चुनाव में राजनेताओं और जन-मन पर दिखेगा दिलचस्प असर ?

छवियों से ही प्रतीक बनते हैं; चुनाव में राजनेताओं और जन-मन पर दिखेगा दिलचस्प असर

भारतीय राजनीति एवं चुनावों के अध्ययन में ‘वृत्तांतों’ पर बातें तो होती हैं, पर छवियों पर व्यापक चर्चा नहीं होती। लोगों के बयानों के आधार पर ‘सेफोलॉजी’ चुनावी परिणामों की व्याख्या तो करती रहती है, परंतु इस प्रक्रिया में छवियों के पड़ने वाले प्रभावों का न तो राजनीति-वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं, न चुनाव विश्लेषक ज्यादा विचार करते हैं। जबकि मेरा मानना है कि राजनीति में छवियां धीरे-धीरे बनती-बिगड़ती हमारी राजनीतिक कल्पनाशीलता (पॉलिटिकल इमैजिनेशन) को प्रभावित करती हैं। इसी प्रभाव निर्माण की प्रक्रिया में वे किसी नेता, किसी राजनीतिक दल एवं किसी विचार के प्रति मतदाताओं को प्रभावित करती रहती हैं। कई बार छवियां विश्वास या अविश्वास का सृजन कर हमें चुनावी बूथों तक ले जाती हैं। वे हममें मोह रचती हैं एवं अनेक बार मोहभंग भी सृजित करती हैं।

मैं पिछले कई वर्षों से राजनीतिक नेताओं की छवियों का राजनीतिक एवं चुनावी गोलबंदी पर पड़ने वाले परिणामों के अध्ययन, चर्चा एवं विमर्श में शामिल रहा हूं। मैं राजनीतिक नेताओं की छवियों के बनने, बिगड़ने, उनमें आने वाले ठहराव एवं गतिकी को समझने की कोशिश करता रहता हूं। पिछले दिनों हमने उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों, जिलों एवं कस्बों के 20 से 30 वर्ष के युवाओं के साथ संवाद किया। ये युवा समाज की विभिन्न जातियों एवं वर्गों से थे। इनमें छात्र, छात्राएं, युवक एवं युवतियां, दोनों ही कोटि से जुड़े लोग थे। इनके साथ हुए संवादों से जो कुछ निहितार्थ निकले, वे बहुत रोचक एवं समकालीन राजनीति को समझने में सहायक हो सकते हैं। इन संवादों से यह समझ में आया कि नेताओं की छवियां मंथर गति से बढ़ती या घटती हैं। इनमें अचानक उछाल या गिरावट उनके द्वारा किए गए बड़े कार्यों या घटनाओं से आती है। मैंने इन संवादों के केंद्र में मूलतः दो छवियों-भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं विपक्ष के नेता राहुल गांधी को रखा था।

प्रधानमंत्री मोदी की छवियों के वृत्तांतों में उन्हें प्रायः ईमानदार, लोभ-लालच एवं परिवारवाद से मुक्त एवं विकास के लिए समर्पित नेता बताने की प्रवृत्ति दिखी। कई युवा उन्हें देश एवं धर्म के प्रति समर्पित नेता मान रहे थे। यह जानना सबसे रोचक था कि उनमें से कई युवा उन्हें ‘युग पुरुष’ के रूप में भी देखने लगे हैं। उनका कहना था कि वे एक ऐसे नेता हैं, जो एक पूरे युग को रचने एवं प्रभावित करने वाला काम कर रहे हैं। इन युवाओं के मन में उनकी छवियों के जो वृत्तांत मुझे सुनने को मिले, उनसे दो बातें साफ लगीं। एक तो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जन छवियों में रामजन्मभूमि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद बड़ा उछाल आया है। उन्हें लोग ‘युग पुरुष’ के रूप में देखने एवं कहने लगे हैं। उनकी ‘युग पुरुष’ की छवि सामान्य युवाओं के मन में रामजन्मभूमि प्राण- प्रतिष्ठा समारोह के बाद की उत्पत्ति इसलिए मानी जानी चाहिए कि उसके पहले ऐसा सुनने को नहीं मिलता था। दूसरा, उनकी छवि आज ‘राजनीति से परे’ (बियोंड पॉलिटिक्स) अपने में सामाजिक, धार्मिक एवं परिवारपन से जुड़ी छवियां शामिल किए हुए है।

