ग्वालियर : जल संकट से जूझ रहा शहर ?

जल संकट से जूझ रहा शहर /….
8 हजार भू-स्वामियों से जमा कराए ‌‌3.5 करोड़ रुपए फिर भी वाटर हार्वेस्टिंग के लिए कोई पहल नहीं

शहर में भूजल स्तर तेजी से घट रहा है। इसका जिम्मेदार नगर निगम ही है। कारण, 11 साल में निगम ने 8 हजार से ज्यादा भवन की अनुमतियां इस शर्त के साथ दी कि भवन स्वामी रैन वाटर हार्वेस्टिंग कराएगा, लेकिन निगम के अफसरों ने मॉनिटरिंग ही नहीं की। जिस कारण साल 2013 से अभी तक 7200 घर लगभग 90 प्रतिशत भवन बनाने वाले लोगों ने रैन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं कराई है। यही वजह से की हर साल बारिश का पानी सड़कों पर बहकर बर्बाद हो रहा है। वहीं निगम ने 70 सामुदायिक और पब्लिक शौचालयों पर बारिश का पानी सहेजने रैन वाटर हार्वेस्टिंग कराई थी।

उनके अंश ज्यादा खोजने में सिर्फ दिखाई देते हैं। यहीं स्थिति सरकारी इमारतों की है। वहां की रैन वाटर हार्वेस्टिंग को खोजना पड़ता है। अब निगम एक प्रस्ताव वाटर हार्वेस्टिंग का बना रहा है। उसमें लगातार एक हजार वर्गमीटर में 75 हजार रुपए बताई जा रही है। हालांकि यह प्लान कागजों से बाहर नहीं आया है।

शासन ने साल 2012 में आदेश जारी कर नगरीय क्षेत्र के भूखंड पर भवन बनाने की अनुमति तभी देने की सुविधा शुरू की जब भवन स्वामी 7 से 15 हजार रुपए तक की धरोहर राशि वाटर हार्वेस्टिंग के लिए कराएगा। उक्त राशि हार्वेस्टिंग कराने पर लौटाने का प्रावधान था। निगम के जिम्मेदारों का कहना है कि निगम के खाते में रैन वाटर हार्वेस्टिंग के नाम पर 3.50 करोड़ रुपए से ज्यादा राशि आ चुकी है। उसे लेने भवन मालिक नहीं आ रहे हैं। जबकि मकान बन चुके हैं। इधर निगम इमारत-बाल भवन: यहां पर वाटर हार्वेस्टिंग कराई गईं। देखरेख के अभाव में बेकार हो चुकी हैं। उनकी सफाई तक नहीं हुई। यही स्थिति चिड़ियाघर में बनी हुई है।

देखिए…जिन सरकारी इमारतों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग उनमें भरा है कचरा

  • राज्य स्तरीय प्रशिक्षण संस्थान: यहां जिस गड्ढा में बारिश का पानी स्टोर होना था उसमें कचरा भरा है। लंबे समय से इसकी सफाई नहीं की गई। मौजूद स्टाफ का कहना है कि जरा सी बारिश में ही भर जाता है।
  • गांधी रोड सर्किट हाउस: अब यह एमपी टूरिज्म का हिस्सा बन चुका है। यहां पर रैन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बड़ा गड्ढा धोकर छत और एरिया का पानी ले जाने की व्यवस्था की थी, लेकिन इमारत का जीर्णोद्धार के कारण गड्ढे में ठेकेदार ने कचरा और अपना सामान रख दिया है। अब गड्ढा दिखाई नहीं दे रहा है।
  • पद्मा विद्यालय: ग्वालियर स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने इसे तैयार कराया था, लेकिन वर्तमान में जिस गड्‌ढे में पानी जमा होना था उसमें कचरा भरा हुआ है। उसके पाइप तक टूटे पड़े हुए हैं।
  • सामुदायिक शौचालय: निगम ने तीन साल पहले शहर में 70 शौचालय (सीटी-पीटी) पर बारिश का पानी जमीन में उतारने के लिए हार्वेस्टिंग कराई थी। इनमें थाटीपुर शौचालय, आकाशवाणी शुलभ शौचालय, फूलबाग सुलभ शौचालय आदि शामिल हैं। वर्तमान में यहां पर गड्ढा करके ड्रम आदि सामान लगाया था। ड्रमों में कचरा भरा पड़ा है।

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