। इसलिए सब कुछ भूल जाएँ । न संदेशखाली की बात कीजिये और न इंडिया गठबंधन के टूटने की। बात करना यदि बहुत्त जरूरी ही है तो बात कीजिये की हमारे मोदी जी अबकी लोकसभा चुनाव में कैसे 400 का लक्ष्य पार करें ? मोदी जी की जीत, देश की जीत है और मोदी जी की हार देश की हार। अदालतों की बात तो एकदम से न की जाये। अदालतें तो आम के वृक्षों की तरह बौराई सी लगती हैं। उन्हें बौराना नहीं चाहिए।

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