किसी भी राजनेता की जनछवियों में सकारात्मक एवं नकारात्मक, दोनों ही प्रकार की धारणाएं होती हैं। लेकिन जनता के बयानों में छवियों के संदर्भ में प्रायः सकारात्मक वृत्तांत ज्यादा मिलते हैं। दूसरे, कई बार लोगों में उनके बारे में उदासीनता मिलती है। तीसरे स्तर पर आता है, छवियों की नकारात्मकता का बयान, जिसकी मात्रा या प्रतिशत प्रायः कम ही होता है।

राष्ट्रीय नेताओं में ‘अन्य छवि’ जनता के मन में जिस नेता की बनती-बिगड़ती रहती है-वह हैं कांग्रेस के राहुल गांधी। राहुल गांधी अपने अनेक प्रतिरोधी राजनीतिक प्रयासों से अपनी छवि विकसित करते रहते हैं। उनकी छवियां अभी विकसित होने के क्रम में हैं। वे छवियां अभी प्रतीक में नहीं बदल पाई हैं, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी की छवियों के साथ हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनेक छवियां एक में सम्मिलित होकर प्रतीक में बदल कर अपना प्रभाव सृजित करती हैं। राहुल गांधी की कई छवियां या तो अभी विकास की प्रक्रिया में हैं या जो विकसित हैं, उनका अभी संघनित सम्मिलन नहीं हो पाया है।

उनकी विद्यमान छवियों एवं युवाओं के एक वर्ग में-उनसे की जाने वाली अपेक्षाओं में अंतर्विरोध देखने को मिलता है। कई युवा उनके ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि से सहमत नहीं दिखे। उन्हें अपेक्षा है कि उनकी छवि राजीव गांधी जैसी सौम्यता वाली हो। मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त बिल फाड़ने की घटना का जिक्र करते कई युवा मिले। उनकी छवि निर्माण के सलाहकार शायद यह सोचते हों कि भारतीय युवाओं को गुस्सा पसंद होता है। वे ऐसा सोचकर यह समझने में गलती करते हैं कि भारतीय मानस की आकांक्षा समाहार की होती है, टकराव की नहीं। भारत जोड़ो यात्रा से विपक्ष की राजनीति के प्रतीकात्मक नेतृत्व के रूप में राहुल गांधी की छवियों का विकास एवं विस्तार तो हुआ है, किंतु उन बहुल छवियों को एकीकृत हो एक राजनीतिक प्रतीक में बदलना अभी शेष है। जब तक छवियां प्रतीक में नहीं बदलतीं, वे दीर्घकालिक प्रभाव नहीं छोड़तीं। उनका प्रभाव क्षणिक होता है।

आज राजनीतिक नेताओं की छवियों में परिवर्तन की गति तेज है। इसका प्रमुख कारण है-साइबर स्पेस, मीडिया-वैकल्पिक मीडिया, सोशल साइट्स का विकास एवं विस्तार। भारतीय युवा मानस चूंकि इस ‘संचार नेटवर्क’ का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, अतः उसके मानस में छवियों के परिवर्तन की गति ज्यादा तीव्र होती है। राजनीतिक नेताओं की बनती-बिगड़ती छवियां हर बार की तरह इस बार भी भारतीय चुनावों को प्रभावित करेंगी। देखना है, इस बार इनका प्रभाव कैसा होता है एवं किस प्रकार वे चुनाव परिणामों में परिवर्तन ला पाती हैं।

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